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रिटायरमेंट के बाद शुरू किया मोती उगाना, पैसों के साथ मिली पहचान भी

Fresh water pearl farming by Dr. Nina Singh

कुछ नया शुरु करना हो तो उम्र आड़े नहीं आती। बस कुछ अलग करने का जज्बा होना चाहिए। ओडिशा के बालासोर जिले की डॉक्टर नीना सिंह भी कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं। उन्होंने उम्र के उस मोड़ पर मोती की खेती करना शुरु किया था, जिसमें आमतौर पर लोग नए रास्तों की तरफ देखना छोड़ देते हैं।

डॉ. नीना ने Zoology में पीएचडी की है। उन्होंने 12 साल तक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में काम किया और उसके बाद दो साल तक कॉर्पोरेट की नौकरी की। साल 2014 में उन्होंने नौकरी छोड़कर मोती की खेती शुरू करने का निर्णय लिया। 

जोखिम लेने से पीछे नहीं हटी

दो अलग-अलग क्षेत्रों में नौकरी करने के बाद भी, वह जोखिम लेने से पीछे नहीं हटीं। उस समय न तो मोती की खेती के लिए समुचित जानकारी उपलब्ध थी और ना ही कोई केस स्टडी। फिर भी डॉ. नीना ने इस ओर अपने कदम बढ़ा दिए। उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया। डॉ. नीना मोती की खेती करने वाले भारत के पहले कुछ किसानों में से एक हैं।

उन्होंने मोती की खेती के लिए दो लाख रुपये का निवेश किया और अपने घर के अहाते में बने कंक्रीट के टैंक में मोती उगाना शुरू कर दिया। पहले दो साल तक उन्हें कोई आमदनी नहीं हुई, लेकिन तीसरे साल से उन्हें मोती से पैसा मिलना शुरु हो गया। फिलहाल वह केवल मोती की खेती करके साल में 10 से 12 लाख के बीच कमाई कर रही हैं। अब उनके पास छह तालाब हैं, जिनमें मोती उगाने के साथ-साथ वह मछलियां भी पालती हैं। जिससे उन्हें अच्छा खासा पैसा मिल रहा है।

बहुत सोच-समझकर उन्होंने उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल किया और आज वह इसी वजह से मोती और मछली से सालाना 20 लाख रुपये कमा रही हैं। यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में उन्होंने शुरुआत में सोचा तक नहीं था। 

अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखा

Floating Pearl farming

डॉ. नीना ने भुवनेश्वर में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) में ‘फ्रेशवाटर पर्ल फार्मिंग फॉर आन्त्रप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट’ पर एक कोर्स किया था। लेकिन मोती की खेती में सफलता उन्हें अपने अनुभव से ही मिली। इसमें वह कई बार असफल हुईं, लेकिन बराबर प्रयास करती रहीं। उन्होंने हार नहीं मानी और आज वह इस क्षेत्र में माहिर हो चुकी हैं।

उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “आज कोई भी इस तकनीक के बारे में इंटरनेट पर आसानी से जानकारी ले सकता है। लेकिन तकनीक के बारे में पढ़ने और व्यावहारिक तौर पर खेती करने में काफी अंतर है। मोती की खेती एक बेहद ही धीमी और थकाऊ प्रक्रिया है। इसके लिए बहुत धैर्य की जरूरत है और रखरखाव भी काफी ज्यादा करना पड़ता है। सीपियों के खराब होने की दर काफी ज्यादा है। एक मोती को बनने में डेढ़ साल लगता है। इसलिए अगर आप इस बारे में कुछ नहीं जानते या फिर यह आपकी शुरुआत है तो इसे आय का प्रमुख स्रोत न बनाएं।”

डॉ. नीना ने अपने शानदार करियर के चलते भविष्य के लिए काफी बचत की हुई थी और शुरुआत में इसी से उनका गुज़ारा चल रहा था। एक बार जब उन्हें मोती की खेती पर भरोसा हो गया तब उन्होंने 2017 में उन्हीं तालाबों में मछली पालन का काम भी शुरू कर दिया। डॉ. नीना ने पोस्ट ग्रेजुएशन में मरीन इकोसिस्टम के बारे में विस्तार से पढ़ा था। वह जानती थी कि मोती की खेती और मछली पालन दोनों को एक साथ चलाया जा सकता है।

एक तीर से दो निशाने

नीना ने 10X6 फीट का एक कृत्रिम कंक्रीट टैंक तैयार किया। सर्जरी का सामान, दवाएं, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मा मीटर एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर और पर्ल  न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीदे। उन्होंने प्लवक (Plankton) भी मिल गए थे, जिन पर पानी में रहने वाली प्रजातियां जीवित रहती हैं। वह सीपियों का खाना होता है।

इस पूरी प्रक्रिया के बारे में डॉ. नीना बताती हैं, “सीपियों को तालाब में डालने से पहले, 24 घंटे के लिए ताजे पानी में रखा जाता है। अगले दो तीन सप्ताह तक उनके खाने की आदतों, जीवित रहने की दर, अरेशन और पानी के स्तर पर नजर रखनी है। एक बार जब आप उनके विकास के पैटर्न को जान जाएंगे तब आपका अगला कदम होगा सीपी के अंदर नूक्लीअस (नाभिक) को डालना। मैं नूक्लीअस को गणेश, फूल, या जानवर की आकृति में ढालने के बाद उन्हें सीपियों के अंदर रखती हूं।“

डॉ. नीना सीपीयों को फ्रूट ट्रे में रखती हैं और फिर इस ट्रे को तालाब में तीन फिट अंदर रखा जाता है। ट्रे को लटकाने के लिए इसके सिरों को रस्सियों से बांधा जाता है। एक साल बाद न्यूक्लीअस एक मोती की थैली देता है जो सीपियों के शेल से कैल्शियम कार्बोनेट इकट्ठा करता है। नूक्लीअस में कोटिंग की कई परत होती हैं जो और कुछ नहीं बल्कि एक बेहतरीन मोती होता है।

इसके साथ-साथ वह एक्वाकल्चर के जरिए इस पानी में कॉर्प मछलियों को भी पालती हैं। डॉ. नीना मछलियों की देखभाल करते समय रोजाना दो घंटे के लिए सीपियों की ट्रे को वहां से हटाकर बाहर रखती हैं।

मोती की खेती को लोकप्रिय बनाना

Pearl Grown up By Neena

डॉ. नीना बताती हैं, “सीपियां, मछली के कचरे को साफ करने के लिए प्राकृतिक शोधक के रूप में काम करती हैं। जब पानी में मछलियों का मलमूत्र सड़ने लगता है तो प्लवक उसे अवशोषित कर लेता है। और यही प्लवक सीपियों का खाना होता है। मैं उत्पादकता बढ़ाने और साफ-सुथरा वातावरण बनाने के लिए तालाब में चूना भी डालती हूं।”

सीपियों के मरने या खराब होने की दर 30 से 40 प्रतिशत है। डॉ. नीना एक बार में दस हजार मोती उगाती हैं और उन्हें डीलर के जरिए मार्किट में बेचा जाता है। वह सोशल मीडिया से भी मोतियों की बिक्री करती हैं।

मोती की खेती को लोकप्रिय बनाने के उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए CIFA ने उन्हें सम्मानित भी किया है। नीना राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में किसानों को मोती की खेती करने की ट्रेनिंग दे रही हैं। अभी तक तकरीबन 400 किसानों को वह प्रशिक्षित कर चुकी हैं। तीन दिनों तक चलने वाले उनके इस कोर्स की फीस पांच हजार रुपये है। जिसमें वह किसानों को तकनीकी और व्यावहारिक दोनों तरह की जानकारी मुहैया कराती हैं।

पार्ट टाइम खेती से कर रहे अच्छी कमाई

राजस्थान के किशनगढ़ में रहनेवाले नरेंद्र कुमार उन किसानों में से एक हैं जिन्होंने डॉ. नीना से 2016 में मोती की खेती करने का प्रशिक्षण लिया था। आज वह भी मोती की खेती कर रहे हैं।

वह कहते हैं, “CIFA से बुनियादी जानकारी लेने के बाद मैंने कुछ दिन नीना के खेत में गुजारे। उन्होंने मुझे कंक्रीट के तालाब में मोती उगाने के हर कदम के बारे में विस्तार से बताया था। खेतों में जाकर सीखना काफी आसान और एक नया अनुभव था। आज मैं पार्ट टाइम खेती करके चार लाख रुपये सालाना कमा लेता हूं।”

यदि आपकी भी रुचि मोती की खेती में हैं और आप डॉ. नीना से संपर्क करना चाहते हैं तो उनके फेसबुक पेज से जुड़ सकते हैं।

मूल लेख- गोपी करेलिया

संपादन- जी एन झा

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