“यहाँ आते हुए डेढ़ बरस हुआ, अब हम हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी सब पढ़ते हैं। सुबह और दोपहर खाना भी मिलता है। अब थोड़ी देर में दीदी आ जाएंगी तो पढ़ाएंगी….मजा आता है यहाँ। हम आपको प्रार्थना गाकर सुनाते हैं, हर रोज़ हम प्रार्थना करते हैं और फिर पढ़ते हैं।”
इतना कहकर सभी बच्चे जल्दी से अपनी-अपनी जगह बैठ गए और एक साथ हाथ जोड़कर प्रार्थना गाने लगे। ये नज़ारा था अहमदाबाद के पकवान इलाके में स्थित ट्रैफिक पुलिस चौकी का।
ये सभी बच्चे इस इलाके की झुग्गी-झोपड़ियों से आते हैं और इनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। एक वक्त था जब ये बच्चे सड़कों पर आने-जाने वाले लोगों से पैसे मांगते थे या फिर उन्हें गुब्बारे, खिलौने आदि बेचते थे। इनके माता-पिता को भी यह नहीं पता होता था कि उनके बच्चे कहाँ है, क्या कर रहे हैं?
लेकिन पिछले डेढ़ साल से तस्वीर बिल्कुल बदल गई है। आज ये बच्चे न सिर्फ़ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं बल्कि उन्हें यहाँ खाना भी दिया जाता है और यह सब मुमकिन हो पा रहा है अहमदाबाद ट्रैफिक पुलिस की ‘पुलिस पाठशाला’ के जरिये।
‘पुलिस पाठशाला’ अहमदाबाद ट्रैफिक पुलिस की एक सामाजिक पहल है, जिसके अंतर्गत यह विभाग ग़रीब और ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहा है। सबसे पहले यह पहल पकवान ट्रैफिक पुलिस चौकी से ही शुरू हुई थी। चौकी के प्रांगण में ही पीछे की तरफ इन बच्चों के लिए कुछ बेंच, ब्लैकबोर्ड आदि लगाकर एक क्लास तैयार की गई है।
हर सुबह एक रिक्शावाला इन बच्चों को इनके घरों से चौकी लेकर आता है और फिर छुट्टी होने पर इन्हें वापस घर भी छोड़कर आता है। सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक ‘पुलिस पाठशाला’ चलती है। सुबह में क्लास से पहले इन बच्चों को ब्रेकफास्ट दिया जाता है और फिर दोपहर में छुट्टी से पहले इन्हें लंच दिया जाता है।
डेढ़ साल से ‘पुलिस पाठशाला’ का कार्यभार देख रहे ट्रैफिक पुलिस में तैनात लोक रक्षक सिपाही नितिन राठौर ने बताया,
“यह प्रोग्राम साल 2018 में तत्कालीन ट्रैफिक पुलिस एसपी नीरजा गोत्रू राव (आईपीएस अफ़सर) और अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर ए. के. सिंह के प्रयासों से शुरू हुआ था। ये उनकी ही सोच है कि शिक्षा के जरिये इन बच्चों की ज़िंदगी को बेहतर बनाया जाए। इससे कम से कम इनका भविष्य तो संवरेगा।”
इस प्रोग्राम की शुरुआत में, पुलिस विभाग ने सबसे पहले इलाके का सर्वे करके झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने बच्चों के माता-पिता को इन बच्चों को उनके पास भेजने के लिए कहा। नितिन बताते हैं कि भले ही यह प्रोग्राम पुलिस विभाग चला रहा है लेकिन फिर भी इन बच्चों को कक्षा तक लाना उनके लिए आसान नहीं रहा।
पुलिस के रुतबे के चलते माता-पिता ने बच्चों को भेजना तो शुरू कर दिया था लेकिन इन बच्चों को पढ़ाई के लिए ढालना भी किसी चुनौती से कम नहीं था।
“शुरुआत के कुछ महीने तो बच्चे यहाँ आकर सिर्फ़ खाना खाते और खेलते थे। फिर खेल-खेल में उन्हें थोड़ा-बहुत पढ़ाना शुरू किया। इस प्रक्रिया में हमें 4-5 महीने लगे, लेकिन फिर एक बार जब ये बच्चे रेग्युलर हो गए और हमारे पास स्कूल-कॉलेज के कुछ बच्चे वॉलंटियर करने आने लगे तो हमारी क्लास अच्छे से चलने लगी,” नितिन ने कहा।
इस प्रोग्राम की कॉर्डिनेटर रिंकल पटेल ने बच्चों में आई तब्दीली के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि इन बच्चों में व्यवहारिक बदलाव लाने में भी उन्हें पूरा एक साल लगा है। लेकिन आज आलम यह है कि ये बच्चे ज़िम्मेदार बन रहे हैं। पाठशाला पहुँचने के बाद इधर-उधर भागने की बजाय बच्चे सबसे पहले अपनी बेंच सही करते हैं, ब्लैकबोर्ड पर दिन-तारीख़ आदि लिखते हैं और तो और अपने टीचर के लिए कुर्सी भी खुद ही लगाते हैं।
इसके अलावा, अगर कोई बाहर से उनसे मिलने भी आए तो हिचकिचाने की बजाय अपने रूटीन के बारे में अच्छे से बात करते हैं।
“जब हमने देखा कि बच्चों में काफी बदलाव है और ये मैनस्ट्रीम शिक्षा से जुड़ सकते हैं तो हमने पकवान सेंटर पर आने वाले 22 बच्चों में से 17 बच्चों का थलतेज म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन स्कूल में दाखिला करवाया। वहां पर बच्चों का नामांकन तो हो चूका है लेकिन अभी भी ये बच्चे हमारे पास ही पढ़ने के लिए आ रहे हैं। लेकिन अब ये बच्चे परीक्षा में बैठते हैं और कुछ समय बाद, जैसे ही हम निश्चिंत हो जाएंगे कि ये बच्चे स्कूली माहौल में ढल सकते हैं, हम इन्हें स्कूल भेजना शुरू कर देंगे,” रिंकल ने आगे बताया।
पकवान ट्रैफिक पुलिस पाठशाला की सफलता के बाद विभाग ने शहर के और तीन इलाकों, दानिलिमड़ा, कांकरिया और किशनपुर में भी पुलिस पाठशाला शुरू की है। इन चार जगहों पर अभी लगभग 100 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। पकवान सेंटर से बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूल में होने के बाद, अब केंद्र सरकार के ‘स्पेशल टीचिंग प्रोग्राम’ के तहत इस सेंटर पर सरकार की तरफ से एक प्रोफेशनल टीचर, किरण पांचाल भी नियुक्त की गई हैं।
बाकी सेंटर पर, फ़िलहाल वॉलंटियर ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, इन बच्चों की पढ़ाई का सभी खर्च ज़्यादातर पुलिस विभाग के अधिकारी और कुछ अन्य लोगों द्वारा मिल रहे फंड से चल रहा है। रिंकल बताती हैं कि अब छोटे-बड़े निजी संगठन भी ‘पुलिस पाठशाला’ प्रोग्राम में मदद के लिए आगे आ रहे हैं।
“जब इन बच्चों ने यहां पर आना शुरू किया था तो लगभग सभी कुपोषण का भी शिकार थे। हम उन्हें खाना तो दे रहे थे पर फिर भी और पोषण की उन्हें ज़रूरत थी। ऐसे में, जब एक निजी कंपनी ‘विशाखा ग्रुप’ ने ट्रैफिक पुलिस से अपने सीएसआर के तहत सम्पर्क किया तो विभाग ने उनसे इन बच्चों के लिए कुछ करने के लिए कहा। तब से ही विशाखा ग्रुप की तरफ से हर दिन इन बच्चों के लिए अलग-अलग तरह के फल भेजे जा रहे हैं,” रिंकल ने कहा।
अहमदाबाद ट्रैफिक पुलिस के इस प्रोग्राम की सब जगह सराहना हो रही है और इस प्रोग्राम को पूरे शहर में लागू करने पर काम हो रहा है। आने वाले महीनों में, कोशिश है कि थलतेज, पंचवटी और शिवरंजनी क्षेत्र में भी यह पुलिस पाठशाला शुरू हो जाए।
अंत में रिंकल द बेटर इंडिया के माध्यम से सिर्फ़ यही संदेश देती हैं कि जिस तरह यह पहल पुलिस ने की, वैसे कोई भी अपने आस-पास कर सकता है। कोई आम नागरिक, कोई छोटा समूह या कोई संगठन, कोई भी इस बदलाव में भूमिका निभा सकता है। आप अपने आस-पास ऐसे बच्चों को अनदेखा करने की बजाय, एक छोटी-सी पहल करें और यदि आप अहमदाबाद में हैं तो किसी भी तरह की मदद के लिए आप ट्रैफिक पुलिस से संपर्क कर सकते हैं।”
इसके अलावा, यदि कोई भी आम नागरिक इस पहल में योगदान करना चाहता है तो पुलिस पाठशाला का यह वॉलंटियर फॉर्म भरने के लिए यहाँ क्लिक कर सकता है!
संपादन: भगवती लाल तेली