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52 की उम्र में सीखी नयी तकनीक, चीया सीड्स उगाकर कमा रहीं तीन गुना मुनाफा

A lady farmer growing chia seeds

कर्नाटक के एचडी कोटे तालुका की आदिवासी महिला, प्रेमा की कहानी काफी दिलचस्प है। वह हमेशा से अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर थीं। लेकिन जब साल 2007 में राज्य सरकार ने उन्हें नागरहोल जंगल से सोलेपुरा रिज़र्व फॉरेस्ट में बसाया, तब उनके लिए काफी कुछ बदल गया।

साल 2007 में पुनर्वास के बाद, प्रेमा को खेती करने की सलाह दी गई। लेकिन प्रेमा के लिए यह सबकुछ नया था, उन्होंने पहले कभी खेती नहीं की थी। इसलिए पहले उन्होंने जेएसएस कृषि विज्ञान केंद्र और जैविक कृषि केंद्र से ट्रेनिंग ली और फिर अपने खेतों में रागी, शरीफा, कपास, मक्का और अन्य व्यावसायिक फसल उगाने लगीं।

उनकी फसल तो अच्छी हो रही थी, लेकिन आमदनी कम थी। दिन रात मेहनत करने के बाद भी प्रेमा कुछ खास नहीं कमा पा रही थीं और रही-सही कसर जंगली जानवरों ने पूरी कर दी। उनके खेत में जंगली जानवर घुस आए और सारी फसल चौपट कर दी। उनके तीन एकड़ के फार्म में काफी नुकसान हुआ।

बाजार में इस सुपर फूड की है काफी डिमांड

पिछले कुछ सालों में प्रेमा ने मकई और कपास की खेती को छोड़कर चिया की तरफ रुख किया। आज वह चिया की खेती करके हजारों रुपये कमा रही हैं और आस-पास के लोगों को भी इस खेती के फायदे बताकर, उन्हें इससे जोड़ रही हैं। इस दक्षिण अमेरिकी बाजरे यानी चिया की आज बाजार में काफी डिमांड है। इसे सुपर फूड भी कहा जाता है। 

प्रेमा ने साल 2017-18 में केवीके की एक ट्रेनिंग कोर्स के दौरान चिया सीड की खेती के बारे में जाना था। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने इसकी एक वीडियो देखी थी। तब मुझे पता चला कि चिया की खेती, पारंपरिक खेती से ज्यादा मुनाफा देती है। मैं इससे काफी प्रभावित हुई और इस ओर जाने का मन बना लिया।”

तीन गुना बढ़ी कमाई 

Prema harvesting beans

52 वर्षीया प्रेमा कहती हैं, “हमारे इलाके में एक एकड़ जमीन पर कपास की खेती करने से 20 हजार रुपये की कमाई होती है। लेकिन इतनी ही जगह पर हम चिया सीड्स से 1.20 लाख रुपये तक कमा सकते हैं।”

कृषि विशेषज्ञों की सलाह से प्रेमा ने जैविक खेती की तकनीक सीखी और चिया उगाना शुरू कर दिया। उनकी फसल 280 रुपये किलो बिकती है। वह बताती हैं, “शहरी बाजार में चिया की काफी ज्यादा डिमांड है। इसका पता मुझे तब चला, जब बेंगलुरु के एक जैविक रिटेलर ने फसल खरीदने के लिए मुझसे खुद संपर्क किया। मैंने अपनी फसल को सीधा बेचा था। मुझे न तो किसी बिचौलिए की जरूरत पड़ी और ना ही फसल को मार्केट में लाने, ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट पर खर्च करना पड़ा। इससे मेरा खर्चा कम हो गया और फायदा बढ़ गया।”

वह कहती हैं कि 30 किसानों ने उनकी चिया की खेती को अपनाया, जिनमें से केवल छह ही सफल हुए। प्रेमा अकेली ऐसी थीं, जिन्हें काफी अच्छी पैदावार मिली और एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी हुई।

चिया को उगाना है आसान

प्रेमा का कहना है कि ये कम लागत में ज्यादा लाभ देने वाली फसल है। इसके अलावा इस इलाके में इसे उगाना भी आसान है। चिया के लिए कम उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। वह बताती हैं, “इस फसल को ज्यादा पानी नहीं चाहिए और जिस तरह से रागी की फसल उगाते हैं, ठीक उसी तकनीक से इसे उगाना है। मैं सितंबर-अक्टूबर में फसल बोती हूं। इस समय मॉनसून काफी कमजोर पड़ जाता है, लेकिन जितनी भी बारिश होती है, वह इस फसल के लिए काफी है। पौधों में फूल आने में लगभग 40 दिन तक का समय लग जाता है।”

प्रेमा के अनुसार, यह फसल जंगली सुअर, हाथियों और अन्य जंगली जानवरों को आकर्षित नहीं करती है। इसलिए फसल बर्बाद होने का भी डर नहीं रहता।

उन्होंने अपनी पहली फसल से 1.20 लाख रुपये कमाए और अपने पति दासप्पा के लिए टू व्हीलर खरीदा। वह बड़े ही गर्व से कहती हैं, ”हमारे लिए शहर में आना-जाना अब काफी आसान हो गया है।”

बदलाव की बहार

Prema in her farm

महिला किसान का कहना है कि वह और उनके पति दासप्पा अपनी बाइक पर जाते हैं। आसपास के गांवों में घूमकर लोगों को चिया की खेती के बारे में बताते हैं और उन्हें खेती की बारीकियां समझाते हैं।

दासप्पा कहते हैं, “चिया की खेती ने हमारी काफी मदद की है और अब हम दूसरों की मदद करना चाहते हैं। ताकि वे भी हमारी तरह अपनी आमदनी बढ़ा सकें। कई बार तो हमें किसानों को खेती के बारे में जानकारी देने के लिए 50 किलोमीटर दूर तक के गांवों में जाना पड़ता है।” उन्होंने बताया कि वे किसानों को चिया के बीज भी बेचते हैं, जिससे उनकी आमदनी थोड़ी और बढ़ गई है। अब तक वह 15 किसानों को चिया की खेती करने में मदद कर चुके हैं।

नई तकनीक से जुड़ें और आगे बढ़ें

चूंकि अब नए किसान चिया की खेती से जुड़ने लगे हैं, तो फसल की कीमत भी कम हो गई है। वह बताते हैं, “जैसे-जैसे ज्यादा किसान इस खेती से जुड़ने लगे, वैसे-वैसे इलाके में उत्पादन भी बढ़ने लगा है। जिसके चलते फसल की कीमत कम मिलने लगी है और एक एकड़ जमीन पर हमारी आय घटकर 80 हजार रुपये रह गई है, फिर भी हम निराश नहीं हैं। कपास की खेती से हम जितना कमाते थे, अब भी उससे तीन गुना ज्यादा ही कमा रहे हैं।”

प्रेमा के अनुसार हर किसान को आगे बढ़ना चाहिए। वह अपने अनुभवों से मिली सीख को साझा करते हुए कहती हैं, “किसान को हमेशा नई तकनीक से अपडेट रहना चाहिए और बाजार की बदलती मांग को समझना चाहिए। मैंने गांव में बहुत से किसानों को आगे बढ़ते और अपने फायदे के लिए तकनीक बदलते देखा है। बदलते वक्त के साथ बदलने से किसान न केवल तरक्की करेगा, बल्कि इससे उसकी आमदनी भी बढ़ेगी।”

मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे

संपादनः अर्चना दुबे

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