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एक बायोगैस प्लांट से साल भर में 6 गैस सिलिंडर और खाद के खर्च को बचा रहा है यह किसान

हरियाणा में भिवानी जिला के ईशरवाल गाँव में रहने वाले अमरजीत पिछले 1.5 साल से जैविक खेती से जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपने खेत में बायोगैस प्लांट भी लगवाया है, जिसकी मदद से वह जैविक खाद तो बना ही रहे हैं साथ ही रसोई तक गैस भी पहुँचा रहे हैं।

अमरजीत के पास पुश्तैनी 7 एकड़ ज़मीन है। लगभग 17 बरस पहले उन्होंने खेती को छोड़ अपना व्यवसाय करने की ठानी थी। उनके पिता तब खेती संभालते थे और 12वीं कक्षा पास करके अमरजीत ने तय किया कि वह कोई व्यवसाय करेंगे।

अमरजीत ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने फर्नीचर आदि का काम शुरू किया और वह अच्छा चल निकला। व्यवसाय में आगे बढ़े और सफलता भी मिलने लगी। पिताजी ने भी फिर कुछ सालों बाद खेती छोड़ दी और हम कारोबार पर ही ध्यान देने लगे।”

अपने कारोबार के साथ-साथ अमरजीत समाज सेवा से भी जुड़ गए। अलग-अलग जगह होने वाली गोष्ठियों में वह जाते और हरियाणा में ज़्यादातर किसानों की समस्यायों, पर्यावरण और रासायनिक खेती के प्रभावों पर काफी चर्चा होती। उन्हें जैविक खेती और रासायनिक खेती के बीच का अंतर समझ में आया।

रासायनिक तरीकों से उगा खाना खाने से मानव जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को उन्होंने समझा और तय किया कि वह गाँव के किसानों को इस बारे में जागरूक करेंगे। उन्हें जैविक तरीके अपनाने के लिए समझायेंगे ताकि उनका भी फायदा हो और आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतरीन कल की नींव रखी जा सके।

Amarjeet, Farmer

लेकिन जब किसानों को जैविक खेती से जोड़ने की मुहिम शुरू हुई तो किसान उनकी सुनने की बजाय उनसे ही पूछ बैठते, ‘क्या आप खुद कर रहे हो जैविक खेती?’ अब जो खुद खेती न कर रहा हो वह भला किसानों का कितना विश्वास जीत पाता। इसलिए आखिरकार, अमरजीत ने तय किया कि वह खुद अपनी ज़मीन पर एक बार फिर खेती करेंगे और इस बार पूरी तरह से जैविक करेंगे।

“मैं पहले ही जैविक किसानों से मिला था और जैविक खेती की ट्रेनिंग भी की थी तो उसी जानकारी के साथ मैंने अपनी 7 एकड़ ज़मीन पर खेती शुरू की। यहाँ पर 4 एकड़ में मैंने बाग लगाया जिसमें अमरुद मुख्य फसल है और इसके अलावा, मौसमी, चीकू आदि फलों के पेड़ हैं। इन बड़े पेड़ों के नीचे और बीच में, हम सब्ज़ियाँ उगाते हैं। बाकी 3 एकड़ में गेहूँ, दाल और चना जैसी फसलें लेते हैं,” अमरजीत ने बताया।

वह आगे कहते हैं कि उन्हें अभी से काफी अच्छी उपज मिल रही है। उन्होंने हाल ही में सब्जियां बेचीं हैं और उनका बाग़ भी लगभग अगले साल तक फल देने लगेगा। अच्छी गुणवत्ता और ज्यादा उपज, इन दो चीजों का श्रेय वह देते हैं गोबर को। अमरजीत अपने खेत में गोबर का ही इस्तेमाल करते हैं लेकिन वह इसका अलग-अलग रूप में इस्तेमाल करते हैं। इससे खेतों को और फसल को पूरा पोषण मिलता है और उन्हें अच्छी उपज।

His Farm

यह संभव हो पा रहा है उनके बायोगैस प्लांट से। अमरजीत ने पिछले साल ही अपने यहाँ बायोगैस प्लांट लगवाया है और इससे उन्हें न सिर्फ बायोगैस बल्कि स्लरी के रूप में तरल और ठोस, दोनों ही तौर पर अच्छी खाद भी मिल रही है। उनके घर में 4 पशु हैं और इनका जरा-सा भी गोबर वेस्ट नहीं जाता है। वह कहते हैं कि उनके यहाँ उत्पन्न होने वाला गोबर पूरी तरह से इस्तेमाल में लाया जा रहा है। इससे न तो गोबर खुले में पड़े रहने की समस्या है और न ही इससे कूड़ा-कचरा बढ़ रहा है। दूसरा, गोबर सीधा खेत में इस्तेमाल करने से इसमें मौजूद मीथेन भी खेतों में जाती थी, जो उनके मुताबिक मिट्टी के लिए ठीक नहीं होता है।

“इसके अलावा, जब गोबर खुले में पड़ा-पड़ा सूख जाता है तो इसके बहुत से पोषक तत्व भी कम हो जाते हैं क्योंकि इसमें जो भी नमी होती है, वह खत्म हो जाती है। लेकिन जब बायोगैस प्लांट से स्लरी के रूप में यह निकलता है तो इसमें सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं और इस स्लरी को छानकर तरल खाद के रूप में पेड़ों को दिया जा सकता है। इसे छानकर जो गोबर बचता है, वह सूखी खाद के तौर पर इस्तेमाल होता है,” उन्होंने कहा।

बायो गैस प्लांट्स को लेकर देश में लोगों की धारणाएं बहुत अलग-अलग हैं। कुछ लोग कहते हैं कि उनके यहाँ यह कामयाब हुआ है तो कुछ लोगों के लिए यह एक असफल प्रयास रहता है। अमरजीत ने भी जब अपने यहाँ बायोगैस प्लांट बनवाना शुरू किया तो बहुत से लोगों ने उन्हें हिदायत दी कि वह न बनवाएं, कोई फायदा नहीं होता है। लेकिन अमरजीत ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने यहीं के एक स्थानीय मिस्त्री से इसका निर्माण कराया।

A local Mason built his plant

सबसे पहले एक अंडरग्राउंड टैंक बनाया गया और इसके साथ, दो अलग टैंक बनवाए गए, जो कि ज़मीन के ऊपर हैं। एक टैंक, इनलेट है मतलब जहाँ से गोबर डाला जाता है और इस टैंक के साथ ही एक वाटर टंकी भी रखवाई गई है ताकि जब ज़रूरत हो तो इसे खोलकर गोबर में पानी मिलाया जा सके। इसमें से गोबर, किचन वेस्ट और पानी का मिश्रण नीचे अंडरग्राउंड टैंक में जाकर जमा होता है और वहीं पर फर्मेंटेशन होता है। यहाँ से बायोगैस को एक पाइप लाइन के ज़रिए सीधा रसोई में गैस से जोड़ा गया है।

इसके साथ ही, एक दूसरा टैंक भी बाहर बनाया गया है, जो आउटलेट है। मतलब यहाँ से बची हुई स्लरी बाहर निकलती है। इस स्लरी को अमरजीत यहाँ से निकालकर पहले कपड़े से छानते हैं और जो भी तरल बचता है, उसे वेस्ट डी-कम्पोजर में मिलाया जाता है। इसे बाद में, खेतों में दिया जाता है। स्लरी में जो भी गोबर होता है, उसे सूखने के बाद खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा अमरजीत अपने खेतों में और कुछ इस्तेमाल नहीं करते हैं। वह तरल खाद और गोबर की खाद, दोनों को स्टोर भी करते हैं।

Slurry

आगे बात यदि बायोगैस की करें तो उनका कहना है कि इसकी मदद से उनके यहाँ साल भर में लगभग 5-6 सिलिंडर की बचत तो हो ही जाती है। “ऐसा नहीं है कि बायोगैस से हमारे घर की आपूर्ति हो जाती है। लेकिन चाय-दूध बनाने के लिए यह काफी रहती है। घर-परिवार में महीने में लगभग आधा सिलिंडर तो इन छोटे-छोटे कामों में खर्च होता है। हमारे घर में अगर एक महीने में एक गैस सिलिंडर लगता है तो अब बायो गैस की वजह से वह 15 दिन ज्यादा चल पाता है। इस तरह से हम सालभर में 5-6 सिलिंडर की बचत तो कर ही पाते हैं,” उन्होंने आगे कहा।

अमरजीत को बायोगैस प्लांट बनवाने के लिए सरकार की सब्सिडी भी मिली है। उन्होंने लगभग 25 हज़ार रुपये की लागत से यह प्लांट बनवाया था। इसके बाद, उन्होंने अपने इलाके के एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर (ADO) से संपर्क किया और उन्हें इसकी सारी जानकारी दी।

लगभग 2-3 हफ्ते बाद अमरजीत के अकाउंट में लगभग 50% सब्सिडी के 12 हज़ार रुपये आ गए। इस तरह से उनका खर्च मात्र 13 हज़ार रुपये का हुआ और अब एक बायोगैस प्लांट की मदद से ही वह अपने घर की रसोई और अपनी खेती, दोनों जगह अच्छी बचत कर पा रहे हैं।

अगर कोई यह सोचकर बायोगैस प्लांट लगवाता है कि उनके घर का पूरा गैस का खर्च निकल आएगा तो ऐसा शायद संभव नहीं है। किसानों को बायोगैस प्लांट अपनी खेती और घर, दोनों के लिए लगवाना चाहिए। इसके कई फायदे हैं:

अगर आप बायोगैस प्लांट के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो अमरजीत से 9255164888 पर संपर्क कर सकते हैं!

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