क्या आपने किसी ऐसे पति-पत्नी की कहानी सुनी है जिसने मध्य-पूर्व देश में लगभग दस साल काम किया हो और फिर जब भारत लौटे तो किसान बन गए? आज हम आपको एक ऐसे ही दंपति की कहानी सुनाने जा रहे हैं।
यह कहानी जॉय वकाईल और उनकी पत्नी की है जो पेशे से एक नर्स थी। साल 2004 में अपने बेटे नवीन जॉय के जन्म के बाद ये दोनों केरल अपने घर वापस लौट आए। उनके इस फैसले ने सबको चकित कर दिया। जब लोगों ने इस दंपती से पूछा कि अब आप लोग क्या करेंगे तो उनका जवाब था- अब हम वापस नहीं जाएंगे और केरल में ही रह कर खेती करेंगे।
दरअसल एक किसान परिवार से होने के कारण जॉय वापस अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते थे जहां वे आत्मनिर्भर हो पाएं। उस समय इनके पास कुछ एकड़ में फैले रबड़ के खेत थे जिसे जॉय हटा कर विभिन्न प्रकार की फसल उगाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने इन रबड़ के पेड़ों को हटा कर, अनानास के अलावा भिंडी, करेला आदि सब्जी के बीज बोये जिनकी खेती आसान थी।
आज इनके खेतों में विभिन्न प्रकार की फल व सब्जियों के साथ ही गाय, बकरियों, व मछलियों का भी पालन होता है। पर इन सब से अधिक खुशी जॉय को इस बात की है कि इनकी जैविक फसलों का निर्यात यूरोप में होता है।
शुरूआत के दिन
जॉय बताते हैं, “ शुरुआत में मुझे कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि मेरे आस-पास के लोगों को भरोसा नहीं था कि मुझमें इस योजना को पूरा करने की क्षमता है। इसके साथ ही लोगों ने यह भी कहा कि रबर को काट देने का अफसोस मुझे हमेशा होगा। लेकिन आज मैं खुश हूं क्योंकि मैंने जो जोखिम उठाया उसमें सफलता मिली।“
खेतों में लगाने के लिए पैसे का इंतजाम सबसे मुश्किल काम था । जॉय के पास बचत के 2 लाख रुपये थे और किसान क्रेडिट कार्ड की मदद से उन्होंने तीन लाख रुपये ऋण लिया।
14 एकड़ में फैले इनके खेतों की 5 एकड़ ज़मीन में भिंडी, करेला और हरी मिर्च की खेती होती है वहीं दो एकड़ में धान की खेती होती है। इसके अलावा चार एकड़ में नारियल के पेड़ हैं, और बाकी बची ज़मीन में कंद उगाने के अलावा गाय व बकरियों का चारागाह बनाया गया है।
जॉय बताते हैं कि उनकी मेहनत रंग लाई और लोगबाग उनके काम को देखने के लिए आने लगे। कुछ मीडियाकर्मी भी आए और एक ने तो उन पर कार्यक्रम शूट कर लिया। उन्होंने कहा कि इस शो को देखने के बाद केरल की एक निर्यात कंपनी ने जॉय से संपर्क किया और उनसे पूछा कि वो अपने जैविक उत्पाद को विदेश भेजने में इच्छुक हैं या नहीं। जॉय ने हामी भर दी और सारी सब्जियों की सैंपलिंग के बाद कंपनी इनकी फसलों को निर्यात के लिए ले जाने लगे।
जॉय ने द बेटर इंडिया को बताया, “पिछले 6 साल से मैं अपनी सब्जियों को यूरोप भेज रहा हूँ। कभी कभी मैं अपनी उपज का तीन-चौथाई निर्यात कर देता हूँ। विदेशी बाज़ार में हल्दी, अदरक, कसावा की विशेष मांग है जिसे वहाँ सामान्यतः उगाया नहीं जाता लेकिन मेरे खेतों में प्रचुर मात्रा में होते हैं।”
डेयरी उद्योग व अन्य कार्य
जॉय बताते हैं, “जब मेरी खेती का विस्तार होने लगा तब खाद व उर्वरकों की ज़रूरत भी पड़ने लगी। तभी मेरे दोस्त, डॉ कुरियाकोज मैथ्यूज़, जो खुद एक पशु चिकित्सक हैं, ने मुझे डेयरी फ़ार्मिंग शुरू करने का सुझाव दिया। उनका घर पास ही है, उसने मुझे आश्वासन दिया कि जब भी मुझे ज़रूरत पड़ेगी वो मुझे मार्गदर्शन और सहायता देंगे।”
आज इनके पास करीब 25 बकरियाँ और 10 गाय हैं जिनसे औसतन 90 लीटर दूध हर दिन मिल जाता है। इन जानवरों से मिले खाद को खेती में प्रयोग कर लिया जाता है और इसी तरह सारे बेकार पौधे व पत्ते जानवरों को चारे के साथ खिला दिया जाता है। जॉय जैविक खाद बना कर बाज़ार में बेचते भी हैं।
पिछले 6 सालों से जॉय की खेती से जुड़े डॉ कुरियाकोज थॉमस बताते हैं, “ जॉय को शुरू से ही खेती में रुचि थी। इन खेतों को इतनी सफलता इसलिए मिल पायी क्योंकि वो हमेशा फसलों से होने वाले लाभ से ज़्यादा ध्यान फसलों पर देता है। वो हमारे पड़ोस में नए किसानों को खुद जा कर सीखाने से भी पीछे नहीं रहता।”
जॉय कहते हैं, “कृषि भवन व कृषि केंद्र से कई कार्यकर्ता खेतों में अक्सर आते हैं और बेहतर फसल के लिए मुझे मार्गदर्शन देते हैं। मुझे कृषि विश्वविद्यालय में एक कोर्स करने का भी मौका दिया गया जिससे मैं अपने ज्ञान को और बढ़ा पाऊँ और साथ ही खेती से संबन्धित अपनी वैज्ञानिक समझ को बेहतर विकसित कर पाऊँ।”
खेती के अलावा जॉय ने एक नर्सरी की भी शुरुआत की है जहां आस-पड़ोस के लोग आ कर विभिन्न क़िस्मों के पौधे खरीद सकते हैं। जॉय कहते हैं कि इसकी शुरुआत इसलिए की ताकि आस पास खेती को बढ़ावा मिले और साथ ही आने वाली पीढ़ियों में खेती की समझ विकसित हो पाये।
ये समझाते हैं, “ इस समय मैं खेती में कई स्तरों पर व्यापार कर रहा हूँ, और इन सब में सबसे नया है “जीरो- एनर्जी कूल चैंबर” जिसे मैंने एक सप्ताह तक सब्जियों की ताज़गी बनाए रखने के लिए स्थापित किया है। इसके अलावा मैं मछलियों की विभिन्न प्रजाति जैसे कि रोहू व कतला के मत्स्य-पालन करने की भी कोशिश कर रहा हूँ।”
राज्य कृषि विभाग से कई पुरस्कार पा चुके जॉय श्री कोरह थॉमस के नेतृत्व में ऑनलाइन फार्म स्कूल भी चलाते हैं जिसमे लोग कृषि के गुर सीखते हैं। उन्होंने कहा, “ कुछ साल पहले, मुझे जानने वाले लोग मुझमें किसान की छवि नहीं देख पाते थे । पर मैंने मेहनत की और मुझे खुशी है कि खेती में लगाई गयी मेरी सारी मेहनत और जोखिम ने उस सोच को बदल दिया है। मुझे गर्व है कि आज मेरी पहचान एक किसान के रूप में की जाती है।”
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