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तालाब नहीं मिट्टी में उगाए सिंघाड़े, एक एकड़ से कमाया डेढ़ लाख रुपये का मुनाफा!

त्तर-प्रदेश के सहारनपुर जिले में बसे गाँव नंदीफ़िरोज़पुर में रहने वाले 52 वर्षीय किसान, सेठपाल सिंह पिछले कई वर्षों से मिश्रित खेती कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि उनकी खेती जैविक तरीकों से होती है। खेती में कुछ भी नया एक्सपेरिमेंट करने से वह नहीं घबराते हैं क्योंकि उनका मानना है जब तक किसान कुछ इनोवेटिव नहीं करेंगे तब तक वे आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

द बेटर इंडिया को अपने सफर के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “हमारा संयुक्त परिवार है, हम 6 भाई हैं। मैं अपने एक भाई के साथ मिलकर खेती का काम संभालता हूँ और बाकी सब भाई नौकरी करते हैं। मैंने होम्योपैथी में डिग्री हासिल की है और गाँव में क्लिनिक भी चलाया। लेकिन साल 1995 से जीवन बिल्कुल ही बदल गया।”

1995 में उन्हें गाँव का प्रधान बनाया गया। इसके बाद उन्हें गाँव की, खासतौर पर किसानों की परेशानियों को गौर से समझने का मौका मिला। वह बताते हैं कि गाँव के प्रधान के तौर पर उनकी ज़िम्मेदारी थी कि वह गाँव के सही विकास में अपना योगदान दें।

ऐसे में, वह गाँव को किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने सहारनपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) में आना जाना शुरू किया। यहाँ पर कृषि वैज्ञानिकों से उन्होंने खेती के अलग-अलग इनोवेटिव तरीकों के बारे में जाना-समझा। केवीके में उन्हें पारंपरिक फसलों के साथ-साथ अन्य फसल जैसे कि फल, फूल और सब्ज़ियाँ आदि की खेती करने की सलाह दी गई।

Sethpal Singh

“हमारी भी अपनी काफी ज़मीन है, लगभग 40 एकड़। हम पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन केवीके की ट्रेनिंग और वर्कशॉप के बाद कुछ अलग करने की दिलचस्पी बढ़ी। मैंने खुद खेतों में काम करना शुरू किया और फरसबी/फ्रेंच बीन्स लगाई। बहुत से लोग मुझे कहते थे, ‘ये क्या कर रहे हो आप प्रधान साहब,’ ‘आप ये सब क्यों करोगे।’ लेकिन मुझे खेती में ही कुछ अलग करना था,” उन्होंने आगे कहा।

धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी और उन्हें खेती में सफलता मिली। उन्होंने अपने खेतों में पारंपरिक फसलों जैसे गेंहूँ, चावल, दलहन, गन्ना आदि के साथ सब्ज़ियाँ और फलों के बाग लगाना शुरू किया। उन्होंने केवीके से खुद अपने खेतों में जैविक खाद और जैविक उर्वरक बनाना सीखा।

खेत में उगाए सिंघाड़े

सेठपाल सिंह की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने तालाब की जगह अपने खेतों में सिंघाड़े की खेती की है और अच्छा-खासा मुनाफा भी कमाया है। उन्होंने एक बार किसी टीवी प्रोग्राम में खेतों में सिंघाड़े की फसल देखी और वहीं से उन्हें भी यह करने की इच्छा हुई। उन्होंने केवीके में जाकर इस बारे में पूछा और वहां के एक्सपर्ट्स ने उन्हें इसकी जानकारी दी।

वह बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने अपनी 1 एकड़ ज़मीन को सिंघाड़े की खेती के लिए तैयार किया। उन्होंने इस खेत के चारों तरफ 2 से 3 फीट तक ऊँची मेंढ़ बनाई और फिर इसमें 1 फीट की ऊँचाई तक पानी भर दिया।

“खेत तैयार करके इसमें जैविक उर्वरक आदि डाले और फिर जून में मैंने सिंघाड़े की रोपाई की। इसके पौधों के बीच में 2 मीटर की दूरी रखी ताकि सिंघाड़े की बेल को फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिले,” उन्होंने बताया।

His Chestnut farm

स्वच्छ पानी और जैविक उर्वरकों की मदद से उनकी सिंघाड़े की काफी अच्छी उपज हुई। साथ ही, इसकी मिठास भी काफी अच्छी थी । उन्होंने सिर्फ एक एकड़ से लगभग डेढ़ लाख रुपये के सिंघाड़े बेचे। उनकी इस सफलता ने उनके गाँव के अन्य किसानों को भी सिंघाड़े की खेती करने के लिए प्रेरित किया है।

सेठपाल के मुताबिक, सिंघाड़े की खेती में लागत बहुत ही कम लगती है  और जो भी खर्च आता है वह इसकी तुड़ाई पर आता है। सिंघाड़े की तुड़ाई के लिए उन्हें लेबर की ज़रूरत पड़ती है और अब वे सिंघाड़े का बीज भी तैयार करते हैं।

रिले क्रॉपिंग से मिला अच्छा मुनाफा

रिले क्रॉपिंग का मतलब होता है एक के बाद एक फसल लगाना और सेठपाल को सब्ज़ियों की खेती में इस तरीके से काफी फायदा हुआ। सिंघाड़े की खेती के बाद उन्होंने खेत से पानी निकाल दिया। बाकी जो भी एग्रो-वेस्ट मतलब कि सिंघाड़े की बची-कुची बेल, पत्ते आदि को खेत में ही रहने दिया ताकि यह जैविक खाद बन सके। इसके बाद, इसी खेत में जनवरी के महीने में मेथी लगाई, जिसकी फसल उन्होंने मार्च में ली।

मेथी के बाद उन्होंने खेत को दो बराबर भागों में बाँटकर एक तरह फरसबी और एक तरफ लोबिया बोए। अप्रैल के पहले हफ्ते में उन्होंने इन दोनों फसलों की रोपाई की और जून के महीने में उपज ली। इसके साथ, फरवरी के महीने में उन्होंने प्लास्टिक के बैग्स में करेले की पौध भी बनाई और फिर फरसबी व लोबिया की कटाई के बाद इसे खेत में लगा दिया।

He has been doing Multi-cropping and relay cropping since years now.

करेले की बेल ऊपर की तरफ चढ़े, इसके लिए उन्होंने खेत में बांस लगवाकर, उन पर तार बंधवाए। जून से सितंबर तक उन्होंने करेले की फसल ली। करेले के बाद उन्होंने लौकी और उसके बाद पालक बोई। सेठपाल बताते हैं कि एक साल तक उन्होंने इसी तरह से एक के बाद एक सब्ज़ी की खेती की और इससे उन्हें लगभग 4 लाख रुपये का फायदा हुआ।

इसके बाद, उन्होंने उसी एक एकड़ में फसल बदलने के लिए चावल की पूसा 1509 किस्म लगाई। वह गर्व के साथ बताते हैं कि बिना किसी पेस्टीसाइड और केमिकल का इस्तेमाल किए उन्होंने 750 किलोग्राम प्रति बीघा चावल का उत्पादन लिया।

“इतनी उपज का कारण था मिट्टी की उर्वरकता। मैंने एक-डेढ़ साल तक यहाँ अलग-अलग सब्ज़ियाँ लगाई जिनमें सिर्फ जैविक खाद का इस्तेमाल हुआ। साथ ही, एग्रो-वेस्ट को भी मैं मिट्टी में गलने देता हूँ ताकि यह खाद का ही काम करे,” उन्होंने कहा।

He is also growing wheat, rice, and pulses.

जैविक तरीकों से मिश्रित खेती

सेठपाल बताते हैं कि वह कभी भी पराली नहीं जलाते और न ही कभी अपना खेत जोतते हैं। इससे उनकी ज़मीन में पोषक तत्वों की कोई कमी नहीं रहती। उन्होंने अपने खेतों में ही वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट बनाई हुई हैं। साथ ही, वह पशुपालन पर भी जोर देते हैं। उनका मानना है इस तरह की इंटीग्रेटेड खेती से ही आप सस्टेनेबिलिटी की तरफ बढ़ते हैं।

आज उनके खेतों में कुछ ज़मीन फलों के पेड़ों के लिए समर्पित है। उनके यहाँ 160 आम के पेड़ हैं और 122 अमरुद के। वह बताते हैं कि सीजन में वह 250- 300 क्विंटल फलों की बिक्री करते हैं। उनके फल उत्तर-प्रदेश के अलावा, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भी जाते हैं।

उन्होंने अपने खेतों में ही थोड़ी-सी ज़मीन अलग रखकर और उसमें तालाब बनाकर मछली पालन करना भी शुरू किया है। इस तालाब के चारों तरफ उन्होंने केले, आडू और लीची के कुछ पेड़ लगायें हैं ताकि तालाब पर थोड़ी छाँव बनी रहे।इसके अलावा, कीटों को फलों से दूर रखने के लिए उन्होंने कुछ देशी तकनीक अपनाई हुई हैं।

“मेरे खेतों में जहां-जहां बल्ब लगा हुआ है, मैं उसके नीचे ज़मीन में गड्ढा करके उसमें एक पॉलिथीन बिछा कर पानी भर देता हूँ और उसमें मिट्टी के तेल की चंद बूंदे डालता हूँ। इससे रात को जो भी कीट आते हैं वह बल्ब की रौशनी की तरफ खींचते हैं और फिर मिट्टी के तेल की गंध से वे नीचे पानी में गिर जाते हैं,” उन्होंने बताया।

He has composting units in his farm

सेठपाल सिंह पूरे साल मल्टी-क्रॉपिंग और रिले-क्रॉपिंग करते हैं। उनके मुताबिक, खेतों में एक ही फसल बार-बार बोने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होती है। इससे बचने के लिए ज़रूरी यह है कि हम अपनी नहीं, ज़मीन की ज़रूरत के हिसाब से योजना बनाएं। आज उनके यहाँ सबकुछ शुद्ध और जैविक है, जिस वजह से उन्हें मंडी में भी अच्छा दाम मिलता है।

उनकी सफलता उनके गाँव के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणा है। समय-समय पर सेठपाल अपने गाँव में भी किसानों के लिए गोष्ठी आदि का आयोजन कराते हैं। उनका उद्देश्य है कि वह किसानों को मिश्रित खेती से जोड़ें। वह कहते हैं,

“मुझे किसी फसल में घाटा नहीं होता है, बल्कि आज मैं हर दिन मुनाफा कमा रहा हूँ। इसलिए मैं किसानों को सिर्फ यही कहता हूँ कि किसानी के साथ-साथ उद्यमी भी बनें। फसलों के अलावा वैल्यू एडीशन की तरफ भी बढ़ें।”

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप सेठपाल सिंह से 9012911278 पर कॉल करके संपर्क कर सकते हैं!

संपादन – अर्चना गुप्ता


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