नवसारी के पास अंभेटी गांव के कमलेश पटेल (Organic Farmer) अपनी एक एकड़ जमीन पर सालों से केमिकल वाली खेती करके गन्ना उगा रहे थे। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बिना भी खेती हो सकती है, ऐसा उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। साल 2015 तक वह खेती से सामान्य से भी कम मुनाफा कमा रहे थे और खेती को नुकसान का सौदा ही मानते थे। लेकिन वह कहते हैं न अच्छे लोगों का साथ और सही ज्ञान, इंसान की सोच में बड़े बदलाव ला सकता है।
ऐसा ही कुछ हुआ कमलेश के साथ भी, उनके दोस्त जतिन, उन्हें जबरदस्ती सुभाष पालेकर के जीरो वेस्ट शिविर में लेकर गए। कमलेश कहते हैं, “मुझे प्राकृतिक खेती पर बिल्कुल यकीन नहीं था, मेरे दोस्त ने तीन दिन के शिविर के पैसे भरे और मैं उसके कहने पर वहां गया। लेकिन सुभाष पालेकर जी की बात ने मुझ पर जादू जैसा असर किया।”
तीन दिन के बाद चौथे दिन कमलेश एक गाय लेकर घर वापस गए और पुरे गांववालों को कह दिया कि ‘आज से मेरे खेतों में केमिकल की एंट्री बंद।’
गांव के लोगों ने उन्हें पागल समझा। कमलेश कहते हैं कि जिस दिन उनके खेत में गन्ने की कटाई थी, उस दिन पूरा गांव फसल देखने पंहुचा। सब यह देखकर हैरान थे कि एक बीघा जमीन में 45 टन गन्ना निकला। इससे पहले कमलेश भाई ने 35 टन से ज्यादा फसल कभी नहीं काटी थी।
जब किसानों ने Organic Farmer कमलेश को दी चुनौती
कमलेश, प्राकृतिक खेती (Organic Farming) को खुद तक सिमित रखने के बजाय, सभी किसानों तक पहुंचाना चाहते थे। लेकिन गांव के किसान लाभ देखने के बाद भी मानने को तैयार नहीं थे।
कई किसानों ने कमलेश भाई से कहा कि अगर खाद बनाकर दो, तो हम कोशिश कर सकते हैं। कमलेश भाई ने इस चुनौती को भी स्वाकीर किया और बिल्कुल कम दाम में 3000 बैग्स घन जीवामृत यानी गोबर और प्राकृतिक चीजों से बनी खाद बनाकर लोगों को दी ।
बात एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंची और कमलेश भाई (Organic Farmer) ने भी ज्यादा से ज्यादा किसानों को जैविक खेती से जोड़ने का संकल्प किया। आज वह 25 से 30 हजार बैग्स जैविक खाद बनाते हैं, जिसके लिए वह गौशाला से गोबर खरीदते हैं और घन जीवामृत प्रति बैग 220 रुपये में बेचते हैं। साथ ही अब उनके पास सात एकड़ जमीन भी है, जिसमें वह खेती करते हैं और उनकी पत्नी पूनम पटेल, खाद बनाने में उनकी मदद करती हैं। उस एक शिविर को कमलेश भाई अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं और सफलता की शुरुआत भी।
संपादनः अर्चना दुबे
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