बचपन में दी गई सीख और शिक्षा, हमारे भविष्य को गढ़ने में अहम भूमिका निभाती है। हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, इन सबका असर हमारे व्यक्तित्व को एक आकार देता है। गोंडल (गुजरात) के रहनेवाले 44 वर्षीय रमेश रूपरेलिया, बचपन से संगीत के शौक़ीन थे और गांव में घूम-घूमकर हारमोनियम बजाने जाया करते थे। हर तरह के कार्यक्रमों में वह गायों की महिमा और इसके दूध व गोबर के फायदों के बारे में सुनते रहते थे। यही कारण है कि बचपन में ही गौ सेवा का बीज उनके दिमाग में पनप गया था। आज रमेश भाई, गाय आधारित खेती कर, उगाए गए ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स और घी (Organic Ghee), भारत के साथ-साथ दुनिया के 123 देशों में भेज रहे हैं। वह ‘श्री गीर गौ कृषि जतन संस्था’ के नाम से अपनी गौशाला चलाते हैं और गीर गाय के दूध से बना घी (Organic Ghee) बेचकर, सालाना 3 करोड़ से अधिक की कमाई कर रहे हैं। रमेशभाई की संस्था में 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं और वह इस वक्त 150 से ज्यादा गायों की देखभाल भी कर रहे हैं।
कभी पूरा परिवार करता था मजदूरी
आपको जानकार हैरानी होगी कि आज करोड़ों कमाने वाले रमेश भाई, साल 1988 तक मजदूरी करते थे। उनके माता-पिता भी दूसरों के खेतों में मजदूरी करके ही, घर का खर्च चलाया करते थे। पैसों की कमी के कारण रमेश भाई को पढ़ाई भी जल्दी ही छोड़नी पड़ी थी। सातवीं पास करने के बाद, वह दूसरों की गायें चराने जाया करते थे, जिसके बदले उन्हें महीने के मात्र 80 रुपये मजदूरी मिला करती थी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए रमेश भाई कहते हैं, “मैंने जीवन में बुरे-से-बुरे दिन भी देखे हैं, लेकिन जिस एक बात ने मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, वह थी सीखने की चाह और हार न मानना।”
कैसे आया गौशाला और खेती का आइडिया?
जिस समय रमेश भाई मजदूरी कर रहे थे, उसी समय उन्होंने खेती करने का फैसला किया। लेकिन उनके पास खुद की जमीन नहीं थी, ऐसे में रमेश भाई ने हिम्मत दिखाकर गोंडल के एक जैन परिवार की जमीन किराये पर लेकर खेती शुरू की।
इन खेतों में उन्होंने केमिकल वाली खेती के बजाय, गाय आधारित खेती करने का फैसला किया। वह यहां-वहां से गाय का गोबर और गौमूत्र लाकर खेतों में डालते थे। ऑर्गेनिक खेती से उन्हें तो फायदा हुआ ही साथ ही जीवन में ढेरों बदलाव भी आ गए।
रमेश भाई ने बताया, “साल 2010 में मैंने मात्र 10 एकड़ खेत से 38000 किलो प्याज का उत्पादन किया था। इसके बाद, मेरे प्याज आस-पास के कई मंडियों तक पहुंच गए। इस बात की चर्चा उस समय सभी लोकल न्यूज़पेपर्स में हुई थी। और दूसरे ही साल हमने एक एकड़ से 36000 किलो हल्दी का भी उत्पादन किया।”
गौ-आधारित खेती से हुए मुनाफे से, उन्होंने खुद की चार एकड़ जमीन खरीदी और गौशाला खोलने का मन बना लिया।
38 की उम्र में सीखा कंम्प्यूटर चलाना
रमेश भाई कहते हैं, “हम बढ़िया खेती करते थे और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स भी बनाते थे, लेकिन मार्केटिंग का हमें ज्यादा ज्ञान नहीं था। गांव के आस-पास के ऑर्डर्स उन दिनों मैं साइकिल से ही डिलीवर करने चला जाया करता था। बड़े व्यापारियों को अपने प्रोडक्ट्स बेचने पर हमें ज्यादा फायदा नहीं होता था। क्योंकि वे हमारे प्रोडक्ट्स आगे महंगे दामों में बेचते थे। इसलिए मैंने इस बीच की कड़ी को तोड़ने का फैसला किया।”
रमेश भाई भले ही सातवीं पास हैं, लेकिन जीवन में निरन्तर सीखते रहना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। 38 की उम्र में उन्होंने इंटरनेट का उपयोग करना सीखा और बेसिक कंप्यूटर का कोर्स भी किया, ताकि वह ई-मेल के ज़रिए ऑर्डर्स ले सकें।
सोशल मीडिया को वह अपनी सफलता का एक बहुत बड़ा कारण बताते हैं। वह कई सालों से अपना खुद का यूट्यूब चैनल चला रहे हैं, जिसमें वह खेती और गौ-सेवा से जुड़े वीडियोज़ अपलोड करते रहते थे। धीरे-धीरे उस चैनल की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी और लोग उनसे उनके प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी मांगने लगे।
23 देशों के लोगों को सिखाए खेती के गुण
धीरे-धीरे लोग रमेश भाई के पास खेती की ट्रेनिंग और घी (Organic Ghee) बनाना सीखने भी आने लगे। अब तक रमेश भाई 23 देशों के 10 हजार लोगों को खेती की ट्रेनिंग दे चुके हैं।
वह गांव के युवाओं को गांव में रहकर ही रोजगार के अवसर तलाशने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि अगर गांव का युवा गांव में रहकर मेहनत करे, तो हमें पेट्रोल-डीज़ल को छोड़कर बाहर के देशों से कुछ मंगवाना नहीं पड़ेगा। रमेश भाई युवाओं को इंटरनेट और सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करने की सलाह भी देते हैं।
आप रमेश भाई की संस्था और उनके काम के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें gircowcare@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन-अर्चना दुबे
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