गुजरात में सूरत के रहने वाले प्रकाश चौहान, ने पत्तल (पत्ते से बने प्लेट) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक अनोखी पहल की है।
हाल के वर्षों में फाइबर प्लेट का चलन बढ़ने के कारण बाजार में पत्ते की प्लेट की माँग काफी कम हो गई है, इससे पर्यावरण और सेहत को नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही पत्ते से प्लेट बनाकर अपना जीवनयापन कर रहे लोगों के सामने भी गंभीर चुनौतियाँ उभर रही हैं। जब इस बात की ओर प्रकाश का ध्यान आकर्षित हुआ तो उन्होंने यह मुहिम छेड़ी।
पेशे से आयुर्वेद चिकित्साधिकारी प्रकाश ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने लगभग 2 वर्ष पहले – ‘बदलाव अपने लिए, बदलाव हमारे अपनों के लिए’ नाम से एक पहल की, जिसके तहत हम हफ्ते में एक दिन पत्ते से बने प्लेट में खाना खाते हैं। हमारी इस पहल से 500 से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं।”
कैसे गया समस्या पर ध्यान
प्रकाश कहते हैं, “मैं एक चिकित्सा अधिकारी के तौर पर, पिछले ढाई वर्षों से गुजरात के नवसारी जिले में काम कर रहा हूँ। जब मेरी पोस्टिंग यहाँ हुई, तो मैंने देखा कि कुछ घरों में एक तरह की मशीन बेकार पड़ी है। फिर, आस-पास के लोगों से थोड़ा परिचय हो जाने के बाद, मैंने उनसे पूछा कि वह मशीन किस काम आती है। तो, उन्होंने कहा कि यह पत्तल बनाने की मशीन है और माँग नहीं होने की वजह से, पिछले 12-15 वर्षों से यूं ही बेकार पड़ी है।”
वह आगे बताते हैं, “मेरे ऑफिस में एक चपरासी काम करते हैं, जिनकी उम्र 45 वर्ष से अधिक है। उन्होंने हमें बताया कि उनके घर में भी एक पत्ते से प्लेट बनाने वाली मशीन बेकार पड़ी है। इससे मुझे इस दिशा में कुछ करने का विचार आया।”
इसके बाद प्रकाश ने साथी चपरासी को मशीन फिर से शुरू करने की सलाह दी और भरोसा दिलाया कि वह अपने दोस्तों को भी पत्ते की प्लेटें इस्तेमाल करने के लिए राज़ी कर लेंगे और वह हफ्ते में एक बार खाना इसमें जरूर खाएंगें। लेकिन, लोगों को यह बात व्यवहारिक नहीं लगी। साथ ही, ये सभी मशीनें कई वर्षों से बंद थीं और इसे फिर से शुरू करना मुश्किल था।
इसी बीच, एक 80 वर्षीया बुजुर्ग महिला ने हाथ से पत्ते की प्लेटें बनाने का सुझाव दिया और सभी ने इस पर हामी भी भर दी।
इसके बारे में प्रकाश बताते हैं, “इसके बाद, हमने हाथ से प्लेट बनाना शुरू कर दिया। इसके लिए हम पलाश के पत्तों को पास के जंगल से लाने लगे और नीम के डंठल से उसकी बुनाई कर पत्तल बनाने लगे।”
प्रकाश ने इस पहल को अपनी पत्नी के साथ मिलकर शुरू किया था, लेकिन आज उनके साथ 500 से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं, जो हफ्ते में कम से कम एक दिन पत्ते की प्लेटों का इस्तेमाल जरूर करते हैं।
क्या हैं फायदे
प्रकाश बताते हैं, “हमारे यहाँ सदियों से पत्ते की थालियों का इस्तेमाल होता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसे ज्यादा व्यवहार में नहीं लाया जाता है। इससे हमारी परंपरा धूमिल हो रही है और जंगलों पर निर्भर लोगों की आजीविका का साधन भी खत्म होता जा रहा है। मैंने इस परंपरा को फिर से शुरू करने की पहल की है, ताकि इस पेशे से जुड़े लोगों तक मदद पहुँच सके।”
प्रकाश कहते हैं, “आज एक परिवार हर महीने करीब 1000 पत्तल बेचता है, जिससे उसे करीब 1500 रुपए की कमाई होती है। इसके अलावा पत्ते की प्लेट को व्यवहार में लाने से अन्य फायदे भी हैं। आज पूरे देश में जल संकट की भीषण समस्या है। इसी को देखते हुए, हमने लगभग एक महीने तक इस बात पर गौर किया कि एक 3 सदस्यीय परिवार में प्रति दिन खाने के बाद थाली धोने के लिए 8-10 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। लेकिन, यदि हम हफ्ते में एक दिन भी पत्ते के प्लेट का इस्तेमाल करें, तो काफी बड़े पैमाने पर पानी और बिजली की बचत हो सकती है।”
इसके अलावा, प्रकाश अपने ऑफिस से नजदीक दो गाँव – चापलधरा और खरौली, में इन पत्तलों से बड़े पैमाने पर जैविक खाद बनाने की भी योजना बना रहे हैं।
इसके बारे में वह कहते हैं, “मैंने इन गाँवों के शिक्षकों से बात कर स्कूल के पास गढ्ढे खुदवाए हैं, जिसमें खाने के बाद इन पत्तलों को फेंका जाता है। ये पत्तल छह महीने में जैविक खाद बन जाते हैं। धीरे-धीरे हम इसका दायरा बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, जिसका फायदा पूरे गाँव के किसानों को मिलेगा।”
प्रकाश कहते हैं, “इस तरह की पहल में लोगों का आगे आना जरूरी है। मैंने अपने अभियान के दायरे को बढ़ाने के लिए व्हाट्सएप, फेसबुक आदि का इस्तेमाल किया है साथ ही, कई स्कूल, कॉलेजों का भी दौरा किया और बच्चों को पत्ते से बनी प्लेटें इस्तेमाल में लाने के लिए प्रोत्साहित किया।”
प्रकाश की इस पहल से जुड़े, भवेश, जोकि सूरत के अस्पताल में डाक्टर हैं, कहते हैं, “मैं प्रकाश जी की इस पहल से जनवरी, 2020 से जुड़ा हूँ। इससे मुझे अपनी जड़ों से जुड़े होने का अहसास होता है। इस तरह की पहल से लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही, पानी की भी बचत होती है।”
वहीं, प्रवीण सिंह जोकि एक चुनाव अधिकारी हैं, कहते हैं, “मैं प्रकाश जी की इस पहल से प्रभावित होकर जुड़ा हूँ। मैं हफ्ते में एक दिन निश्चित रूप से पत्ते की प्लेट में खाना खाता हूँ, इससे एक अलग ही अहसास होता है।”
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप प्रकाश चौहान से 9909789055 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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