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IIT बॉम्बे से पढ़ने के बाद, की अच्छी नौकरियाँ, अब बिना मिट्टी की खेती से कमा रहे हैं लाखों

महाराष्ट्र के पश्चिमी इलाके को ‘शुगर बाउल’ कहा जाता है। दरअसल इस इलाके में चीनी का सबसे अधिक उत्पादन होता है। लेकिन IIT बॉम्बे से पढ़े दो युवा इन दिनों इस इलाके की पहचान साग-सब्जियों से जोड़ने में लगे हैं।

वैसे तो पश्चिमी महाराष्ट्र का कोल्हापुर इलाका चीनी, गुड़, चप्पल और टूरिज्म के लिए देश भर में मशहूर है। लेकिन इन दिनों यहाँ एग्जोटिक साग-सब्जियों की बड़े पैमाने पर खेती की शुरूआत हुई है।
आज द बेटर इंडिया आपको इस इलाके के एक ऐसे खेत की यात्रा करवाने जा रहा हैं, जहाँ लेट्यूस, पाक-चोई जैसी फसलों की खेती हो रही है, जिसकी शुरूआत IIT के दो पूर्व छात्रों ने की है।

कोल्हापुर में 50 एकड़ ज़मीन के कुछ हिस्सों पर एक्वापोनिक और हाइड्रोपोनिक फार्म है। इस खेत में केल, लेट्यूस, पाक-चोई, मशरूम, और अन्य विदेशी सब्जियों की लगभग 40 किस्में यहाँ उगाई जाती हैं और भारत के अन्य शहरों में भेजी जाती हैं।

दिलचस्प बात यह है कि जिन्होंने यहाँ पर फसल के पैटर्न को बदला है वह इस इलाके के मूल निवासी या किसान नहीं है। इसकी शुरूआत की है IIT -Bombay से पढ़े दो छात्रों ने। उनकी कंपनी का नाम है ‘लैंडक्रॉफ्ट एग्रो’ (Landcraft Agro)।

मयंक गुप्ता और ललित झावर आईआईटी बॉम्बे में इंजीनियरिंग करने के दौरान दोस्त बने। मयंक ने ज़ीलिंगो नाम से एक स्टार्टअप लॉन्च किया और 2012 से 2018 के बीच दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा की, जबकि ललित 2011 में कपड़ा और रियल एस्टेट उद्योग में अपने पारिवारिक व्यवसाय से जुड़े।

शुरू की एकदम अलग पहल:

2018 की शुरुआत में, मयंक ने नौकरी छोड़ दी और घर लौट आए। घर पर रहकर वह सोचने लगे कि क्या अलग किया जाए। इस दौरान उन्होंने अपने दोस्त ललित के साथ मिलकर जैविक और ताजी सब्जियों के लिए एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म शुरू करने के विचार पर चर्चा की।

हालांकि, कुछ रिसर्च के बाद, ललित और मयंक ने जल्द ही महसूस किया कि उनका उद्यम सफल नहीं होगा।

“हमने उत्पादकों से ताज़ी, जैविक और एग्जोटिक सब्जियां लेकर ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए एक चैनल बनाने की योजना बनाई थी। लेकिन हमें बहुत कम ऐसे उत्पादक मिले जो अच्छी गुणवत्ता वाले जैविक और एग्जोटिक सब्जी उगा रहे हों,” उन्होंने कहा। इसलिए दोनों ने खुद उगाकर बेचने की योजना बनाई।

 

What is Aquaponics?

इस खेत को सेट-अप करने के लिए भी उन्होंने काफी रिसर्च करके कोल्हापुर को चुना।

“कोल्हापुर अपनी मिट्टी, पानी की उपलब्धता के लिए सबसे अच्छा है। भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि उपज को संभावित बाजारों में भेजना आसान है। पुणे, गोवा, मुंबई और बैंगलोर जैसी जगहें यहाँ से 12 घंटे की ड्राइव पर हैं, जिससे सब्जियों को आसानी भीतर ग्राहकों तक पहुंचना संभव हो जाता है और वह भी ताज़ा सब्जियां,” मयंक कहते हैं।

मयंक और ललित दोनों में से ही किसी को भी खेती का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ना है। अप्रैल 2019 में, मयंक और ललित ने कोल्हापुर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर इचलकरंजी में लैंडक्रॉफ्ट एग्रो की स्थापना की।

ग्राहकों की सोच बदलना:

लैंडक्राफ्ट एग्रो 40 एकड़ में हाइड्रोपोनिक और 3 एकड़ फार्मों पर 40 प्रकार की सब्जियां उगाता है। ललित और मयंक ने लगभग 150 किसानों को सब्जी की खेती के लिए 100 एकड़ भूमि को पॉली हाउस में बदलने के लिए प्रशिक्षित किया है। इस उपज ब्रांड नाम ट्रूगैनिक के तहत बेचा जाता है।

सब्जियों को महाराष्ट्र के शहरों के अलावा, हैदराबाद और चेन्नई और दिल्ली में भेजा जाता है। यह एक वर्षीय स्टार्ट-अप अब एक महीने में 80 लाख रुपये का कारोबार कर रहा है। इस क्षेत्र में कमाई आशाजनक दिखती है लेकिन यह भी सच है कि मार्किट में जगह बनाना उतना ही मुश्किल है।

“न तो हमें खेती में कोई अनुभव था। मैंने पहले कभी अपने जीवन में एक पौधा नहीं उगाया था। इसलिए हमने शुरुआत में कई गलतियाँ कीं, लेकिन जल्दी ही उनसे सीख लिया,” मयंक ने कहा।

 

Aquaponics is environment friendly.

सह-संस्थापक, ललित का कहना है कि उन दोनों ने बहुत सारे शोध कार्य किए और तकनीकी विशेषज्ञों और सलाहकारों से संपर्क किया ताकि चीजों को ठीक किया जा सके। उन्होंने कहा, “जब हमने जैविक उगाना सीख लिया तो मार्केटिंग और ग्राहकों से जुड़ने एक चुनौती बन गया। सब्जियां उपभोक्ता को सस्ते दाम पर मिल रहीं हैं, लेकिन उन्हें अपनी बेहतर गुणवत्ता और ताजगी के लिए उत्पाद आजमाने के लिए राजी करना भी एक काम है। लोगों की सोच बदलना बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि, COVID-19 महामारी ने ग्राहकों को अपने स्वास्थ्य को पहले रखने में मदद की है।”

इन कृषि उद्यमियों का कहना है कि उनकी अगली योजना किसानों को अनुबंध खेती के लिए राजी करने और कई शहरों में सप्लाई चेन को बढ़ाने की है। ललित कहते हैं, ”हम और शहरों में पहुंचना चाहते हैं और अपने ग्राहक आधार को बढ़ाना चाहते हैं।” साथ ही, वह और भी किसानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं जो पारंपरिक फसलों के साथ ये सब्जियां भी उगाएं और अच्छी कमाई कर सकें।

मयंक और ललित से संपर्क करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

मूल लेख: हिमांशु निंतावरे
संपादन – जी. एन झा 

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