अक्टूबर आते ही कोलकाता के कलाकार रिंटू दास काम में व्यस्त हो जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही है- वह दुर्गा पूजा के लिए पंडाल तैयार कर रहे हैं। हर साल दक्षिण कोलकाता में बेहला बरिशा क्लब पंडाल के यूनिक थीम्स के पीछे पंडाल निदेशक का भी दिमाग होता है। पूरे भारत में त्योहारों के सेलिब्रेशन की शुरुआत के साथ ही, सोशल मीडिया चैनल्स बेहतरीन तरीके से सजाए गए शानदार पंडालों को वर्चुअली लोगों तक पहुंचाकर, इस उत्सव के आनंद को और बढ़ा देते हैं।
बेहला बरिशा क्लब के इस पंडाल में किसी बोल्ड कलर का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसका लुक और फील बहुत शांत सा है और इसमें ग्रे कलर का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। क्लब ने इस वर्ष के लिए जिस थीम को चुना है, वह है ‘भागेर माँ’, जिसका अर्थ है ‘विभाजित माँ’।
इस वर्ष क्लब की मूर्तिकला, NRC और COVID-19 महामारी की पहली लहर के दौरान, प्रवासी श्रमिकों के हालात पर आधारित है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए रिंटू कहते हैं, ”चारों ओर इतना तनाव है, माँ को फिर से विस्थापित होना पड़ेगा या नहीं, यह सवाल बहुत वास्तविक है। क्या माँ, भारत और बांग्लादेश के बीच फंस जाएंगी? क्या उनकी पहचान पर भी सवालिया निशान है?”
कॉलेज के छात्रों ने बनायी ऐसी जीवंत मूर्ती
वैसे इस पंडाल का कॉन्सेप्ट और आइडिया तो रिंटू का ही था, लेकिन इस पर कोलकाता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के छात्र- देबायन प्रमाणिक, प्रताप मजूमदार और सुमित बिस्वास ने कुशलतापूर्वक काम किया।
इस विचार को साकार करने के लिए बड़े पैमाने पर काम करने वाले 27 वर्षीय कलाकार देबायन कहते हैं, “भले ही यह काम मैंने किया है, लेकिन आइडिया मेरे वरिष्ठ रिंटू दास ने दिया था। वह अपने दिमाग में पंडाल की पूरी इमेज बनाकर, मेरे पास आए और हमने इसे पूरा करने में उनकी मदद की। मैंने इस पर फरवरी 2021 में काम शुरू किया था और बीच-बीच में COVID-19 के कारण थोड़ी परेशानी भी आई। इसे पूरा करने में मुझे लगभग 3.5 महीने लगे।”
दरअसल, यह मूर्तिकला एक महिला की है, जो दुर्गा की मूर्ति को पकड़े हुए दिखाई देती है और कुछ बच्चे उसके पीछे शरण लिए हुए हैं। यह मुर्तिकला दर्शाती है कि चाहे उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियां कुछ भी हों, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प है पूजा जारी रखना। देवी की मूर्ति उन सैकड़ों माताओं की दुर्दशा का प्रतीक है, जिन्हें अपना घर और छत छोड़ना पड़ा।
“माँ अब कहां जाएंगी?”
इस आइडिया के बारे में बात करते हुए, रिंटू कहते हैं, “1947 में, विभाजन के बाद, बंगाल का विभाजन हुआ और उस अवधि के दौरान ढाका की ढकेश्वरी दुर्गा, पश्चिम बंगाल में आईं और कुमारतुली बन गईं। क्षेत्र में फिर से राजनीतिक अशांति को देखकर, कोई भी यह पूछने पर मजबूर हो जाता है कि क्या फिर से ऐसा ही कुछ होगा, माँ अब कहां जाएंगी?”
माँ दुर्गा की मूर्तियों के पीछे रिंटू की थीम और आइडिया नेटिज़न्स के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पिछले साल, रिंटू ने कोविड के दौरान, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर हो गए प्रवासी कामगारों की दुर्दशा को उजागर करती हुई प्रतिमा बनायी थी।
कलाकार पल्लब भौमिक द्वारा बनाई गई नक्काशीदार मुर्ति, अपने बच्चों के साथ देवी दुर्गा के रूप में एक माँ का प्रतिनिधित्व करने वाली थी। उस वर्ष पंडाल में देवी लक्ष्मी अपनी बाहों में एक उल्लू के साथ, देवी सरस्वती एक हंस के साथ थीं और उनकी बाहों में एक लड़का था, जो भगवान कार्तिकेय का प्रतीक है। इसके साथ ही पारंपरिक रूप वाली देवी दुर्गा के 10 हाथों से निकलते तेज प्रकाश ने माँ और बच्चों को घेर रखा था।
वास्तविकता को करीब से किया महसूस
इस साल जितना संभव हो सके वास्तविकता के करीब रहने के लिए, देबायन ने वास्तविक मॉडल का इस्तेमाल किया। वह कहते हैं, “मैंने अपनी बहन से मुख्य मॉडल बनने का अनुरोध किया और पूरी तरह से तैयार मूर्ती में आप जिन बच्चों को देख रहे हैं, वे मेरे पड़ोस के बच्चे हैं। मैंने फाइनल मूर्ति के लिए जो कल्पना की थी, उसके लिए उन्होंने बेहतरीन पोज़ दिए।”
उन्होंने कहा, “मैंने उन हालातों के बारे में सोचा, जब बिना किसी गलती के एक माँ अपने बच्चों के साथ किसी मुसीबत में होती है। मैंने सालों से जो फिल्में देखी थीं, उनके अलग-अलग सीन्स ने मेरे काम में मदद की।” उन्हें साल 2017 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बिशोर्जन और इसके सीक्वल बिजोया (2019) नामक दो फिल्मों से प्रेरणा मिली थी।
वह कहते हैं, “वैसे तो ये फिल्में एक प्रेम कहानी हैं, लेकिन नायक जिन दुखद परिस्थितियों का सामना करता है, उसके कारण ये फिल्म्स कई मायनों में काफी इमोशनल भी हैं। यहां तक कि फिल्म में देशभक्ति की भावना ने मेरे दिमाग पर एक बहुत ही अमिट छाप छोड़ी है। इस मूर्तिकला पर काम करते हुए, मैंने खुद को फिल्मों के दृश्यों से काफी हद तक आकर्षित पाया।”
अगले साल की थीम पर विचार
देबायन जैसे कलाकारों के लिए ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम करना एक सपने के सच होने जैसा है और इस साल पंडाल को मीडिया से जितनी अटेंशन मिल रही है, उसे देखते हुए रिंटू ने कहा कि वह अभी से ही अगले साल के क्रांतिकारी विषय के बारे में भी सोच रहे हैं।
संपादन – मानबी कटोच
यह भी पढ़ेंः 20 सालों से डॉक्टर दंपति कर रहे नेक काम, सड़कों पर भटक रहीं 500 कमजोर महिलाओं की बचाई जान
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।