आज देश की कृषि व्यवस्था अजीब दौर से गुज़र रही है। किसानों पर कर्ज के पहाड़ है। पानी, बिजली की समस्या से अन्नदाता परेशान है और आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। लेकिन इस अंधेरे में भी उजाले की एक किरण है जो इतना सब कुछ हो जाने पर भी खेती से किसानों को जोड़े हुए है, आज भी हमारे किसान साथियों का खेती से पूरी तरह मोह भंग नहीं हुआ है। इसके पीछे उन प्रगतिशील किसानों की मेहनत छिपी है जो खुद कामयाब होने के बाद अपनी कामयाबी के मंत्र दूसरे किसान भाइयों को बांट रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान है सुधीर अग्रवाल, जो उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के भूरेका गाँव के रहने वाले हैं। उन्हें देशभर में अग्रणी बीज उत्पादक किसान के रूप में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में पहला ग्रामीण बीज गोदाम बनाने और फसल बीमा के क्षेत्र में मथुरा को मॉडल जिले का गौरव दिलाने में सुधीर की खासी भूमिका रही है।
उनके द्वारा तैयार किए गए बीज आसपास के राज्यों में भी अनेक किसानों को फायदा पहुंचा रहे हैं।
बीज उत्पादन शुरू करने के पीछे की कहानी याद करते हुए सुधीर कहते हैं, ”यह 1990 की बात है, जब हम बीज लेने जाते थे तो लाइन लगती थी। काफी देर खड़े रहने के बाद भी 200 ग्राम ही बीज मिलता था। कई बार हमें पंतनगर, दिल्ली तक जाना पड़ता था, वहां भी मेले में बीज खरीदना पड़ता था। आम किसानों के लिए तो यह भी मुश्किल था। हमारे इलाके में खेती के लिए उन्नत बीज नहीं थे। ऐस में मैंने सोचा की क्यों न मैं बीज तैयार करूँ। इससे कुछ वैल्यू एडिशन भी हो जाएगा और नई प्रजाति का बीज भी मिल जाएगा। इसलिए मैंने बीज उत्पादन के लिए प्रयास शुरू कर दिए।”
बीज उत्पादन के लिए सुधीर ने कानपुर, दिल्ली के कृषि शिक्षण संस्थाओं के कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श लिया। वैज्ञानिकों ने सुधीर को बीज उत्पादन की पूरी तकनीक सिखाने का भरोसा दिलाया। सुधीर ने 2001 में जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में बीज उत्पादन शुरू किया। पहले साल 40 हेक्टेयर में बीज उत्पादन किया। शुरुआत में किसानों ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया क्योंकि किसानों को भरोसा नहीं था कि वे बीज उत्पादन में सफल होंगे, लेकिन जब परिणाम उनके अनुकूल आए तो पहले साल 10 किसान उनके सहयोगी बने। आज उनके साथ 800 किसान बीज उत्पादन कर रहे हैं।
वे कहते हैं, ” जिन संस्थाओं के बाहर हमें बीज खरीदने के लिए लाइन में लगना पड़ता था। आज वे संस्थाएं हमसे बीज खरीद रही है। मैं इन संस्थाओं को ससम्मान बीज उपलब्ध कराता हूँ।”
28 जुलाई, 1956 को वृंदावन में जन्मे सुधीर ने दर्शनशास्त्र में एमए करने के बाद एलएलबी की, लेकिन सरकारी नौकरी या वकालत करने की बजाय खेती को ही अपना रोज़गार बनाया और उसी में अपना करिअर भी। आज उनके बेटे अंकित भी इसी फील्ड में पिता की देखा देखी भविष्य बनाने उतर चुके हैं।
उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी खेती की ओर रुख करने वाले सुधीर अपने फूफा और मथुरा कोर्ट में वकील रहे दयालकिशन जी के साथ रहकर 5-6 महीनों तक वकालत भी कर चुके हैं। लेकिन बहुत कम समय में ही उनका वकालत से मन उठा गया।
”मुझे अल्प समय में ही ग्लानि होने लग गई कि इस मुकदमेबाज़ी के कार्य में तो गरीब आदमी का बहुत शोषण होता है। तब विचार आया कि झूठ बोलने का धंधा है, गरीब आदमी का शोषण है, इसलिए अपने खेतीबाड़ी के काम को करो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने आज़ादी के इतने सालों बाद भी बीज की कमी को देखते हुए आधार-बीज उत्पादन शुरू किया। आज खुश हूँ कि इस काम की वजह से देशभर में पहचान मिली है, ढेरों सम्मान मिले हैं। वकील की नौकरी करता तो आज कौन जानता मुझे?,” सुधीर ने कहा।
अनुभवों के साथ ही कृषि वैज्ञानिकों एवं नाबार्ड के सहयोग से एक मामूली किसान से उठकर आज वह राष्ट्रीय स्तर के प्रगतिशील किसान के रूप में मशहूर हो चुके हैं। सुधीर ने वकालत की डिग्री के बाद खुद पहल करके चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर से खेती की नवीनतम तकनीकों का प्रशिक्षण लिया। पंतनगर से संकर धान बीज उत्पादन (पंत संकर धान-1) की विधि पर प्रशिक्षण भी प्राप्त किया।
सुधीर कहते हैं, “इसके बाद मैंने सफेद मूसली, औषधीय बीज उत्पादन, नील हरित शैवाल उत्पादन तकनीक सहित कृषि एवं पशुपालन से संबंधित करीब दो दर्जन से ज्यादा प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर जो कुछ भी सीखा, उसे खेतों में प्रयोग करते हुए सफलता प्राप्त की। इस बात में कोई शक नहीं कि मैं आज भी जिज्ञासु प्रशिक्षणार्थी की तरह सोच रखते हुए हर पल कुछ नया सीखते रहने की ललक रखता हूँ।”
वैसे तो सुधीर 1979 से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन 1999 में नाबार्ड के तत्कालीन महाप्रबन्धक ओमप्रकाशजी के संपर्क में आने पर उन्होंने सरल ब्याज दर पर कृषि ऋण लेने के महत्व को समझा और धीरे-धीरे ग्रामीण गोदाम योजना पर ध्यान देते हुए साथी किसानों को भी नाबार्ड से जोड़ा। कुछ प्रगतिशील किसानों का समूह बनाकर उन्होंने बीज उत्पादन का काम शुरू किया। बाद में पशुपालन में नयेपन के साथ-साथ वर्मीकम्पोस्ट का काम भी शुरू किया।
सुधीर ने पहले अपने खेतों में कृषि वैज्ञानिकों की बताई तकनीक अपनाई और भरपूर उत्पादन लिया, खेतों में प्रदर्शनी भी रखवाई। उनकी सफलता के किस्से सुनकर पड़ोसी गांवों से भी किसानों ने आधार-बीज उत्पादन कार्यक्रम में रूचि दिखाई।
आज करीबी इलाकों के 450 से अधिक किसानों ने बीज उत्पादन में सुधीर को सहयोग किया है और पुरानी आय के अलावा प्रति हैक्टेयर 15 हजार रुपए से अधिक की कमाई कर रहें हैं।
वे कहते हैं, “शुरूआती दौर में 2001 के आसपास जब मैंने और मेरे कुछ साथियों ने ‛बीज गाँव’ के रूप में आधार-बीज का काम शुरू किया तो हमें विश्वास नहीं था कि हम इतनी जल्दी सफल हो जाएंगे। जब हमने बीज तैयार किए, उस समय खरीफ, रबी और जायद फसलों के आधार-बीज किसानों को आसानी से और सस्ती दरों पर उपलब्ध नहीं होते थे। ”
उन्होंने खास तौर पर गेहूं, सरसों, मटर, चना, मूंग, अरहर, धान, बाजरा, ग्लेडियोलस, बरसीम, जई आदि के आधार-बीज तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। उन्होंने नेशनल सीड कॉरपोरेशन, तराई बीज विकास निगम, कृभको आदि के सहयोग से गेहूं और धान की ऐसी किस्में तैयार की है जो बाज़ार में पहले से उपलब्ध नहीं थी। उनके द्वारा तैयार किए गए बीजों के बारे में आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
आधारीय बीज या आधार बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है। यह बीज उन फसलों के लिए काम आता है जिनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। इन फसलों को पौधों या कलमों से दुबारा बोना मुश्किल होता है। ऐसे में किसान को हर साल यह बीज खरीदने पड़ते हैं। पर अब सुधीर की देखा-देखी उनका पूरा गाँव ही बीज उत्पादन में लग गया है। गाँव के बड़े किसान ही नहीं, छोटे और मझोले किसानों को भी इसका फायदा मिल रहा है।
“हमने ‘भवानी सीड्स एन्ड बायोटेक’ के नाम से बिक्री भी शुरू कर दी है। इससे पहले हमने नैनी इंस्टीट्यूट के साथ उत्तरप्रदेश बीज विकास निगम को भी बीज दिया और फिर तो कई केंद्रों से भी बीज की मांग आने लगी। आज हम इलाहाबाद कृषि संस्थान और उत्तरप्रदेश कृषि विभाग को भी बीज सप्लाई कर रहे हैं,” सुधीर ने बताया।
उनके द्वारा गठित प्रबंध सहायता समूहों की तर्ज पर पड़ोसी गांवों में भी किसान क्लब बन रहे हैं। किसान क्लबों के गठन के बाद फसल ऋण की साख सीमा दो हजार प्रति एकड़ की बजाय बैंकों ने बढ़ाकर दस हजार कर दी है। क्लबों द्वारा किसानों की समस्या निस्तारण हेतु त्वरित कार्यवाही भी की जाने लगी है। जागरूकता बढ़ने के साथ ही मथुरा में देश का पहला ग्रामीण बीज गोदाम भी बना है। इतना ही नहीं, फसली बीमा के क्षेत्र में देश का मॉडल जिले का ख़िताब भी मथुरा के नाम ही है।
सुधीर देशी-विदेशी गायों, भैंसों के साथ बकरी, मुर्गी और बतख पालन भी कर रहे हैं। इनसे सीख लेकर पड़ोसी किसानों ने भी मल्टी हायर एग्रो-एनिमल हसबेंडरी शुरू की है। सुधीर ने ग्लेडियोलस और रजनीगंधा के फूलों की खेती भी शुरू की, लेकिन उन्हें फूलों को बेचने के लिए दिल्ली तक जाना पड़ता है। वह मानते हैं कि अभी भी हमारे किसान भाई औषधीय खेती के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हुए हैं, फिर भी गाँव में सवा दर्जन किसान फूलों की खेती कर रहे हैं।
सुधीर ने 2001 से ही खेतों में सालाना करीब 400 क्विंटल केंचुआ खाद तैयार करना शुरू कर दिया था, जिसके चलते इनको अधिक उत्पादन भी मिला और उपज का बाजार भाव भी बेहतर मिलने लगा। यह सिलसिला आज दिन तक जारी है। 1989 से 1995 तक ग्राम प्रधान रह चुके सुधीर ने अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा ध्यान कृषि सुधार पर ही दिया। नहर दुरूस्तीकरण, सड़क निर्माण, पुलिया, रपट, कृषि कनेक्शन, गोदाम, मेड़बंदी, चारागाह विकास जैसे कार्य उन्होंने करवाए।
वे किसान क्रेडिट कार्ड प्रणाली को विकास का महत्वपूर्ण कदम मानते हैं, बशर्ते लिए गए ऋण का पैसा समुचित कृषि उद्देश्य पर ही खर्च किया जाए। इसमें साहूकारी ब्याज की तरह कोई झंझट नहीं होता। वह यह भी मानते हैं कि किसानों को प्रगतिशील किसानों के खेत में जाकर प्रत्यक्ष सीख लेनी चाहिए। वे देशभर के प्रगतिशील किसानों से अपील भी करते हैं कि वे अपने पिछड़े साथियों को उन्नत खेती करना सिखाए।
बीज उत्पादन के क्षेत्र में उन्नत कार्य करने के लिए उन्हें अब तक कई सम्मान मिल चुके हैं। नरेन्द्र-359 का अधिक उत्पादन करने पर जिले के अग्रणी किसान का सम्मान भी उन्हें मिला। गन्ना विकास विभाग की ओर से गन्ने की अधिक उपज लेने पर भी वे सम्मानित हुए। ग्रामीण भारत में उद्यमिता विकास के लिए वर्ष 2003-04 का सर्वश्रेष्ठ मोबिलाइजर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से 2005 में तकनीकी हस्तांतरण के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ योगदान सम्मान सहित कई कृषि संस्थाओं से वे सम्मानित हो चुके हैं।
अगर आप भी सुधीर अग्रवाल से खेती से जुड़ी कोई जानकारी चाहते हैं तो उनसे 09675371805 पर बात कर सकते हैं।