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असम: नौवीं पास शख्स ने किसानों के लिए बनाई, कम लागत की 15 से ज्यादा फूड प्रोसेसिंग मशीनें

Tea Processing Machine

असम मुख्य रूप से चाय की खेती के लिए जाना जाता है। बड़े-बड़े चाय बागानों के साथ, यहाँ पर छोटे किसान भी चाय की खेती करते हैं। लेकिन, इन छोटे किसानों के लिए चाय की खेती से मुनाफा कमाना, आसान बात नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वे खुद चाय की प्रोसेसिंग नहीं कर पाते हैं और उन्हें अपनी उपज, अन्य चाय कारखानों को बेचनी पड़ती है। जिससे किसानों को उनकी मेहनत के मुताबिक दाम नहीं मिलता। इस समस्या के समाधान के लिए असम के एक किसान, दुर्लभ गोगोई ने अपनी प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का फैसला किया, लेकिन बाजार में उन्हें उनकी जरूरत के हिसाब से प्रोसेसिंग मशीन नहीं मिली। ऐसे में, गोगोई ने खुद मशीन बनाने की ठानी और कई असफलताओं के बाद, वह छोटे किसानों के लिए चाय की प्रोसेसिंग मशीन (Tea Processing Machine) बनाने में कामयाब रहे। 

इस इनोवेशन के लिए, उन्हें ‘नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ (एनआईएफ) ने 2019 में ‘नैशनल ग्रासरूट्स इनोवेशन अवॉर्ड’ से नवाजा। 56 वर्षीय दुर्लभ गोगोई ने अपने सफर के बारे में द बेटर इंडिया को विस्तार से बताया। 

डिब्रूगढ़ जिले में टिंगखोंग के रहने वाले दुर्लभ गोगोई, मात्र नौंवी कक्षा तक पढ़े हैं और अपनी तीन एकड़ जमीन पर चाय की खेती करते हैं। वह बताते हैं, “मेरे चाय बागान से जो भी उपज आती थी, उसे मैं पास के चाय कारखानों को बेचता था। लेकिन, वहाँ से एक बोरी ताजा चाय की पत्तियों के लिए, मुश्किल से आठ रुपए मिलते थे। मैं हमेशा अपनी आमदनी बढ़ाने के बारे में सोचता था। इसलिए, मैंने सोचा कि अपने चाय की खुद प्रोसेसिंग करनी चाहिए और इसके लिए मैं मशीन तलाशने लगा।” 

दुर्लभ गोगोई

लेकिन, गोगोई ने जब बाजार में पता किया तो उन्होंने देखा कि ज्यादातर मशीनें, बड़े चाय बागानों को ध्यान में रखकर बनाई गयी हैं। जिनमें बड़ी मात्रा में चाय पत्ती की प्रोसेसिंग होती है। ये मशीनें छोटे किसानों के लिए हितकर नहीं थीं। वह कहते हैं कि कुछ छोटी मशीनें भी उन्होंने देखी लेकिन, वे भी उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करती थीं। ऐसे में, 2008 में उन्होंने खुद अपनी और अन्य छोटे चाय किसानों की जरूरत के हिसाब से मशीन बनाने की ठानी। 

बनाई कई तरह की मशीनें

दुर्लभ बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले ‘टी ड्रायर’ (चाय पत्ती सुखाने की मशीन) बनाने से शुरुआत की। हालांकि, उन्हें एक बार में कामयाबी नहीं मिली। कई असफलताओं के बाद, वह साल 2009 में एक ‘रेसिप्रोकेटिंग टी ड्रायर’ बनाने में सफल हुए। इस मशीन को बनाने के लिए उन्होंने ‘स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म’ का इस्तेमाल किया, जिसकी मदद से मशीन के अंदर ड्राइंग ट्रे को आगे-पीछे किया जा सकता है। इसे ‘पुल-पुश ड्रायर’ नाम भी दिया गया है और इसमें 14 ड्राइंग प्लेट होती हैं। इस मशीन से आप 40 मिनट में, 20-30 किलोग्राम चाय की ताजा पत्तियों को सुखा सकते हैं। सूखने के बाद पत्तियों का वजन लगभग छह किलो हो जाता है। मशीन में पत्तियां सुखाने के लिए, आप 100 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सेट कर सकते हैं। 

वह कहते हैं कि इस मशीन को बनाने के दौरान, उन्होंने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया। लेकिन, जब वह अपने काम में सफल रहे तो उनका हौसला और बढ़ गया। इसके बाद, उन्होंने चाय की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाली दूसरी मशीनें भी बनाईं। इन मशीनों में मिनी टी स्टीमर, रोलिंग टेबल, राउंड ड्रायर, कॉम्पैक्ट हीटर, सेमी-ऑटोमैटिक ड्रायर, टी ब्रेकर आदि शामिल हैं। उन्होंने शुरूआत अपने लिए की थी लेकिन, जैसे-जैसे उनकी मशीन के बारे में लोगों को पता चला, दूसरे किसान भी अपने समस्याएं लेकर उनके पास आने लगे। 

चाय की प्रोसेसिंग के लिए बनाई मशीन

वह कहते हैं, “मैंने 15 से ज्यादा तरह की प्रोसेसिंग मशीनें बनाई हैं। इनमें धान, हल्दी, और अदरक जैसी फसलों के लिए इस्तेमाल होने वाली छोटी बड़ी मशीनें शामिल हैं। मैंने अगर की लकड़ी से तेल निकालने वाली मशीन भी बनाई है। अगर की लकड़ी के तेल की बाजार में अच्छी मांग है। इसकी खेती करने वाले किसान यदि खुद इसकी प्रोसेसिंग करके बिक्री करें तो उन्हें अच्छा मुनाफा होगा। इसलिए, मैंने उनके लिए कम लागत वाली मशीनें बनाई हैं।” 

किसानों को मिला फायदा

दुर्लभ का उद्देश्य, किसानों की मदद करना है और पिछले 10 सालों से वह लगातार इस कोशिश में जुटे हुए हैं। 74 वर्षीय किसान और उद्यमी, शोमेश्वर फुकन बताते हैं, “मैंने लगभग 10 साल पहले दुर्लभ जी से चाय की प्रोसेसिंग के लिए तीन मशीनें खरीदी थीं, जो अभी तक अच्छे से काम कर रही हैं। अपनी उपज को दूसरे कारखानों को बेचने की बजाय, हम अपनी खुद की ‘ग्रीन टी’ बनाते हैं और अपने ब्रांड नाम से बिक्री करते हैं। मेरी चाय देश के दूसरे राज्यों के अलावा, कनाडा तक भी जा रही है। लेकिन चाय की प्रोसेसिंग का काम, सिर्फ दुर्लभ जी द्वारा बनाई गयी इन छोटी मशीनों के कारण सम्भव हो पाया।” 

किसान शोमेश्वर फुकन

दुर्लभ गोगोई अब तक 200 से ज्यादा अलग-अलग मशीनें बनाकर किसानों को बेच चुके हैं। मशीनों के आधार पर, इनकी कीमत 40 हजार रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक है। वह किसानों को उनकी जरूरत और बजट के हिसाब से मशीनें देते हैं। इससे, उनके लिए अपनी फसल को प्रोसेस करना आसान हो जाता है। 

दुर्लभ को उनके आविष्कारों के लिए सम्मान भी मिला है। उन्हें उनकी ‘रेसिप्रोकेटिंग टी ड्रायर’ के लिए नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन से 2019 में पुरस्कार मिला था। इसके बाद से, वह लगातार उनसे जुड़े हुए हैं। अपनी मशीनों को और बड़े स्तर पर विकसित करने के लिए, उन्हें एनआईएफ द्वारा इन्क्यूबेशन और फण्ड भी मिला है। एनआईएफ के वैज्ञानिक, तुषार गर्ग बताते हैं कि दुर्लभ द्वारा बनाई सभी मशीनें छोटे किसानों के लिए हितकर हैं। अगर कम दाम पर, किसानों को उनकी जरूरत के हिसाब से मशीन मिलती है तो वे अपनी उपज में ‘वैल्यू एडिशन’ कर पाते हैं। 

एनआईएफ से मिला अवॉर्ड

साथ ही, एनआईएफ टीम ने उनके यहाँ एक वर्कशॉप सेटअप करने में भी मदद की है। इस वर्कशॉप में, गोगोई अपने सभी आविष्कारों पर काम कर सकते हैं। साथ ही, दूसरे किसान या अन्य कोई व्यक्ति, जिनके पास किसी मशीन का आईडिया है, वे भी यहाँ आकर उनके साथ विचार-विमर्श कर सकते हैं। अंत में दुर्लभ सिर्फ इतना कहते हैं कि परेशानियां सबके जीवन में आती हैं। लेकिन, इनसे हार कर या घबरा कर कुछ न करना हल नहीं है बल्कि आपको अपनी परिस्थितियां बदलने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि, अच्छी कोशिशों का नतीजा हमेशा अच्छा होता है। 

अगर आप दुर्लभ गोगोई से सम्पर्क करना चाहते हैं तो उन्हें naharorganicproducts@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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