राजस्थान में पीलीबंगा के गाँव चौबीस एसटीजी से ताल्लुक रखने वाले भंवर सिंह पिछले 6-7 सालों से लगातार किसानी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी छत पर ग्रीन हाउस बनाने से शुरूआत की थी और आज उन्होंने जयपुर के पास 7 बीघा ज़मीन पर रसायन मुक्त संतुलित खेती का एक मॉडल फार्म खड़ा कर दिया है। इस फार्म में वह न सिर्फ खुद अच्छा उत्पादन ले रहे हैं बल्कि अन्य किसानों को भी निशुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं।
एक किसान परिवार से संबंध रखने वाले भंवर सिंह, लगभग 15 साल पहले जयपुर आए थे। यहाँ पर उन्होंने किसी की मदद से रियल एस्टेट का बिज़नेस शुरू किया और वह अच्छा चल निकला। इस व्यवसाय से उन्होंने अपने घर-परिवार की स्थिति को काफी मजबूत कर दिया था।
वह बताते हैं, “गाँव में मेरे दादाजी खेती करते थे और पिताजी को क्रय-विक्रय सहकारी समिति में छोटी-सी नौकरी मिल गई थी। उसी से हमारे घर-परिवार का खर्च चल जाता था। मुझे खेती में आगे बढ़ना था हालांकि शुरूआत में यह काम नहीं कर सका और मुझे रियल एस्टेट में आना पड़ा।”
भंवर सिंह का परिवार एक अच्छी ज़िंदगी जी रहा था लेकिन गाँव से और देशी चीजों से उनका रिश्ता कभी नहीं टूटा। जब कभी उन्हें मौका मिलता, वह प्रकृति की गोद में पहुँच जाते। वह बताते हैं कि जैसे-जैसे समय बीता तो उनकी पत्नी को गठिया और बेटे को सांस की बीमारी होने लगी। वजह का पता किया तो बहुत सी जगह यही कहा गया कि शुद्ध हवा-पानी और खाना नहीं है। पत्नी और बेटे की तबियत में थोड़ा सुधार हो इसलिए उन्होंने कुछ समय उदयपुर के एक आश्रम में बिताने की ठानी।
जुड़ा जैविक और स्वस्थ खेती से नाता:
भंवर सिंह ने द बेटर इंडिया को बताया, “उस आश्रम में हमने जानवरों के लिए काम किया और साथ ही, एक ग्रीन हाउस वहां लगाया ताकि अच्छी-ताज़ी सब्ज़ियाँ उग सकें। वहां पर काम करते हुए मेरे मन में ख्याल आया कि जब यहाँ हम ग्रीन हाउस की तकनीक समझकर लगा सकते हैं तो यह मैं अपने घर में भी करूँ। बस फिर क्या था मैंने अपने घर में ग्रीन हाउस बनाया लेकिन अब समस्या यह थी कि जैसे ही पेड़-पौधे बड़े होते उनमें कोई बीमारी लगने लगती। मैंने लोगों से पूछा, एक्सपर्ट्स से सलाह ली, सभी ने कहा कि यह बीमारी है और अगर केमिकल डालेंगे तो खत्म हो जाएगी और सब्ज़ियाँ भी अच्छी होंगी।”
लेकिन भंवर सिंह को केमिकल डालकर खेती नहीं करनी थी। उन्होंने बार-बार प्रयास किए, मिट्टी में सफलता नहीं मिली तो कोकोपीट पर आ गए, लेकिन उसमें पोषक तत्व नहीं थे। पोषक तत्वों के लिए उन्होंने अन्य विधियाँ जैसे जीवामृत, वर्मीकंपोस्ट आदि बनाकर डाला। इस तरह करते-करते उन्हें तीन साल में जैविक और स्वस्थ तरीके से सब्ज़ियाँ उगाने में सफलता मिली।
जब उनके अपने घर की छत पर अच्छा उत्पादन होने लगा तो उन्होंने जयपुर के और भी कई परिवारों के यहाँ ग्रीन हाउस लगाया। ये लोग जैविक उपज तो चाहते थे लेकिन खुद कोई मेहनत नहीं करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि सभी काम भंवर सिंह ही करें। लेकिन इससे भंवर सिंह को घाटा होने लगा और उन्होंने दूसरों के यहाँ ग्रीन हाउस बनाने का काम छोड़ दिया।
इसके बाद, उन्हें जयपुर के ही बड़े व्यवसायी से उनकी हज़ार बीघा ज़मीन पर एक जैविक और प्राकृतिक जंगल तैयार करने का काम उन्हें मिला। यहाँ पर उन्हें उनके काम के लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रति महीना मिल रहे थे। लेकिन भंवर सिंह संतुष्ट नहीं थे।
वह कहते हैं कि उनके मन में यही उधेड़-बुन रहती कि वह उन किसानों तक नहीं पहुँच रहे हैं जिन्हें उनकी ज़रूरत है। व्यवसायी तो किसी एक्सपर्ट से भी यह काम करा लेंगे। लेकिन किसानों को ऐसे किसी व्यक्ति की ज़रूरत है जो उनकी परेशानियों को समझें और फिर उन्हें उनके हिसाब से समझाए और उनकी मदद करे। इसके बाद, उन्होंने अपना काम छोड़कर खुद खेती करने और अन्य किसानों को जैविक से जोड़ने का फैसला किया।
जैविक जागरूकता अभियान:
साल 2018 में भंवर सिंह ने कृषि विभाग की मदद से पूरे राजस्थान में ‘जैविक जागरूकता अभियान’ भी चलाया था। उन्होंने बताया कि इसके दौरान उन्होंने पूरे राजस्थान का भ्रमण किया, हर एक गाँव में किसानों से मिले। वहां की मिट्टी और ज़मीन के बारे में जाना-समझा। उन्हें जैविक खेती का महत्व समझाया और साथ ही, उन किसानों से भी मिले जो पहले से ही जैविक खेती कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “इस एक यात्रा ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। मैंने सीखा कि हमारी ज़रूरत सिर्फ जहर मुक्त जैविक खेती नहीं है बल्कि एक संतुलित खेती है। ऐसा उत्पादन जिसमें सभी तरह के पोषक तत्व हों। हम जैविक खेती भी करते हैं तब भी हमें ध्यान देना चाहिए कि हमारी मिट्टी में हर एक पोषक तत्व हो।”
भवर सिंह कहते हैं कि किसी भी किसान को सबसे पहले मिट्टी की जाँच करानी चाहिए। अब मान लीजिये आपकी मिट्टी में आयरन की कमी है और आप उसी मिट्टी में पलक उगा रहे हैं और उसी मिट्टी में उगा चारा आप अपने पशुओं को भी खिला रहे हैं। लेकिन इसमें से किसी भी फसल में आयरन भरपूर नहीं होगा और फिर उस खेत में उगी पलक कितनी भी खालें, आयरन की कमी तो रहेगी ही। अब इसे कैसे पूरा किया जाए।
इसके लिए, वह बताते हैं कि आप कहीं से लोहे का डस्ट पाउडर ले आएं और इसे एक महीने के लिए छाछ में डालकर रखें। इसके बाद इसे दो महीने के लिए गाय के गोबर में मिला कर रखें। फिर इसे पूरे खेत में डाला जाएगा। कुछ समय बाद , जब आप मिट्टी की जाँच करेंगे तो देखेंगे कि मिट्टी में आयरन की मात्रा उचित है।
उन्होंने बताया कि अभियान के बाद उन्होंने अपने फेसबुक के माध्यम से देश भर के किसानों को उनके फार्म पर संतुलित खेती की ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया। दो दिन की इस ट्रेनिंग के लिए उनके यहाँ लगभग 1200 किसान आए।
इसके अलावा, देशभर के किसान सोशल मीडिया के माध्यम से उनसे जुड़े हुए हैं और समय-समय पर उनसे कुछ न कुछ सीखते रहते हैं।
तैयार किया मॉडल फार्म:
जयपुर के पास 22 गोदाम सर्किल पर उनका 7 बीघे का फार्म है, जिसे उन्होंने मॉडल फार्म की तरह तैयार किया है। इसमें वह रसायन-मुक्त संतुलित खेती कर रहे हैं और काफी अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
भंवर सिंह बताते हैं कि वह मल्टी-क्रॉपिंग तरीके से फसलें उगा रहे हैं। उन्होंने फिलहाल अपने खेत में 22 अलग-अलग सब्जियां लगाई हुई हैं जिनमें ब्रोकली, पत्ता गोभी, धनिया, लौकी, तोरई, पेठा, टमाटर, ककड़ी, खीरा, आदि शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने पपीता और अमरुद के पेड़ लगाए हुए हैं जिनसे उन्हें अच्छा उत्पादन मिल रहा है।
“मैंने 8 फीट के बेड पर ब्रोकली, उसके दोनों तरफ लौकी और फिर टमाटर लगाए हुए हैं। टमाटर के पेड़ बढ़ते हैं और लौटी की बेल भी ऊपर की ओर बढ़ रही है तो ब्रोकली को इससे छाया मिल जाती है। इसी तरह दूसरी फसलें भी एक-दूसरे के साथ लगाई हुई हैं ताकि एक फसल दूसरी फसल को सहारा दे। इससे आप कम जगह में ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं,” उन्होंने बताया।
वह कहते हैं कि उनकी फसल उगाने की सभी विधि संतुलित है और वह कोई भी रसायन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इससे उन्हें उत्पादन तो अच्छा मिल ही रहा है, साथ ही, ग्राहक खुद उनके यहाँ से आकर सब्ज़ियाँ ले जाते हैं। जी हाँ, वह अपनी उपज सीधा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं न कि किसी मंडी में। लोग उनके फार्म पर अपने बच्चों के साथ आते हैं ताकि बच्चे देख सकें कि सब्ज़ियाँ कैसे उगती हैं और यहीं से फल और सब्जियां लेकर जाते हैं।
“मैं अपनी सब्जियों से एक बीघे में ढाई-तीन लाख रुपये की कमाई करता हूँ। साथ ही, फलों से भी मुझे लगभग 3 लाख रुपये की कमाई होती है। साथ ही, हमारी गुणवत्ता का भी कोई मुकाबला नहीं। इस तरह से हम लोगों को अच्छा और स्वस्थ खाना भी दे रहे हैं और साथ ही, हमें भी अच्छा मुनाफा हो रहा है,” भंवर सिंह ने बताया।
आगे की योजना:
भंवर सिंह का सपना है कि हमारे देश में जैविक उत्पाद सिर्फ एक तबके तक ही सीमित न रहें, बल्कि हर एक आम नागरिक तक ये पहुंचे। वह चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा किसान संतुलित खेती करें ताकि उत्पादन ज्यादा हो और फिर जैविक के लिए अलग से मूल्य रखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। अगर मूल्य सामान्य होगा तो आम से आम नागरिक भी इसे खरीद पाएगा।
“मैं जैविक को हर एक गली-मोहल्ले तक पहुँचाना चाहता हूँ। यह तभी संभव है जब किसान भी जागरूक हों और ग्राहक भी। मैं अपनी तरफ से यही कर सकता हूँ कि अगर किसी किसान भाई को हमारी ज़रूरत है तो हम उनकी यथा संभव मदद करने के लिए तैयार हैं। आप मुझे फेसबुक या फिर सीधा मेरे नंबर पर संपर्क कर सकते हैं,” उन्होंने अंत में कहा।
यह भी पढ़ें: बांस की खेती से करोड़पति बना महाराष्ट्र का यह किसान!
यदि आप भंवर सिंह पीलीबंगा से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पर मैसेज या फिर 089495 62019 पर कॉल कर सकते हैं!