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हरियाणा: इस किसान का कमाल, पराली से कमाए 45 लाख, सैकड़ों किसानों को भी पहुँचा रहे लाभ

Waste to money

हरियाणा के कैथल जिला स्थित फराज माजरा गाँव के किसानों का दावा है कि पिछले दो वर्षों के दौरान, उनके खेतों और आस-पास के 8 गाँवों में पराली जलाने से जहरीले धुएँ का उत्सर्जन नहीं हुआ।

सर्दियों के मौसम में पूरे उत्तर भारत में कई कारणों के कारण वायु प्रदूषण का स्तर उच्च हो जाता है। धान की फसल की कटाई के बाद खेतों को रबी की फसल की बुवाई के लिए, यहाँ के किसान खेतों को जल्दी खाली करने के मकसद से बड़े पैमाने पर पराली जलाते हैं। जिससे पूरे क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर उच्च हो जाता है। यह स्थिति दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में काफी गंभीर रूप धारण कर लेती है। 

लेकिन, फराज माजरा गाँव के एक 32 वर्षीय किसान वीरेंद्र यादव ने न सिर्फ बेहतर पराली प्रबंधन के जरिए पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया, बल्कि इससे 45 लाख रुपये भी कमा डाले।

यह कैसे हुआ संभव

दरअसल, वीरेंद्र यादव हास्पिटैलिटी की पढ़ाई करने के लिए साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया गए थे। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद, उन्होंने एक फल दुकान में ग्राहक सेवा प्रबंधक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन, लेकिन माँ की तबीयत खराब होने के कारण उन्हें साल 2015 में देश वापस लौटना पड़ा।

वीरेन्द्र यादव

इस कड़ी में वीरेन्द्र ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं यहाँ के प्रदूषण के स्तर को देखकर हैरान था, जो पराली जलाने की वजह से हो रही था। इस जहरीले धुएँ के कारण मेरी माँ को फेफड़ों की बीमारी हो गई थी। और, मेरी बेटी और पत्नी को भी सांस लेने में दिक्कत होने लगी।”

इसके बाद, उन्होंने इस समस्या को लेकर बेहद गंभीरता से सोचा। लेकिन, उन्होंने जल्द ही महसूस किया कि सिर्फ अपने 4 एकड़ जमीन पर पराली को जलाने से रोकने के बाद, कोई फायदा नहीं होगा। इसके लिए स्थाई समाधान की जरूरत है। इसलिए, उन्होंने इस समस्या के दीर्घकालिक समाधानों के लिए शोध करना शुरू किया।

इसी सिलसिले में, वीरेन्द्र 2018 के अंत में, इस समस्या के समाधान के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों से बात की। इसके बाद, अधिकारियों ने उन्हें कई पराली प्रबंधन के उपकरणों के विषय में जानकारी दी और आवश्यक सब्सिडी और दस्तावेज़ों के बारे में भी बताया।

इस तरह, वीरेन्द्र ने साल 2019 में पराली को प्रबंधित करने के लिए दो बेलर खरीदे और 2020 में कृषि विभाग से मिली सब्सिडी के साथ दो अन्य। 

खेत में बेलर से पराली को जमा किया जा रहा है।

इस मशीन के जरिए, खेतों से फसल के अवशेषों को जमीन से उखाड़ने के बाद, उसे खेतों में लाइन अप किया जाता है। फिर, बेलर इसे प्रोसेस करने के लिए जमा करते हैं, ताकि इसे छोटे-छोटे ब्लॉक में तब्दील किया जा सके। इसे एक रस्सी द्वारा बाँधा जाता है। फिर, ये स्टैक को कारखानों को बेचे जाते हैं।

200 से अधिक किसान जुड़े

लेकिन, वीरेंद्र ने इस लाभ को अपने खेत तक सीमित नहीं रखा और अनुसंधान और तकनीकों को दूसरे किसानों के साथ भी साझा किया। वह कहते हैं, “आज मुझसे सिरता, सीवान, खानपुर, पट्टी अफ़गान, खेरी गुलाम अली, पोलाद, मंडी और कावरतन के 200 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं और पराली प्रबंधन के इन तरीकों को अपना कर लाभ कमा रहे हैं।”

वह बताते हैं, “साल 2019 में, सभी गाँवों से 60,000 क्विंटल पराली संग्रह किया गया। इस साल अभी तक कुल 5,500 एकड़ जमीन से 48,000 क्विंटल जमा किए जा चुके हैं। इस स्टबल को एक नजदीकी पेपर मिल और एग्रो-इंडस्ट्री को 135 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा गया।”

इस तरह पिछले 2 वर्षों में वीरेन्द्र ने इससे 1.5 करोड़ रुपए का कारोबार किया। जिसमें श्रम, डीजल और आवाजाही के खर्चों को काटने के बाद, वह करीब 45 लाख रुपए बचाने में सफल रहे।

वीरेंद्र का मार्गदर्शन करने वाले कृषि विभाग के उप निदेशक करम चंद का कहना है कि वीरेन्द्र ने वाकई कमाल का काम किया है और वह उनसे काफी प्रभावित हैं।

करम बताते हैं, “हमारे पास पराली प्रबंधन को लेकर तकनीकी समाधान प्राप्त करने के लिए हर साल करीब 100 किसानों के आवेदन आते हैं। इसके बाद, हम किसानों का एक समूह बनाते हैं और एक बार प्राप्त होने पर, उन्हें कृषि उपकरण 80% से अधिक सब्सिडी के साथ दिए जाते हैं।”

सभी के लिए रोल मॉडल

करम कहते हैं, “वीरेन्द्र के इस कोशिश को लेकर खास बात यह है कि उन्होंने किसानों, मजदूरों और उपकरण धारकों का एक समुचित नेटवर्क बनाया है। जिसके तहत, वह खेतों से पराली को साफ करने के लिए सभी संसाधनों का मिलजुल कर इस्तेमाल करते हैं।”

वह आगे कहते हैं, “वीरेन्द्र ने क्षेत्र के अन्य किसानों के समक्ष एक मिसाल कायम की है। पराली प्रबंधन के प्रभावी तरीकों को अपनाने के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया और व्यापक पैमाने पर दूसरे किसानों को प्रेरित करने के लिए उन्हें कई सरकारी कार्यक्रमों में भी आमंत्रित किया गया है।”

वहीं, वीरेन्द्र अंत में कहते हैं, “आज कई किसान पराली जलाने के दुष्प्रभावों को समझ रहे हैं। हमें यह समझना जरूरी है कि हमारे पास पराली को जलाने और पर्यावरण को प्रदूषित करने के अलावा, इसे बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के कई समाधान उपलब्ध हैं। जरूरत है बस एक कोशिश करने की।”

देखें वीडियो –

मूल लेख: HIMANSHU NITNAWARE

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संपादन – जी. एन झा

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