गाँव लौटने का साहस हर किसी में नहीं होता है, खासकर ऐसे लोग जो कॉर्पोरेट सेक्टर में ऊंचाई को छू रहे हों और इसी बीच उनके मन में गाँव लौटने का ख्याल आता है और वह मन की सुन लेते हैं। ऐसा बहुत कम होता है लेकिन आज हम आपको जिस व्यक्ति की कहानी सुनाने जा रहे हैं, उन्होंने 16 लाख रूपये सालाना की नौकरी को छोड़कर गाँव लौटकर खेती करने का फैसला किया।
ओडिशा के संबलपुर जिला के गुरला गाँव के रहने वाले 36 वर्षीय किसान संदीप खंडेलवाल पिछले 6 साल से जैविक खेती कर रहे हैं। उनका 25 एकड़ का एक फार्म है। उन्होंने पुणे के सिम्बायोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नेस मैनेजमेंट से एमबीए किया है।
इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु और पुणे की अच्छी MNC कंपनियों के साथ काम भी किया। लगभग 8 साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने के बाद उन्होंने अपने गाँव लौटकर खेती शुरू की। संदीप का यह सफर बहुत से उतर-चढ़ावों से भरा हुआ रहा है। अपने इस सफर के बारे में उन्होंने द बेटर इंडिया को विस्तार से बताया।
कैसे हुई शुरूआत
संदीप बताते हैं, “गाँव में हमारी पुश्तैनी ज़मीन थी। हालाँकि, पिता जी ने कभी खेती नहीं की, उनका ट्रांसपोर्ट का व्यापार था। मैंने दसवीं तक की पढ़ाई गाँव में की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई संबलपुर से की। मैंने पुणे से एमबीए किया और फिर कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी शुरू कर दी। मैं अपनी कंपनी में काफी अच्छे पद पर था और उस समय मेरी सालाना कमाई 16 लाख रुपये थी। लेकिन नौकरी करते हुए मुझे अहसास हुआ कि मैंने ज़िंदगी में कोई वैल्यू-एडिशन नहीं किया है। अगर मैं कंपनी में रहता तो ज्यादा से ज्यादा कुछ सालों में सीईओ बन जाता, लेकिन फिर क्या?”
गाँव के लिए कुछ करने की इच्छा जागी
संदीप कहते हैं कि नौकरी के दौरान उन्हें लगने लगा कि वह जो कर रहे हैं सब अपने लिए ही कर रहे हैं, दूसरों के लिए वह कुछ नहीं कर रहे हैं। इसी बीच उन्हें अपने गाँव और अपने समुदाय के लिए कुछ करने का विचार आया। वह कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे गाँव के लोगों की ज़िंदगी बेहतर हो। वह ग्रामीणों के लिए रोजगार का जरिया बनना चाहते थे। वह एक ऐसा काम शुरू करना चाहते थे, जिसमें गाँव में ही लोगों को रोजगार मिले और ऐसा सिर्फ खेती के ज़रिए ही संभव था। लगभग एक साल तक काफी सोचने-विचारने के बाद और अपना एक बैकअप प्लान तैयार कर संदीप नौकरी छोड़कर अपने गाँव पहुँच गए।
और संदीप पहुँच गए गाँव
“घरवालों को मेरा फैसला पूरी तरह समझ में नहीं आया था। उन्हें चिंता भी हुई लेकिन फिर उन्होंने मेरे मन को समझने की कोशिश की। उन्हें लगा कि मैं कुछ दिन करूँगा और फिर लौट आऊंगा। लेकिन मैं लौटने के लिए नहीं आया था, बहुत बार ख्याल ज़रूर आया कि छोड़ दूँ पर हमेशा अपने फैसले पर टिका रहा तो इतना लम्बा सफर तय कर गया,” उन्होंने आगे कहा।
साल 2014 में वह अपने गाँव लौटे और खेती की शुरुआत की। वह कहते हैं कि शुरूआती दो-ढाई साल सिर्फ ज़मीन को जैविक तरीकों से तैयार करने और किसानी के गुर सीखने में ही गया। उन्होंने अलग-अलग जगह पर जाकर ऑर्गेनिक फार्मिंग के ट्रेनिंग प्रोग्राम्स लिए। पश्चिम ओडिशा किसान यूनियन के एक सदस्य, सरोज भाई ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया और दूसरे जैविक किसानों से जोड़ा। लगभग ढाई साल बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपनी खेती के क्षेत्र को फैलाया।
उन्होंने अपने खेत को नाम दिया है- Starters Farm और अपने इस फार्म में वह साल भर में अलग-अलग तरह की कई फसलें लेते हैं। वह सिर्फ एक ही तरह की फसल पर निर्भर नहीं है। संदीप ने किसानी को बिज़नेस मॉडल की तरह विकसित किया है। वह बताते हैं, “यहाँ सिंचाई की भी समस्या थी। मैंने ड्रिप इरीगेशन की व्यवस्था कराई ताकि पानी की बर्बादी नहीं के बराबर हो। अब ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से ही हम खेतों में पानी और तरल जैविक खाद देते हैं।”
संदीप ने बताया कि वह अपनी 7 से 8 एकड़ ज़मीन पर जैविक तरीकों से धान उगाते हैं। इसके अलावा, वह सब्जी और फूल की खेती कर रहे हैं। वह दो एकड़ में हरी मिर्च की खेती करते हैं और साल में सो बार इससे फसल लेते हैं। उन्हें 2 एकड़ से एक साल में लगभग 500 क्विंटल हरी मिर्च की उपज मिलती है। हरी मिर्च के अलावा वह स्वीट कॉर्न, खीरा, तरबूज, बैंगन, धनिया, पालक, और भिंडी आदि भी उगा रहे हैं। स्वीट कॉर्न की खेती के साथ वह लोबिया की फसल की सहफसली करते हैं।
संदीप अपने फार्म के दो एकड़ जमीन में गेंदे की खेती कर रहे हैं। अपनी फसलों के लिए वह सभी तरह के खाद और पोषक तत्व खुद ही तैयार करते हैं। उनकी खेती गाय आधारित है। उनके पास 4 गाय हैं और ज़रूरत के हिसाब से वह बाहर से भी गोबर खरीदते हैं। इस गोबर को घास और खेतों से बचे फसल के अवशेषों के साथ मिलाकर वह खुद खाद तैयार करते हैं। इसी खाद को उनके खेतों में डाला जाता है।
इसके अलावा वह नीमखली, सरसों की खली का इस्तेमाल करते हैं और पेस्टिसाइड के लिए वह नीम का तेल या भांग का पानी, इस तरह के जैविक विकल्प इस्तेमाल करते हैं।
22 लोगों को दिया रोजगार
संदीप ने अपने फार्म में 22 लोगों को काम पर रखा हुआ है। ये सभी उनके परमानेंट स्टाफ हैं। उन्हें महीने की सैलरी दी जाती है और साथ में, अपने कामगारों के लिए उन्होंने कुछ अन्य पहल भी की हैं। महीने में उन्हें 2 दिन की छुट्टी भी दी जाती है। इसके साथ-साथ संदीप उनके बच्चों की पढ़ाई और परिवार के स्वास्थ्य के लिए भी मदद करते हैं। उनकी कोशिश अपने कामगारों को हर वह सुविधा देने की है जो अक्सर किसी कंपनी की जॉब में मिलती है।
“मैंने खेती सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं की बल्कि खेती शुरू करने का कारण था लोगों के लिए कुछ कर पाने की चाह। इसलिए मेरी सोच यही है कि जैसे-जैसे मेरा फार्म आगे बढ़े और ज्यादा मुनाफा हो, वैसे-वैसे यहाँ काम करने वालों का लाइफस्टाइल भी बेहतर हो। उनके बच्चों की पढ़ाई अच्छी हो। उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी जगह मिलें और यह सब अपने गाँव में ही रहकर हो,” उन्होंने आगे कहा।
संदीप के मुताबिक सालभर में वह लगभग 10 लाख रुपये अपने खेत पर खर्च करते हैं। जिसमें सबसे ज्यादा खर्च उनके कामगारों की सैलरी का है। जैविक खेती की वजह बाकी साधनों पर लागत बहुत ही कम है। जबकि उन्हें साल भर में लगभग 25 लाख रुपये की कमाई होती है।
पिछले साल से उन्होंने 2 एकड़ में तालाब बनाकर मछली पालन भी शुरू किया है। अपनी आगे की योजना के बारे में संदीप बताते हैं, “मैं मछली पालन को एडवांस लेवल पर ले जाना चाहता हूँ। इसके अलावा, एक कम्पोस्टिंग यूनिट भी शुरू करने जा रहा हूँ। फार्म में बहुत जल्दी ही एक नर्सरी की भी शुरूआत होने जा रही है।”
बच्चों के लिए शुरू की पहल
संदीप ने अपने गाँव के बच्चों की शिक्षा के लिए Eduventive नाम से एक पहल भी शुरू की है। इसके ज़रिए उनका उद्देश्य अकादमिक विषयों या फिर किसी सांस्कृतिक कला में अव्वल बच्चों को आगे बढ़ने में सहायता करना है। संदीप अपने गाँव और गाँव वालों के लिए कुछ करना चाहते हैं और इसी राह पर वह आगे बढ़ रहे हैं।
उम्मीद है संदीप खंडेलवाल की कहानी बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा बनेगी!
अगर आप संदीप खंडेलवाल से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9439833841 पर कॉल कर सकते हैं!
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