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न बीज खरीदा, न खाद! 3 एकड़ से कमाती हैं 2 लाख रुपए, 3 हजार को जोड़ा रोजगार से

organic farming

आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जो न तो ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं, न ही किसी बड़े शहर में रहती हैं। बावजूद इसके, वह अपने गांव और आस-पास के कई गावों की महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। हम बात कर रहे हैं, गुजरात के नर्मदा जिले के सागबारा तालुका की रहनेवाली महिला किसान, उषा वसावा की। 

उषा, आज से 17 साल पहले एक सामान्य गृहिणी थीं। उनके पति दिनेश वसावा एक किसान थे, जो अपनी पांच एकड़ जमीन पर खेती करते थे। लेकिन खेती में खाद, बीज, मज़दूर का खर्च इतना ज़्यादा था कि बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा चल पाता था। ऐसे में, उषा ने खेती में कुछ बदलाव लाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें खेती की ज्यादा जानकारी नहीं थी। तभी उन्हें Aga Khan Rural Support Programme (India) के बारे में पता चला। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “उस समय घर से निकलना इतना आसान नहीं था। लेकिन मुझे अपनी आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना था। इसलिए मैंने 2005 में AKRSPI ज्वाइन किया।”

यह संस्था ग्रामीण और आदिवासी इलाके में लोगों को रोजगार के साधन और सरकारी योजनाओं के लाभ से जोड़ने का काम करती है। 

उषा वसावा

ट्रेनिंग से आया बदलाव 

उषा बताती हैं, “हमे वहां लीडरशिप, जमीन पर महिला अधिकार और सरकारी नियमों व योजनाओं की जानकारी दी गई। साथ ही, हमें ऑर्गेनिक खेती की तालीम भी मिली।” चूँकि, उस समय बहुत कम लोग ऑर्गेनिक खेती के बारे में जानते थे, इसलिए सभी को लगता था कि इस तरह की खेती से फसल अच्छी नहीं होगी। 

वह बताती हैं कि उस समय हाइब्रिड बीजों और नए रासायनिक खाद का उपयोग ज्यादा किया जा रहा था। लेकिन उन्हें अपनी ट्रेनिंग पर पूरा भरोसा था। वहां उन्हें ट्रेनिंग के दौरान, वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) बनाना और ऑर्गेनिक कीटनाशक बनाना भी सिखाया गया था। उषा ने अपनी पांच एकड़ जमीन में से, तकरीबन तीन एकड़ में ऑर्गनिक खेती से शुरुआत की। 

उषा बताती हैं, “चूँकि जमीन में पहले से काफी मात्रा में रसायन का उपयोग हुआ था। इसलिए जमीन के प्राकृतिक तत्व कम हो गए थे। यही कारण था कि पहले साल हमें मुनाफा भी कम हुआ। अच्छी फसल के लिए, अच्छी जमीन बहुत जरूरी है। हमने खेतों को धीरे-धीरे वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर आदि से तैयार किया। हमने  फिर अगले साल, उसमें सब्जियां, दाल और मुंगफली उगाईं।” 

अब वह हर साल, अपने खेतों में सीजनल सब्जियां, लाल चावल आदि उगाती हैं। उनके बाकि दो एकड़ खेत में कपास की खेती होती है। 

खेती में देसी तरीकों का इस्तेमाल 

वह कहती हैं कि हम खेतों में दवा के रूप में गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं।। पंप की मदद से खेतों में उसका छिड़काव करते हैं। इससे कीट मर जाते हैं। साथ ही, गो-मूत्र का असर लंबे समय तक रहता है। वहीं, खाद के लिए गोबर का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक एकड़ जमीन के लिए खाद तैयार करने के लिए 20 किलो गोबर, 5 लीटर गौ-मूत्र, एक किलो बेसन, 1 किलो गुड़ और 5 किलो मिट्टी की जरूरत होती है। इन सभी को मिलाने के बाद कुछ देर तक इसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर इन्हें खेत में मिलाया जाता है।
उषा बताती हैं, “हमें बीज खरीदने के लिए मार्केट जाने की जरूरत नहीं होती है। हम हर साल अपनी उपज से ही कुछ बीज बचा लेते हैं।”

अपने साथ हजारों महिलाओं को रोजगार से जोड़ा 

उन्होंने अपने तालुका के सरकारी विभागों के साथ मिलकर, महिला किसानों के अधिकारों के लिए काम करने की शुरुआत की। उषा ने अपनी तालुका की कुछ और महिलाओं के साथ मिलकर साल 2012 में, नवजीवन आदिवासी महिला विकास मंच बनाया। वह यहां अपने जैसी दूसरी आदिवासी महिलाओं को भी ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग देती हैं और उन्हें उनकी जमीन पर खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं। 

वह बताती हैं, “हम अलग-अलग कम्युनिटी ट्रेनर तैयार करते हैं। बाद में, वह ट्रेनर अपने इलाके के आस-पास की महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं।” इस तरह आज उनके ‘नवजीवन आदिवासी महिला विकास मंच’ से तीन हजार महिलाएं जुड़ चुकी हैं। ये सारी महिलाएं भी आज ऑर्गेनिक खेती और अपने फसल की प्रोसेसिंग से कई अन्य प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं। 

हजारों महिलाओं को प्रेरित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनानेवाली उषा को,  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की तरफ से पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय कृषि पुरस्कार-2018 से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा, और कई संस्थाओं की ओर से भी उन्हें अवार्ड दिए गए हैं।

अंत में वह कहती हैं, “हमें अपने जमीन की उर्वरकता बढ़ाने और कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। मैं कोशिश करूंगी कि ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खेती कर रहे लोगों को, ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित कर सकूँ।”  

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संपादन – मानबी कटोच


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