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कहानी MBA पास किसान की, 40 एकड़ खेत में लगाए हज़ारों पेड़, बाँट चुके हैं 15 लाख पौधे

Kapil dev Jha in his Farm (1)

आमतौर पर लोगों को लगता है कि खेतों में काम करनेवाले किसान, कम पढ़े-लिखे या फिर अनपढ़ होते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं। मधुबनी (बिहार) के बिरौल गांव के रहनेवाले कपिल देव झा ना सिर्फ एक प्रगतिशील किसान हैं, बल्कि काफी पढ़े-लिखे भी हैं और उन्होंने हज़ारों पेड़ लगाकर एक मिनी फॉरेस्ट भी तैयार किया है।

साथ ही बेहद साधारण कद-काठी वाले कपिल देव, जो काम कर रहे हैं, वह बहुत ही खास है। दरअसल, कपिल देव ने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए करने के बाद, एक काफी अच्छी कंपनी में 17 साल तक फाइनेंस मैनेजर के पद पर काम किया। साल 2000 में पिता की मृत्यु के बाद, माँ की देख-भाल करने के लिए वह गांव वापस आ गए और तब से गांव के ही होकर रह गए।

बेहद सरल स्वभाव वाले कपिल देव के फ़ार्म पर अगर आप जाएंगे, तो आपका मन बिल्कुल आनंद से भर जाएगा। सड़क के किनारे, 40 एकड़ का उनका बड़ा सा फॉर्म, कुछ फलों के, तो कुछ लकड़ियों के लिए लगाए गए तरह-तरह के पेड़-पौधे, ऐसा लगेगा कि आप किसी घने जंगल में आ गए हैं।

3500+ पेड़ लगा बनाया मिनी फॉरेस्ट, बाटें 15 लाख पौधे

Kapil Dev Jha

कपिल देव ने आपने फॉर्म पर 3500 से भी अधिक आम के पेड़ लगाए हैं। आज के दौर में जहां बाकी किसान ग्राफ्टेड आम पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, वहीं कपिल देव वर्षों पुरानी आम की बीजू वैरायटी को संजो रहे हैं। उनका मानना है कि फायदे कमाने के लिए ग्राफ्टेड आम के पौधे लगाना लाभकारी है, लेकिन जब बात सेहत और लकड़ियों की आती है, तो बीजू आम का कोई मुकाबला नहीं है।

ढेरों पेड़ लगाकर मिनी फॉरेस्ट तैयार करने वाले कपिल के अनुसार, शुगर के रोगी भी बड़े आराम से बीजू आम को खा सकते हैं। अपने जीवन काल के बाद, बीजू आम के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल हम कई तरह के कामों के लिए कर सकते हैं। कपिल ने अपने जीवन काल में अब तक 15,00000 से भी अधिक पौधे बांटने का काम किया है।

उन्होंने आम, नीम, जामुन, कटहल, पीपल, आंवला समेत अनेकों तरह के पेड़ लगवाए हैं। तभी तो इन इलाकों में गर्मी के दिनों में भी सुकून होता है और तापमान नियंत्रित रहता है। कपिल देव के अथक प्रयासों का परिणाम और प्रमाण, दोनों ही आपको आसपास के कई किलोमीटर में फैली घनी बागवानी को देखकर मिल जाएगा।

कपिल देव ने अपने फॉर्म के हर भाग का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। खेतों की मेड़ पर उन्होंने पोपलर के पेड़ लगाए हैं। पेड़ों को मेड़ के पश्चिम और उत्तर दिशा में ही लगाया गया है, जिससे सूर्य की किरणें खेत के हर भाग तक पहुंचती हैं और बेहतर उत्पादन भी होता है।

क्यों गांव के लोग मिनी फॉरेस्ट बनाने वाले कपिल देव को कहते हैं मालिक?

Kapil dev Jha in his farm

कपिल देव ने बागवानी के नीचे की सतह का भी बखूबी इस्तेमाल किया है। वह सघन बागवानी वाले इलाके में हल्दी की खेती करते हैं। जिस जगह पर बड़े-बड़े बीजू के पेड़ हैं, उनके बीच उन्होंने इस तरीके से मिट्टी को निकाला है, जिससे पेड़ की नींव भी मजबूत रहे और बची हुई जगहों में पानी को संरक्षित कर सिंघाड़े और मखाने की खेती की जा सके।

पर्यावरण संरक्षण के साथ ही साथ, उन्होंने वॉटर कंजर्वेशन के क्षेत्र में भी बेमिसाल काम किया है। उनके मिनी फॉरेस्ट में एक, 5 एकड़ का तालाब है, जिसमें वह मछली उत्पादन के साथ-साथ मखाने की खेती भी करते हैं। उनकी इन्हीं खूबियों के कारण गांव में उनकी अलग ही पहचान बन गई है। यहां लोग कहते हैं कि कपिल देव के खेत पहचानना बेहद आसान है, जिस खेत में पेड़ लगे हैं, वे कपिल देव झा के हैं और जिसमें नहीं लगे हैं वे कपिल देव झा के नहीं हैं।

गांव के लोग कपिल देव को प्यार से मालिक कहते हैं और ऐसे लोग मालिक होने भी चाहिए, जिन्होंने निस्वार्थ रूप से अपना पूरा जीवन, पर्यावरण और जल संरक्षण में लगाकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। कभी फुर्सत मिले, तो आप भी जाइएगा ज़रूर कपिल देव के फार्म पर। हाँ, एक बात और ज़रा ‘इत्मिनान’ को अपने साथ लेकर जाइगा, वहां ‘सुकून’ से आपकी मुलाकात होगी।

Photo & Story Credit: लव कुश

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