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ऑटोवाला बना लखपति बिज़नेसमैन, किसानों से मशरूम खरीदकर बनाते हैं फ़ूड-आइटम

Mushroom Farming In Uttar Pradesh

‘बिना जमीन के खेती करें और महीने में लाखों रुपए कमाएं’, साल 2001 में रामचंद्र एस दूबे ने जब अखबार में यह विज्ञापन पढ़ा, तो उन्हें लगा कि कोई है जो लोगों को बेवकूफ बना रहा है। इसलिए, उन्होंने तुरंत विज्ञापन छपवानेवाली कंपनी को फोन करके कहा कि यह संभव ही नहीं है। लेकिन जब दूबे उस कंपनी के लोगों से मिलने पहुंचे, तो उन्हें एक ऐसी खेती के बारे में पता चला, जो वाकई किसानों की जिंदगी बदल सकती थी। यह खेती थी मशरूम की।

दूबे ने पहली बार मशरूम और इसके फायदों के बारे में जाना। लेकिन उस समय उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह मशरूम उगाने का प्रशिक्षण ले पाते। उस समय रामचंद्र अपने परिवार के साथ मुंबई में रहते थे और ऑटो चलाते थे। लेकिन मशरूम की खेती सीखने की चाह उनके दिल में कहीं रह गयी। और आज, लगभग 20 साल बाद, वह उत्तर प्रदेश में अपने पैतृक गाँव में रहकर किसानों को न सिर्फ मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं, बल्कि उनसे मशरूम खरीदकर बाजारों तक पहुंचा भी रहे हैं। अपने इस पूरे सफर के बारे में उन्होंने द बेटर इंडिया को विस्तार से बताया। 

साल 1980 में गए थे मुंबई 

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के भदौही के रहनेवाले, 62 वर्षीय रामचंद्र 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही मुंबई चले गए थे। मुंबई में उनके पिता एक मिल में काम किया करते थे और धीरे-धीरे उन्होंने अपने पूरे परिवार को मुंबई में बसा लिया। रामचंद्र जब मुंबई पहुंचे, तो कुछ समय उन्होंने एक मिल में काम किया और फिर 1981 में ऑटो चलाने लगे। 

Ramachandra S Dubey

वह कहते हैं, “मुंबई में काम करना आसान नहीं था। मुझे मिल में काम करना पसंद नहीं था, इसलिए ऑटो चलाना शुरू किया। लेकिन इस काम में भी मुश्किलें आई। इसलिए, मैंने ठान लिया था कि अगर कोई रोजगार की तलाश में हमारे गाँव-बिरादरी से शहर आएगा, तो मैं उसकी मदद करूँगा।”

रामचंद्र ने ऐसा किया भी। उन्होंने बहुत से लोगों की मदद की। वह एक दिन में लगभग 10 घंटे ऑटो चलाते थे, जिसमें से आठ घंटों की कमाई अपने परिवार के लिए रखते थे और बाकी दो घंटों की, लोगों की मदद के लिए। कई सालों तक ऑटो चलाने के बाद, उन्हें एक ‘कॉपरेटिव सोसाइटी’ शुरू करने का मौका मिला। इसके अंतर्गत, वह लोगों का पैसा जमा करते और उन्हें लोन आदि दिया करते थे। कुछ समय तक यह काम बहुत अच्छा चला। लेकिन फिर कुछ लोगों की धोखाधड़ी के कारण, उन्हें यह काम बंद करना पड़ा। 

वह बताते हैं, “इस काम में बहुत नुकसान हुआ, लेकिन मैंने सबके पैसे लौटाए और एक बार फिर नई शुरुआत की। मैंने कुछ समय तक अपनी दुकान चलाई और फिर एलआईसी एजेंसी लेकर काम शुरू किया। 2017 में गाँव लौटने से पहले तक, मैं एलआईसी एजेंसी ही चला रहा था।” 

2017 में लौटे गाँव 

रामचंद्र कहते हैं कि वह गाँव, हमेशा के लिए नहीं लौटे थे। जौनपुर जिले के पचोली गाँव में उनकी जमीन है, जिसके सिलसिले में उन्हें अक्सर गाँव आना पड़ता था। 2017 में भी वह जमीन के काम से ही आए थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस बार वह गाँव के ही होकर रह जाएंगे। गाँव में दो-तीन हफ्ते रहकर ही उन्हें लगने लगा कि क्यों न वह अपनी जमीन पर खेती करने की कोशिश करें। उन्होंने बताया, “मैं आधुनिक खेती करना चाहता था, इसलिए मैं कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचा और वहां कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों से पूछा। उन्होंने मुझे एक-दो सफल जैविक किसानों का नंबर दिया। मैं उनसे मिला भी, लेकिन फिर भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए।” 

Discussing with people

इसके बाद, जुलाई 2017 में, वह एक बार फिर कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। उस समय वहां कोई सेमिनार चल रहा था। सेमिनार के बाद उन्होंने देखा कि मंच से कुछ पोस्टर हटाए जा रहे थे। इन पोस्टरों के नीचे एक और पोस्टर था- मशरूम प्रशिक्षण का।

“उस पोस्टर को देखकर मुझे 17 साल पुरानी बात याद आ गयी। मैंने तुरंत उस प्रशिक्षण के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया और पांच दिन की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के तीसरे दिन, एक किसान ने पूछा कि मशरूम उगा भी लें, तो इसे खरीदेगा कौन? मुझे याद आया कि मुंबई की उस कंपनी ने कहा था कि आप किसी भी हिस्से में मशरूम उगाएं, हम सब जगह से आपका मशरूम खरीद लेंगे।” 

इसलिए रामचंद्र ने किसानों को विश्वास दिलाया कि अगर कोई किसान मशरूम उगाता है, तो मार्केटिंग की जिम्मेदारी वह लेंगे। वह कहते हैं कि उन्होंने सोचा कि अगर खुद मशरूम की खेती करने की बजाय, वह दूसरे किसानों को जागरूक करके इसकी खेती करवाएं और उन्हें मार्किट प्रदान करें, तो ज्यादा अच्छा रहेगा। हालांकि, उनकी राह इतनी आसान नहीं थी, जितना उन्होंने सोचा था। 

एक-एक करके किसानों को जोड़ा 

सबसे पहले रामचंद्र ने कुछ किसानों के नंबर जुटाए, जिन्होंने मशरूम की ट्रेनिंग की थी, लेकिन इनमें से सिर्फ एक किसान, अरविन्द यादव मशरूम उगाने के लिए तैयार हुए। क्योंकि, अन्य किसान बाजार न मिलने से हताश थे। पर अरविन्द ने उनपर भरोसा दिखाया और ओएस्टर मशरूम उगायी। अरविन्द के लिए भी यह सफर आसान नहीं था। उन्होंने लोगों के विरोध के बावजूद, 900 रुपए की लागत के साथ मशरूम उगाई। इस मशरूम को रामचंद्र ने उनसे 3000 रुपए में खरीदा। पहले तो उन्होंने लोगों को मुफ्त में मशरूम खिलाई। इसके बाद, उन्होंने अपने एक दोस्त की बेटी की शादी में मशरूम की सब्जी बनवायी, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया।

वह बताते हैं कि उन्हें भले ही पहली खरीद से कोई मुनाफा नहीं मिला, लेकिन अरविन्द को 2100 रुपए का फायदा हुआ और इसलिए अन्य किसानों का भी उनपर भरोसा बढ़ने लगा। देखते ही देखते, 13 किसान रामचंद्र के साथ जुड़ गए। हर दिन रामचंद्र उनसे लगभग 50-60 किलो मशरूम खरीदते थे और जौनपुर में ही अलग-अलग दुकानों पर देकर आते थे, लेकिन इसमें से सिर्फ आधे मशरूम ही बिकते थे। 

बाकी बचे हुए मशरूम से उन्होंने, ड्राई मशरूम, पाउडर और अचार आदि बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया, “जब मशरूम का उत्पादन बढ़ने लगा और मुझे अच्छा बाजार नहीं मिल रहा था, तो मैंने मुंबई की उस कंपनी से सम्पर्क किया। लेकिन उन्होंने कहा कि आपने उस समय आधी बात सुनी थी। हम किसी भी जगह से मशरूम खरीदेंगे लेकिन सिर्फ उन्हीं किसानों से, जिन्हें हम ट्रेनिंग और स्पॉन देंगे। हालांकि, उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनके साथ प्रशिक्षण करूँ और एक साल का अनुबंध करूँ, तो वे हमसे मशरूम खरीद लेंगे। लेकिन मुझे यह सही नहीं लगा, इसलिए मैंने अपना एंटरप्राइज शुरू करने का फैसला किया।” 

रामचंद्र के काम के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक, सुरेश कुमार कन्नौजिया कहते हैं, “रामचंद्र बहुत ही एक्टिव हैं। अक्सर लोग ट्रेनिंग लेते हैं और भूल जाते हैं। लेकिन उन्होंने ट्रेनिंग लेने के बाद किसानों के बीच जिस तरह से काम किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने बहुत से किसानों को मशरूम की खेती से जोड़ा है। साथ ही, इस इलाके में किसानों के लिए अच्छा मशरूम का बाजार भी तैयार कर रहे हैं। आज उनके प्रयासों के कारण ही, सैकड़ों किसान मशरूम की खेती से जुड़ना चाहते हैं।” 

शुरू किया अपना एंटरप्राइज 

साल 2018 में उन्होंने ‘अन्नपूर्णा एग्रो एंटरप्राइज‘ की नींव रखी। इस ब्रांड नाम के साथ, वह व्हाट्सएप के माध्यम से मशरूम की मार्केटिंग करने लगे। साथ ही, उन्होंने अपने ब्रांड के उत्पाद, जैसे अचार, पाउडर, बिस्कुट आदि बनाना शुरू किया। दुकानों के साथ-साथ, उन्होंने ग्राहकों से सीधा जुड़ना शुरू किया। रामचंद्र कहते हैं कि अब तक वह लगभग 150 किसानों को मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे चुके हैं, जिनमें से 30 किसान बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन कर रहे हैं। अन्य किसान कम मात्रा से शुरुआत कर चुके हैं। 

वह कहते हैं, “किसानों के लिए ओएस्टर मशरूम उगाना सबसे सरल और सस्ता होता है, लेकिन इस मशरूम के बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है। इसलिए इसका बाजार छोटा है। लेकिन अगर लोगों में जागरूकता हो, तो किसान अच्छे से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”

उनसे ट्रेनिंग लेकर मशरूम लगानेवाले किसान, अजय पटेल बताते हैं कि अब उनके इलाके में मशरूम की मांग बढ़ रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है लोगों के बीच बढ़ती जागरूकता। साथ ही, रामचंद्र खुद किसानों को ट्रेनिंग देने के साथ, स्पॉन, बैग आदि भी उपलब्ध कराते हैं और मशरूम लगने पर, उपज भी खुद खरीद लेते हैं। इससे अब किसानों का भरोसा बढ़ा है।

फिलहाल, वह हर महीने, एक से डेढ़ क्विंटल मशरूम किसानों से खरीदते हैं। इस मशरूम को ताजा, ड्राई और खाद्य उत्पादों के रूप में, वह लगभग 300 ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इससे प्रतिमाह उन्हें लगभग डेढ़ लाख रुपए की कमाई होती है। किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ, प्रोसेसिंग के काम से उन्होंने गाँव की और तीन-चार महिलाओं को रोजगार भी दिया है। वह कहते हैं, “यह अभी सिर्फ शुरुआत है, क्योंकि उन्हें अभी और भी बहुत कुछ करना है। किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ यह खेतों में बचनेवाली पराली की समस्या का भी अच्छा समाधान है। पराली को जलाने की बजाय, किसान इसे चारे के रूप में या मशरूम की खेती के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।” 

अगर आप मशरूम की खेती के लिए मार्गदर्शन चाहते हैं या उनके उत्पाद खरीदना चाहते हैं, तो रामचंद्र से 8169083775 पर संपर्क कर सकते है। रामचंद्र कहते हैं कि वह हमेशा से ही लोगों को साथ में लेकर आगे बढ़नेवालों में से रहे हैं। इसलिए, जब उन्हें अपने गाँव-घर के लोगों को आगे बढ़ाने का मौका मिला रहा है, तो वह पीछे क्यों हटे? उनके जीवन का उद्देश्य किसानों को मशरूम की खेती से जोड़ना और उनकी उपज को सही दामों में बाजार तक पहुँचाना है। वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को मशरूम के बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। 

संपादन- जी एन झा

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