पुरे देश में इस साल 13 सितंबर से गणपति माहोत्सव शुरू हो रहा है। ऐसे में आप कहीं भी देखें, खासकर के महानगरों में आपको हर तरफ बप्पा के ही चर्चे मिलेंगें। फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम, हर जगह बस गणपति ही छाये हुए हैं। और हो भी क्यों न, भाई आखिर विघ्नहर्ता हैं वो और साथ ही खुशहाली के प्रतीक हैं।
लेकिन पिछले कुछ सालों में गणपति विसर्जन के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए बहुत से लोगों की यादें खट्टी होने लगी थीं। पर जनाब कहते हैं कि अगर कोई मुश्किल है तो उसका समाधान करें न कि अपनी खुशियां मनाना छोड़ दें। और वो भी जब मुश्किल खुद विघ्नहर्ता से जुड़ी हो।
इस उत्सव का रंग सदियों तक यूँ ही बरकरार रहे इसलिए लोगों ने पर्यावरण के अनुकूल गणेश-चतुर्थी मनाने के तरीके भी ढूंढ निकाले। कई जगहों पर कलाकारों और भक्तों, दोनों ने ही प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की जगह मिट्टी से बने गणपति को दी तो कहीं चॉकलेट से बने गणेशजी ने सबका मन मोह लिया।
इस साल भी ‘गो ग्रीन’ और ‘इको-फ्रेंडली’ गणेशोत्सव की प्रतिज्ञा के साथ जगह-जगह लोगों ने महीने भर पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थी!
जी हाँ, कहीं लोग खुद अपने मिट्टी के गणपति बना रहे हैं तो कोई पर्यावरण के अनुकूल गणपति की मूर्ति ऑर्डर कर रहा है। इतना ही नहीं देश के अलग-अलग मंडलों व संगठनों ने 10 दिन के लिए लगने वाले पंडाल की सजावट भी इको-फ्रेंडली बनाने का निर्णय किया है।
हम आपको आज बता रहे हैं पुरे देश भर के प्रसिद्द अलग-अलग पंडालों के बारे में जहां इस बार इको-फ्रेंडली गणपति के साथ-साथ प्रदूषण रहित उत्सव व समाज सुधार का सन्देश भी दिया जायेगा।
1. सत्य साईं ट्रस्ट, बंगलुरु
बंगलुरू में सत्य साईं ट्रस्ट ने चमकदार प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) को छोड़कर इस बार गन्नों से गणेश जी की मूर्ति बनाई है। जी हाँ, ट्रस्ट के एक सदस्य मोहन राज ने बताया कि हर साल वे कुछ नया करने की कोशिश करते हैं और इस बार उन्होंने गन्ने का उपयोग करके मूर्ति बनाने का फैसला किया, जिसे प्रार्थना के 21 दिनों के बाद लोगों को बांटा जाएगा।
भगवान गणेश की इस शानदार मूर्ति को पूरा करने के लिए लगभग पांच टन गन्नों का इस्तेमाल किया गया है। इस मूर्ति को बनाने वाले आर्टिस्ट अविनाश ने बताया कि मूर्ति को पूरा करने में उन्हें डेढ़ महीना लग गया।
न केवल बंगलुरु, बल्कि हैदराबाद में भी पिछले कुछ सालों में मिट्टी से बनी मूर्तियों की बिक्री में इज़ाफा हुआ है।
2. गणेश गल्ली मंडल, मुंबई
गणेश गल्ली मंडल जो कि ‘मुम्बइचा राजा’ उत्सव के लिए प्रसिद्द है, इस बार अपना 91वां उत्सव मना रहा है। यह मंडल हर साल गणपति पंडाल को भारत के किसी न किसी प्रसिद्द मंदिर की प्रतिकृति/नक़ल देते हैं। इस बार मंडल ने मध्य-प्रदेश स्थित सूर्य मंदिर की प्रतिकृति बनाई है।
इको-फ्रेंडली सजावट के बारे में बताते हुए, गणेश गल्ली समिति के सदस्य, अभिनय पेढांकर ने कहा, “”सजावट के लिए, हम मुख्य रूप से फाइबर और लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं, जिसको उत्सव खत्म होने के बाद किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग किया जा सकता है। पिछले साल तक, हम सजावट के लिए मुख्य रूप से पीओपी का उपयोग करते थे, लेकिन इस बार हमने 5% से भी कम पीओपी का इस्तेमाल किया है।
इसके अलावा अँधेरी स्थित ‘अंधेरीचा राजा’ पंडाल को पुणे के चिंतामणि मंदिर की प्रतिकृति दी जाएगी।
3. ओम शांति मित्र मंडल, मुंबई
मुंबई में मीरा रोड के शांति नगर के ओम शांति मित्र मंडल ने इस बार खुद मिट्टी से अपनी गणपति जी की मूर्ति बनाई है। यहां के स्थानीय निवासियों द्वारा बनाई गयी यह मूरत 4 फ़ीट लम्बी है।
ओम शांति मित्र मंडल के सदस्य अश्विन कुमार पटेल ने बताया कि जब मंडल के 25 साल पूरे हुए, तो लोगों ने कहा कि बढ़ते खर्चे को देखकर उत्सव मनाना मुश्किल होगा। लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहते थे क्योंकि लोकमान्य तिलक ने इस त्यौहार को लोगों को एक साथ लाने के लिए शुरू किया था।
ऐसे में इन लोगों ने खुद मिट्टी से मूर्ति बनाने का फैसला किया जिससे पर्यावरण और पैसे, दोनों बचाये जा सकें।
पंडाल को भी इको-फ्रेंडली तरीकों से सजाया गया है। थर्माकोल और पीओपी के प्रयोग को बिल्कुल नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने बैकग्राउंड में एक तालाब बनाया है और इसी तालाब में मूर्ति को विसर्जित करने की योजना बनाई है, जो सजावट का हिस्सा है।
4. श्री गणेश क्षेत्र मंडल, लक्ष्मी नगर, दिल्ली
दिल्ली में इस बार गणपति न केवल लोगों के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी खुशियाँ लेकर आयेंगे। इस बार भक्तों को प्रसाद में मोदक के साथ-साथ पौधे भी दिए जायेंगें। यह पर्यावरण के हित में आयोजकों ने पिछले कुछ सालों से यह कदम उठाया है।
साथ ही मिट्टी से बनी मूर्ति और सजावट के लिए भी जैविक तरीकों का उपयोग किया है। लक्ष्मी नगर में दिल्ली के महाराजा का आयोजन करने वाले श्री गणेश क्षेत्र मंडल के संस्थापक अध्यक्ष महेंद्र लड्डा कहते हैं, “हम 16 साल से गणेशोत्सव मना रहे हैं, और चार साल पहले, हमने पर्यावरण-अनुकूल गणेश मूर्ति का उपयोग करना शुरू कर दिया था। यमुना को प्रदूषित करने और ट्रैफिक जाम को कम करने के लिए हमने पंडाल में ही विसर्जन करना शुरू किया है।”
उन्होंने बताया, “हमने पंडाल को 4500 पौधों से सजाया है जिन्हें विसर्जन के बाद आने वाले हर एक भक्त को प्रसाद के साथ दिया जायेगा।”
महेंद्र को पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता की प्रेरणा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिली। इसके अलावा प्रीतमपुरा के लालबाग के राजा उत्सव में भी आयोजकों ने पौधे बांटने का फैसला लिया है।
5. श्रीनिवास गणेश उत्सव मंडल, मुंबई
यह मंडल पिछले तीस सालों से पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव मना रहा है। इस बार भी इस परम्परा को जारी रखते हुए उन्होंने गणपति की मूर्ति तैयार करवाई है- जिसे धागे, पगड़ी के कपड़े, मटका, सुपारी और नारियल से बनाया गया है।
मंडल के एक सदस्य काल्पेश लोडया ने डीएनए को बताया, “सभी चीजें पर्यावरण अनुकूल हैं और हर साल की तरह, इस साल भी हम इस मूर्ति को विसर्जित नहीं करेंगे। पिछली बार की सजावट का 60% भी इस बार की सजावट में नहीं लगाया गया है। लेकिन इससे हम बजट में उत्सव मना पायेंगें। हम विसर्जन के दिन मूर्ति में इस्तेमाल हुई इन सभी चीज़ों को अलग-अलग लोगों को फिर से इस्तेमाल के लिए दे देते हैं।”
6. मांजलपुर ना राजा, वड़ोदरा
युवा शक्ति चैरिटेबल ट्रस्ट ने फाइबर प्लास्टिक से बनी 18 फुट लंबी मूर्ति स्थापित की है। पर इस में पर्यावरण अनुकूल क्या है? दरअसल, इस मूर्ति का इस्तेमाल कई सालों तक किया जा सकता है!
दरअसल, इस ट्रस्ट के संस्थापक सेतु पटेल ने देखा कि विसर्जन के बाद मूर्तियां केवल आधी डूबी थीं और इस बात ने उन्हें सोच में डाल दिया। द टाइम्स ऑफ़ इंडिया को उन्होंने बताया, “हम नहीं चाहते थे कि हमारी मूर्ति के साथ ऐसा हो और इसलिए हमने फाइबर प्लास्टिक का इस्तेमाल करने का फैसला किया।”
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उन्होंने यह मूर्ति मुंबई से मंगवाई है। इस मूर्ति को दिसंबर में फिर से एक बार मुंबई भेजा जायेगा, जहां इसकी सजावट होगी और इसे अगले गणपति पर फिर से इस्तेमाल किया जायेगा।
जाने-अनजाने में ही सही लेकिन यह 10 दिन का त्यौहार लोगों के लिए हर्षोल्लास के साथ-साथ शोर-शराबा, प्रदूषण और ट्रैफिक जाम आदि का कारण भी बन सकता है। लोगों को इससे बचने के लिए त्यौहार मनाना छोड़ देने की जरूरत नहीं है। उन्हें बस कुछ पल शांति से बैठकर सोचना चाहिए और विचार-विमर्श करना चाहिए कि कैसे इन चुनौतियों का सामना करके पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस उत्सव को मनाएं।
इन सभी बड़े मंडलों के ये कदम सराहनीय हैं और हम उम्मीद करते हैं कि अपने घरों पर भी गणपति मनाने वाले लोग इससे प्रेरणा लेंगें।
( संपादन – मानबी कटोच )