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गोविंदा बनी ये गृहणियां तैयार है मटकी-फोड़ जन्माष्टमी के लिए!

प्रतीकात्मक तस्वीर

कृष्ण-जन्माष्टमी के अवसर पर महाराष्ट्र में मुंबई की दही-हांड़ी की चर्चा पूरे देशभर में रहती है। मुंबई की दही-हांडी समन्वय समिति के अंदर न जाने कितने ही दही-हांडी मंडल है जो अपने-अपने इलाके में यह उत्सव जोर-शोर से मनाते हैं।

गोरेगांव का 100 सदस्यी स्वास्तिक गोविंदा पथक भी इसी समिति का मंडल है। लेकिन इस मंडल की एक खास विशेषता यह है कि इसमें 20 टीम केवल महिलाओं की हैं। जी हाँ, इन सभी समूहों में औरतें हैं, जिनमें शादीशुदा औरतें भी हैं।

अंकिता तांबत, एक मुम्बईकर, जिसे दही-हांडी में भाग लेने के लिए अपने माता-पिता को मनाना पड़ता था। लेकिन अभी शादी के बाद उनके ससुराल वाले उन्हें इस उत्सव में भाग लेने के लिए खुद प्रोत्साहित करते हैं। वे कहती हैं, “जब भी हमारे ग्रुप का नाम लिया जाता है तो बहुत गर्व महसूस होता है। जब मुझे अपने दोस्तों से पता चला कि वे अभ्यास के लिए जा रहे थे, तो मैंने भी शामिल होने का फैसला किया।”

जबकि विवाहित महिलाओं पर गोविंदा पथक के सदस्य बनने पर कोई आपत्ति नहीं रही। फिर भी शुरू-शुरू में थोड़ी झिझक थी। पर अब हालात बदल रहे हैं। “कई महिलाओं को उनके ससुराल वालों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, यही कारण है कि हमने हाल ही में हमारे समूह में शामिल होने वाली अधिक गृहिणियों को देखा है”, समन्वय समिति की एक अधिकारी आरती बरी ने बताया

तांबत के जैसे ही दीपिका चिबड़े ने बताया कि पिछले तीन साल से वे गोविंदा पथक का हिस्सा हैं। टीम की सबसे कम उम्र की सदस्या 14 वर्ष की हैं और सबसे पुरानी, 35 साल की हैं।

चिबड़े ने कहा, “बहुत सी लड़कियां यहां कबड्डी खेलती हैं। लेकिन यह बहुत जरूरी है कि दही-हांडी को भी इस खेल की भांति ही प्राथमिकता दी जाए। क्योंकि बहुत सी औरतें दही-हांडी को नहीं चुनती हैं।”

पथक मूल रूप से कबड्डी खिलाड़ियों का एक समूह है। ये लोग गुरुपूर्णिमा से लेकर जन्माष्टमी तक दही-हांडी के नियमित अभ्यास के लिए समय निकालते हैं।

“पहले वर्ष में, उन्हें स्क्वाट करने के लिए तैयार किया जाता है, जिसमें एक या दो लड़कियां होती हैं। धीरे-धीरे कुछ लोग तीसरे स्तर तक जाने में सक्षम होते हैं। इसी तरह से साल 2007 में तीन मंजिला मानव पिरामिड के साथ शुरू हुआ समूह अब छह स्तर बनाता है,” उनके फिटनेस ट्रेनर राकेश सुरवे ने कहा।

दही-हांडी के प्रति औरतों में यह जज्बा यकीनन काबिल-ए-तारीफ़ है।

संपादन – मानबी कटोच


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