दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहने वाली सुप्रिया एक स्कूल टीचर हैं और उन्होंने लगभग डेढ़ साल पहले जैविक खेती शुरू की थी, ताकि वह अपने परिवार को रसायन मुक्त भोजन उपलब्ध करा सकें। आज सुप्रिया का दायरा इतना व्यापक हो गया है कि वह अपनी कंपनी ‘फार्म टू होम’ के तहत सौ से अधिक परिवारों को शुद्ध फल-सब्जी और अन्य किराना सामानों की आपूर्ति सुनिश्चित कर रही हैं। उनका अर्बन एग्री मॉडल किसानों और उपभोक्ताओं के लिए एक उदाहरण है।
सुप्रिया ने द बेटर इंडिया को बताया, “आज के दौर में रसायन युक्त उत्पादों के सेवन से हमारे स्वास्थ्य को काफी नुकसान हो रहा है, इसी वजह से मैंने अपने परिवार को शुद्ध सब्जियाँ उपलब्ध कराने के लिए जैविक खेती शुरू की। इसके तहत मैंने साल 2018 में, अपने घर से 12 किमी दूर कराला में लीज पर 1 एकड़ जमीन ली और पहली बार में ही आलू, गोभी, पालक जैसी 17 सब्जियों को लगाया, जिसमें डेढ़ लाख रुपए की लागत आई।“
वह आगे बताती हैं, “मुझे उत्पादों को बेचने में कोई दिक्कत नहीं आई, क्योंकि हमारे पड़ोसियों ने इसे अच्छी कीमत पर खरीद लिया था। लेकिन, खेती के दौरान कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। क्योंकि, यह एक ऐसा कार्य है, जिसमें पूरा समय देना पड़ता है और स्कूल जाने की वजह से खेती करने में काफी दिक्कत होती थी। इसके अलावा, हमने लागत को कम करने के लिए किसी मजदूर को भी नहीं रखा था।“
फिलहाल, सुप्रिया पाँच एकड़ जमीन पर खेती करती हैं और उनके साथ 10-12 जैविक किसान भी जुड़े गए हैं।
उन्होंने बताया, “हम हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश के किसानों से आम, अमरूद, केला जैसे कई फलों को खरीदते हैं। लेकिन, इससे पहले हम उनके खेत जाकर और वहाँ के अन्य किसानों से पूछताछ कर, यह सुनिश्चित करते हैं कि वे जैविक खेती के मानकों को पूरा कर रहे हैं या नहीं।”
इस तरह, हर हफ्ते 300-350 फलों और सब्जियों की होम डिलीवरी की जाती है और प्रोसेसिंग से लेकर पैकिंग को पूरा करने के लिए नियमित तौर पर सात लोगों को नौकरी पर रखा गया है। साथ ही, उन्होंने आर्डर लेने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है और बिलिंग के लिए एक सॉफ्टवेयर खरीदा है। वहीं, ग्राहकों को ऑनलाइन भुगतान की सुविधा दी गई है। यह कार्य एक आईटी पेशेवर की निगरानी में होता है।
खास बात यह है कि सुप्रिया ने पहले सिर्फ गार्डनिंग की थी और उन्हें खेती का थोड़ा-सा भी अनुभव नहीं था। उन्होंने यह सबकुछ ऑनलाइन सीखा। इसके बारे में सुप्रिया कहती हैं, “आर्ट ऑफ लिविंग का एक कार्यक्रम देखकर, खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए शुरुआती चार महीने तक इसमें कुछ नहीं लगाया और सिर्फ ग्रीन मैन्यूरिंग की। वैसे किसान ऐसा करने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि उनके लिए एक मौसम की फसल काफी मायने रखती है।“
सुप्रिया ने बताया, “मैं कीटनाशकों को बनाने के लिए, खेतों के आस-पास मौजूद खर-पतवार को उबालती हूँ और इससे जो रस निकलता है उसे गोमूत्र में मिला देती हूँ। फिर, इसमें निश्चित मात्रा में पानी मिलाया जाता है, ताकि हल्का हो जाए। साथ ही, हम जीवामृत बनाने के लिए गाय के अपशिष्टों का उपयोग करते हैं।“
वहीं, अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर सुप्रिया कहती हैं, “मैं सुल्तानपुर में एक रिश्तेदार के साथ 4 एकड़ जमीन पर खेती की योजना बना रही हूँ। इसके अलावा हरियाणा के सोनीपत में 4 एकड़ जमीन है, जहाँ मैं जल्द ही एक पर्माकल्चर विकसित करूंगी। वहाँ हम कई फलों, सब्जियों और अनाजों की खेती करेंगे साथ ही रूरल टूरिज्म को ध्यान में रखकर उस फार्म को डेवलप किया जाएगा ताकि लोग अपनी छुट्टियां भी बिता सकें और बच्चे ऐसी चीजों से परिचित हो सकें जिसे वे शहरों में नहीं देख पाते हैं।“
जैविक खेती शुरू करने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए सुप्रिया का सुझाव:
- हमेशा गाय के अपशिष्टों से खाद बनाएँ।
- कीटनाशक के लिए नीम और गो-मूत्र का इस्तेमाल करें।
- गर्मी के मौसम में पौधों का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि इस मौसम में कीट ज्यादा लगते हैं।
- ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई करें, इससे पानी की बचत होती है।
- अपने उत्पादों को मंडी के बजाय बाजार में बेचने की कोशिश करें, इससे आपका अधिकतम लाभ सुनिश्चित होगा।
अंत में, वह कहती हैं कि यदि कोई पहली ही फसल में लाभ कमाने के उद्देश्य से जैविक खेती शुरू करना चाहता है, तो यह थोड़ा जोखिम भरा हो सकता है। क्योंकि, यूरिया और अन्य रसायनों की वजह से जमीन की उर्वरा शक्ति को काफी नुकसान होता है और यदि आप जीवामृत का उपयोग करते हैं, तो इसका सार्थक परिणाम मिलने में थोड़ा वक्त लगता है।
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप सुप्रिया से 9868910401 पर संपर्क कर सकते हैं।
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