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मोबाइल गेम छोड़, बच्चों ने दिया किसान पिता का साथ, चंद महीनों में हुआ ढाई लाख का मुनाफा

पिछले एक साल से कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण, देशभर में लगभग सभी स्कूल-कॉलेज बंद पड़े हैं। बच्चों की शिक्षा पूरी तरह से मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट पर आधारित हो गयी है। पहले बच्चों को पढ़ाई के बाद, कभी-कभी मोबाइल इस्तेमाल करने को मिलता था। लेकिन, अब कोरोना काल में पढ़ाई ऑनलाइन हो जाने के कारण, उनका पूरा दिन मोबाइल पर ही बीतता है, जो उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे परिवार की कहानी बता रहे हैं, जहाँ बच्चे अपनी ऑनलाइन कक्षाओं के बाद मोबाइल पर गेम खेलने की बजाय, खेतों पर पहुँच जाते हैं। खेतों से ताज़ी साग-सब्जियां तोड़ते हैं और ग्राहकों को बेचते हैं। जी हाँ, हरियाणा में झज्जर के मातनहेल गाँव में रहने वाले 44 वर्षीय कुलदीप सुहाग और उनके घर के सभी बच्चे, पढ़ाई के साथ-साथ खेती में भी हाथ बंटा रहे हैं।

कुलदीप ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने दो साल पहले, दो एकड़ जमीन पर जैविक खेती शुरू की थी। पहले साल में, मुझे खेती में काफी नुकसान उठाना पड़ा। क्योंकि, तब मुझमें जैविक खेती की कम समझ थी। साथ ही, जैविक खेती में मेहनत ज्यादा है, इसलिए हमें मजदूरों से भी काम कराना पड़ा। इससे हमारा खर्च बढ़ गया था। पहले साल में नुकसान के बाद, मैंने बहुत हिम्मत करके फिर से जैविक खेती करने का फैसला लिया। आखिरकार मुझे सफलता मिल ही गई, जिसका पूरा श्रेय मैं अपने परिवार को देता हूँ।” 

अपने सफर के बारे में उन्होंने बताया, “मैं किसान परिवार से आता हूँ। मैंने दसवीं तक की पढ़ाई के बाद, 1995 में खेती करना शुरू कर दिया था। मैं पहले रसायनयुक्त खेती ही करता था, जिससे मुझे ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था। इसलिए मैंने 2003 में खेती छोड़कर, गाँव में ही अपनी किराने और मोबाइल की दुकान शुरू कर दी। दो साल पहले कुछ कारणों से, मैंने दुकान भी बंद कर दी और फिर से खेती करने का फैसला किया। लेकिन, इस बार मैंने जैविक खेती करने का फैसला किया।” 

खेती में दिया पिता का साथ

कुलदीप ने बताया कि उन्हें जैविक खेती करने की प्रेरणा, सासरौली गाँव के रहने वाले डॉ. सत्यवान ग्रेवाल से मिली। कुलदीप ने दो एकड़ जमीन पर मौसमी सब्जियों की जैविक खेती शुरू की। लेकिन, शुरुआत में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। वह कहते हैं कि उन्होंने डॉ. ग्रेवाल से काफी कुछ सीखा है। लेकिन, जब कुलदीप ने खुद जमीनी स्तर पर काम करना शुरू किया, तो उन्हें ऐसी जानकारियां मिली, जो उन्हें पहले पता नहीं थी। एक बार नुकसान उठाने के बाद, कुलदीप थोड़ी उधेड़बुन में थे कि क्या उन्हें फिर से जैविक खेती करनी चाहिए? 

उन्होंने कहा, “मैंने इस बारे में घरवालों से सलाह-मशविरा किया। सब ने कहा कि अब जैविक खेती ही करो, ताकि खेतों में मिट्टी की हालत सुधरे। इससे थोड़ा ही सही, लेकिन घर में बच्चों को जैविक तरीकों से उगा भोजन मिल सके। इस तरह, घरवालों के हौसले से मैंने फिर एक बार खेती करने का जोखिम उठा ही लिया।” 

कुलदीप अपने खेतों में टमाटर, दो किस्म की मिर्च, शिमला मिर्च, ककड़ी, खीरा, प्याज, लहसुन और खरबूजे की खेती करते हैं। उन्होंने कहा कि वह मुख्य रूप से खरबूज, प्याज और टमाटर उगाते हैं और अन्य सब्जियां उन्होंने कम मात्रा में लगाई हैं। 

उन्होंने जनवरी 2021 से अपने खेतों में अलग-अलग फसल की बुवाई शुरू कर दी थी और अप्रैल के महीने से, लगभग सभी फसलों की कटाई भी शुरू हो गयी है। इन चार-पाँच महीनों की फसल से अब तक, वह लगभग ढाई लाख रुपए तक का मुनाफा कमा चुके हैं। 

पौधे लगाने से लेकर मार्केटिंग तक, हर कदम पर बच्चों ने दिया साथ: 

सब्जियों को तोड़ने से लेकर बेचने तक में देते हैं साथ

कुलदीप कहते हैं कि उन्हें यह सफलता अपने बच्चों की वजह से मिली है। पिछले साल से ही कुलदीप और उनके भाई के बच्चे खेती में उनकी मदद कर रहे हैं। उनका बेटा, जतिन सुहाग ग्रैजुएशन में पहले वर्ष का छात्र है। उनके भाई के बच्चे, पायल सुहाग और अर्जुन सुहाग अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं। 

15 वर्षीया पायल दसवीं कक्षा की छात्रा हैं और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, वह अपने ताऊजी की भी मदद करती है। वह कहती है, “मैं सोनीपत के मोतीलाल स्कूल ऑफ़ स्पोर्ट्स में पढ़ती हूँ। मैं लॉकडाउन से पहले हॉस्टल में रहती थी। लेकिन, पिछले एक साल से घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। घरवालों ने हम सब बच्चों का एक रूटीन बनाया हुआ है कि हर सुबह हम खेतों पर सैर के लिए जाएं। इस तरह, हम ताऊजी की मदद भी करने लगे।” 

पायल कहती है कि शुरुआत में उन्हें खेतों का काम करने में परेशानी होती थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें मजा आने लगा। सभी बच्चों ने कुलदीप के साथ मिलकर, खेतों को तैयार किया और साग-सब्जियों के पौधे लगाए। पायल कहती है कि दो एकड़ में से, सिर्फ एक एकड़ में ही अभी ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगा है। बाकी एक एकड़ में, सभी बच्चे खुद पौधों को पानी देते हैं। खाद बनाने से लेकर कीट प्रतिरोधक बनाने तक, सभी कामों में बच्चे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। कुलदीप कहते हैं कि इस बार उन्हें बाहर से कोई भी मजदूर नहीं लगाना पड़ा और फिर भी सभी काम समय पर हो गए।

कुलदीप के बेटे, 18 वर्षीय जतिन सुहाग बताते हैं कि पिछले एक साल में, उन्होंने खेती के बारे में बहुत कुछ सीखा है। जतिन कहते हैं, “अब मुझे समझ आ गया है कि खेतों में किस तरह की सब्जियां लगायी जा सकती हैं। साथ ही, मेरी बाजार की समझ भी बढ़ी है कि कौन सी सब्जी कितने भाव में और कितनी ज्यादा बिक सकती है।” 

सुबह-शाम करते हैं खेत में मेहनत

जतिन, पायल और अर्जुन के साथ, उनके एक-दो चचेरे और ममेरे भाई-बहन भी सुबह पाँच बजे खेतों पर पहुँच जाते हैं। यहां पहुँचने के बाद, सबसे पहले बच्चे पकी हुई सब्जियों को तोड़ते हैं। 

जतिन आगे कहते हैं कि वे लोग शर्त लगाते हैं कि कौन ज्यादा सब्जियां तोड़ेगा। सारी पकी सब्जियां तोड़ने के बाद, कुछ साग-सब्जियों को खेत पर ही एक झोपड़ी में रखा जाता है, जहां से गाँव के लोग आकर सब्जियां खरीदते हैं। वहां ऐसे भी काफी लोग हैं, जो खेतों तक नहीं आ पाते हैं। पायल कहती हैं कि उन ग्राहकों के लिए वह और अर्जुन अपने घर के बाहर स्टॉल लगाते हैं और उचित दाम पर सब्जियों को बेचते हैं। प्रशासनिक अधिकारी बनने की चाह रखने वाली, पायल कहती हैं कि पहले उन्हें सब्जियां बेचने में हिचक होती थी। लेकिन, अब तो वे सभी बहन-भाई अच्छा मोल-भाव कर लेते हैं और लोगों को जैविक खाने के फायदे भी समझाते हैं। 

सुबह-शाम खेतों को समय देने के अलावा, दिन के समय सभी बच्चे पढ़ाई भी करते हैं। कुलदीप कहते हैं कि इससे उनकी मदद तो हो ही रही है। साथ ही, बच्चों के दिनभर फोन या गेम में लगे रहने की भी अब उन्हें कोई चिंता नहीं है। क्योंकि, अब उनके बच्चों का मोह मोबाइल गेम्स से ज्यादा, इस बात में है कि किस दिन कितनी सब्जियां खेतों से मिली और कितनी सब्जियों की बिक्री हुई? 

कुलदीप ने अपनी एक एकड़ जमीन पर अमरूद का बागान भी लगाया है और वह आगे केले का बागान भी लगाना चाहते हैं। वह कहते हैं, “मुझे परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है। इसलिए, मुझे यकीन है कि आगे भी सफलता जरूर मिलेगी। मैं अब सिर्फ और सिर्फ जैविक खेती ही करूँगा।” 

अगर आप कुलदीप से संपर्क करना चाहते हैं, तो उन्हें 9896759517 पर कॉल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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