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एक छोटे-से बदलाव ने बदली किस्मत, आज यह किसान कमा रहा है सालाना 35 लाख रुपये

साल 2009 तक, महाराष्ट्र के संगमनेर तालुका के निमाज गांव के तुकाराम गुंजल, अपने चचेरे भाइयों के साथ अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करते थे। 12 एकड़ खेत में, तन-तोड़ मेहनत करने के बावजूद, मुश्किल से उनका गुज़ारा हो पाता था। वह सालों से पारंपरिक तरीके से खेती करके प्याज, गेहूं, गन्ना जैसी मौसमी फसलें उगाते थे।  

57 वर्षीय तुकाराम, द बेटर इंडिया को बताते हैं, “पारंपरिक खेती से हमारी कमाई और जीवन शैली में कोई प्रगति नहीं हो रही थी।” इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करते हुए वह बताते हैं, “हमारी कमाई का तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा मजदूरों को मजदूरी देने में खर्च हो जाया करता था। हमारी कमाई कम और खर्च बहुत ज्यादा था।”

उन्हें अपनी फसल के लिए मजदूरों पर निर्भर रहना पड़ता था और इसी वजह से, उन्होंने खेती में बदलाव करने का फैसला किया। तुकाराम का कहना है कि वह अपनी स्थिति से काफी निराश थे। जिसके बाद उन्होंने अलग-अलग फसलों के साथ नए प्रयोग करने की शुरुआत की।

उन्होंने पहले दो एकड़ जमीन पर खेती शुरू की और बारी-बारी से टमाटर, गेंदा और तुरई उगाना शुरू किया। बदलते फसल पैटर्न के साथ, उन्होंने मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई जैसे नए खेती के तरीकों को अपनाया। नई तकनीकों से उनकी खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्चा भी कम हो गया। आज वह, अपनी 12 एकड़ जमीन से 35 लाख रुपये कमा रहे हैं। इसके साथ ही, वह साल में पूरा एक महीना खेती से छुट्टी भी ले पाते हैं।  

बाजार की जरूरत के अनुसार करते हैं खेती  

अपनी खेती के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, “मैं मई के महीने में अपने खेत जोतता हूँ। खेत को तैयार करने के लिए मैं छह ट्रैक्टर भरकर, गाय के गोबर और पोल्ट्री कचरे का इस्तेमाल करता हूँ। एक बार जमीन खेती के लिए तैयार हो जाने के बाद, जून के पहले हफ्ते से लगभग 8,000 गेंदे के पौधे उगाए जाते हैं और इन्हें सितंबर में काटा जाता है। अक्टूबर की शुरुआत में अगली फसल यानी टमाटर की खेती होती है। टमाटर की फसल के तकरीबन 75% तक तैयार हो जाने के बाद, तुरई की बुवाई भी शुरू हो जाती है।” 

तुकाराम का कहना है कि खेती में इस पैटर्न को अपनाकर, वह बाजार की मांग के अनुसार फसलें तैयार कर पाते हैं। साथ ही, उन्हें फसलों की सही कीमत भी मिल जाती है। उन्होंने बताया, “हर फसल की कटाई का समय डेढ़ या दो महीने में आता है। कभी-कभी, पहले फसल चक्र के दौरान फसलों की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती, लेकिन दूसरे फसल चक्र में अच्छी कीमत मिलती है, इस तरह नुकसान वसूल हो जाता है। हम अपनी उपज को सही योजना बनाकर बेचते हैं, जब आस-पास के इलाकों में किसी फसल की आपूर्ति कम होती है, तब हम अपनी फसलें बाहर भेजते हैं।”

वह कहते हैं, “संगमनेर, सूरत, पुणे और मुंबई में टमाटर की काफी मांग है। वहीं भावनगर और सूरत में गेंदे के फूल की अच्छी कीमत मिलती है। तुरई की मांग सूरत और पुणे के बाहरी इलाकों में ज्यादा है।  

तुकाराम का कहना है कि मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन के अलावा, उन्होंने अपने खेत में एक करोड़ लीटर की क्षमता वाला एक तालाब और दो कुएं भी बनवाए हैं। उन्होंने बताया, “इन स्रोतों की वजह से खेतों में पानी की सही आपूर्ति हो पाती है। फसलों के लिए उचित मात्रा में पानी मिल पाने के कारण पैदावार भी अच्छी होती हैं।” 

इसके अलावा, उन्होंने कीट नियंत्रण के लिए अपने खेतों में सोलर ट्रैप लाइटें भी लगवाई हैं। वह बताते हैं, “ऐसा नहीं है कि सभी कीड़े, फसलों के लिए खराब होते हैं। लेकिन कुछ कीड़े होते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुचाते हैं, सोलर ट्रैप लाइटें रात में नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को ट्रैप करती हैं। ये लाइट्स सुबह पांच बजे अपने आप बंद भी हो जाती हैं। सुबह के समय खेत में आने वाले कीड़े अलग किस्म के होते हैं, यह परागण का काम करते हैं, जिससे खेतों में उत्पादकता बढ़ती है।  

तुकाराम के खेत देखने आए किसान

मेहनत से मिली सफलता  

तुकाराम का कहना है कि वह पिछले एक दशक से, अपने प्रयासों और कुछ बदलावों को अपनाने के बाद, खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव, जानकारी और खेती में मिली सफलता का मंत्र, अब तक 200 से अधिक किसानों के साथ साझा किया है, ताकी दूसरों को भी फायदा पहुंच सके।  

अकोले तालुका के लिंगदेव गांव के एक किसान, विक्रम पवार कहते हैं, “मेरे एक रिश्तेदार से मुझे तुकाराम की सफलता के बारे में जानने को मिला। साल 2011 के आसपास मैं उनके संपर्क में आया था और तब से, वह मेरी खेती से जुड़ी हर गतिविधि के गुरु और मार्गदर्शक बन गए हैं।” 

विक्रम का कहना है कि उन्होंने तुकाराम से मल्चिंग तकनीक और टमाटर की खेती के तरीके सीखे। इससे उन्हें पहले ही सीजन में 3.5 लाख रुपये का मुनाफा भी हुआ। वह आगे बताते हैं, “तुकाराम ने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया है। वह फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मेरी हर संभव मदद करते हैं। 

साथ ही, उन्होंने मार्केट लिंक से जुड़ने में भी मेरी मदद की है। मैं हर मौसम में फसलों को चुनने और उपज के लिए सही बाजारों की पहचान करने के लिए, उनसे सलाह लेता हूं।” 

तुकाराम का कहना है कि कई किसान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और अन्य राज्यों से भी उनके खेत में आते हैं। वह बताते हैं, “वे मेरी खेती में उपयोग की जाने वाली तकनीकों को समझने के लिए, कुछ दिनों तक मेरे साथ रुकते भी हैं। कुछ ऐसे किसान भी सलाह के लिए आते हैं, जिनके पास 200 एकड़ जमीन है, उनकी मदद करके मुझे ख़ुशी मिलती है। हर किसान को मेरी एक ही सलाह है – आप फसल रोपने से पहले अपने खेत की जमीन को अच्छे से तैयार करें और खेती के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।” 

अंत में तुकाराम कहते हैं, “मैं हर किसान से आग्रह करता हूं कि मेहनत और जोश के साथ खेती करें और ईमानदारी से प्रयास करें। यदि कोई किसान मेहनत और ईमानदारी के साथ अनुशासन का पालन करते हुए खेती करता है तो उसे सफलता जरूर मिलती है।   

मूल लेख- हिमांशु नित्यवारे 

संपादन- अर्चना दुबे

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