नौकरी करते हुए किसानी करना आसान नहीं है लेकिन कुछ लोग हैं जो यह काम बखूबी कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में श्रीधर राव और किशोर कोंडा का नाम शामिल है। तेलांगना में हैदराबाद की कंपनी, परमती टेक्नोलॉजीज में काम करने वाले ये दोनों लोग पिछले तीन सालों से किसानी भी कर रहे हैं। उन्होंने हैदराबाद से 50 किमी दूर भुवनगिरी में 11 एकड़ ज़मीन लीज पर ली और वहां प्राकृतिक खेती शुरू की।
किशोर ने द बेटर इंडिया को बताया कि वह पिछले 15 सालों से आईटी सेक्टर में काम कर रहे हैं और श्रीधर 11 सालों से। उन दोनों ने ही 7 साल पहले परमती कंपनी को जॉइन किया था और यहीं पर उनकी दोस्ती हुई। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई और उन्होंने साथ में ही खेती करने का फैसला किया।
किशोर बताते हैं कि उनके पिता को किचन गार्डनिंग का शौक था और बचपन में वह भी उनके साथ यह करते थे। लेकिन पढ़ाई और नौकरी के चक्कर में यह सब कहीं छूट गया। फिर कुछ सालों पहले उन्होंने प्राकृतिक खेती और सुभाष पालेकर के बारे में पढ़ा और वहीं से उन्हें लगा कि उन्हें खेती करनी चाहिए।
लेकिन खेती शुरू करने से पहले उन्होंने इस बारे में काफी रिसर्च की। उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलांगना के बहुत से किसानों से इस बारे में विचार-विमर्श किया, उनसे समझा और जाना। लगभग 2-3 साल की रिसर्च के बाद उन्होंने अपनी बचत के पैसे लगाकर खेती की शुरूआत की।
“खेती शुरू करने के पीछे हमारा उद्देश्य सिर्फ अपने परिवार और अपने आस-पास के लोगों के लिए शुद्ध और स्वस्थ खाना उगाना है,” उन्होंने बताया।
किशोर और श्रीधर ने सुभाष पालेकर की जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग तरीकों से खेती शुरू की। उन्होंने अपने खेत को ‘पृथ्वी नेचुरल फार्म्स’ का नाम दिया। किशोर के मुताबिक जब उन्होंने शुरुआत की थी तब चार लोग साथ में थे। लेकिन जैसा कि सब जानते हैं कि खेती में बहुत मेहनत है और जब आप पहली बार कर रहे हों तो परेशानी और बढ़ जाती हैं। इसके साथ-साथ किशोर और उनके दोस्त जॉब भी कर रहे थे तो उनके लिए यह बैलेंस बनाना आसान नहीं था। इसी जद्दोज़हद में उनके दो दोस्तों ने दूसरे ही साल में खेती छोड़ दी।
अब सारी ज़िम्मेदारी किशोर और श्रीधर पर आ गई लेकिन उन दोनों ने हार नहीं मानी। बल्कि वे और भी दृढ़ विश्वास के साथ अपने काम में जुट गये। सबसे अच्छी बात यह थी कि किशोर के परिवार उन्हें काफी सपोर्ट किया। किशोर के भाई भी उन दोनों के साथ खेत की देख-रेख करते हैं। इससे काफी कम आसानी से हो जाते हैं, क्योंकि वह मिल-बांटकर सभी काम कर लेते हैं।
उन्होंने खेती के लिए तीन गाय खरीदी और फसलों के लिए सभी पारंपरिक और देशी बीज खरीदे। किशोर कहते हैं, “हम 5 तरह के चावल, 4 तरह की दालें, मौसमी सब्ज़ियाँ और लगभग 4 तरह के मिलेट्स उगा रहे हैं। चावलों में बहुरूपी, नारायण कामिनी, नवरा, कुराकर जैसी किस्में हैं तो दालों में मसूर, मुंग, उड़द आदि हम उगा रहे हैं। सभी कुछ प्राकृतिक तरीकों से उगाया जाता है।”
शुरू-शुरू में उनके लिए देसी बीज खरीदना भी बहुत मुश्किल हो रहा था लेकिन अब वह पिछले तीन सालों से सिर्फ देसी बीजों से खेती कर रहे हैं। उन्होंने 200 किसानों को चावल की अलग-अलग किस्मों के बीज मुफ्त में दिए हैं। किशोर कहते हैं कि स्वस्थ खाना उगाने के साथ-साथ उनका उद्देश्य पारंपरिक बीजों को सहेजना भी है।
धीरे-धीरे वह अपने खेतों को इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी कि मिश्रित खेती की तरफ लेकर जा रहे हैं। तीन गायों से उनके खेत की ज़्यादातर ज़रूरतें पूरी हो रही हैं और आगे उनकी कोशिश है कि वह पोल्ट्री फार्मिंग/मुर्गी पालन भी शुरू करें।
किशोर और श्रीधर ने नेचुरल फार्मिंग पर वर्कशॉप करना भी शुरू किया है। वह शामंयु ग्लोबल स्कूल से जुड़े हुए हैं और वहां बच्चों को नेचुरल फार्मिंग के बारे में बताते हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने फार्म पर भी अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाना शुरू किया है। उनके लिए वह नेचुरल फार्मिंग इवेंट्स रखते हैं और खेतों से जाते समय उन्हें अपने खेतों की उपज भी देते हैं।
किशोर आगे बताते हैं कि उनकी फसलों की मार्केटिंग लोगों द्वारा ही हुई है। उन्हें अपनी उपज के लिए बाज़ार ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उनके कंपनी में लगभग 500 कर्मचारी हैं और सबको एक-दूसरे के ज़रिए पता चला गया कि हम खेती कर रहे हैं। बहुत से हमारे सहकर्मियों ने हमसे अनाज और दालें खरीदने में दिलचस्पी दिखाई और हमें हमारे ग्राहक मिल गए।
आज लगभग 300 ग्राहकों से वो सीधे जुड़े हुए हैं और उन्हें किसी भी बिचौलिए और बड़े बाज़ार की ज़रूरत नहीं है। किशोर कहते हैं कि उनके ग्राहकों का फीडबैक उनका हौसला और बढ़ा देता है।
उनसे सब्ज़ियाँ खरीदने वाले हर्ष कहते हैं कि उन्होंने बाज़ार की सब्जियों में और पृथ्वी फार्म्स की सब्जियों में काफी अंतर पाया। सबसे पहले तो स्वाद में आपको अंतर पता चलेगा। उनका कहना है कि पृथ्वी फार्म्स की सब्ज़ियाँ रसायनमुक्त और शुद्ध हैं।
उनके एक और ग्राहक, त्रिलोक चंदर कहते हैं, “मैं काफी समय से उनसे सब्ज़ियाँ खरीद रहा हूँ और फिर चावल भी खरीदने शुरू किए। मेरी माँ को भी ये चावल पसंद आए क्योंकि ये जैविक और देशी हैं। मैंने उनके फार्मिंग इवेंट में भी भाग लिया है और खेती के बारे में काफी-कुछ समझा। मुझे ख़ुशी है कि मैं उनका नियमित ग्राहक हूँ।”
किशोर कहते हैं कि आगे उनकी कोशिश किसानों की मदद करने की भी है। जो भी किसान रसायन मुक्त खेती करना चाहता है उसे वह हर संभव तरीके से, बीजों से लेकर उनकी फसल के लिए ग्राहकों ढूंढने तक, मदद करने के लिए तैयार हैं। अब तक 20 किसान उनके पास प्राकृतिक खेती समझने आए हैं और किशोर व श्रीधर ख़ुशी-ख़ुशी उनकी मदद कर रहे हैं।
वारंगल जिले के किसान, कशोजू रमेश का कहना है, “मैं अपने खेतों में प्राकृतिक खेती करना चाहता था और तब मुझे पृथ्वी फार्म्स से मदद मिली। उन्होंने देशी बीज देने के साथ-साथ पौध बनाने और फिर इसे लगाने में भी मदद की। पहले केमिकल के इस्तेमाल की वजह से मुझे काफी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती थीं लेकिन जब से मैं प्राकृतिक तरीके अपना रहा हूँ, मेरा स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है। साथ ही, हमारी लागत भी काफी कम हुई है। पिछली बार मैंने 2 एकड़ में चावल उगाए थे और इस बार 3 एकड़ में लगाए हैं।”
किशोर और श्रीधर कहते हैं कि उनकी कोशिश उन किसानों को फिर से खेती से जोड़ने की है जो खेती छोड़कर छोटे-मोटे काम करने लगे हैं। उन किसानों को फिर से खेती से जोड़कर उन्हें सस्टेनेबल किसानी की राह दिखाना उनका उद्देश्य है, ताकि ज्यादा से ज्यादा ज़मीन को एक बार फिर उपजाऊ बनाया जा सके।
“हालांकि, प्राकृतिक खेती तक का हमारा यह सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। खासतौर पर आईटी सेक्टर में नौकरी के साथ खेती करना बहुत ही मुश्किलों से भरा सफ़र है। कभी-कभी तो हमारा दिन सुबह 3 बजे से शुरू होकर रात के 9 बजे खत्म होता है। इस बीच हम सबसे पहले खेतों पर जाते हैं, वहां की गतिविधियाँ देखते हैं और फिर अपनी जॉब पर जाते हैं। ज्यादातर हम छुट्टी वाले दिन खेत पर ही होते हैं। मुश्किलें हैं लेकिन इनका नतीजा बहुत ही अच्छा है क्योंकि हम रसायनमुक्त खाना अपने परिवारों को दे पा रहे हैं,” किशोर ने अंत में बताया।
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