कहते हैं कि यदि आप ठान लें तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे ही किसान की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसने तमाम विरोध के बावजूद जैविक तरीके से खेती करने की ठानी और आज वह 50 बीघा में न केवल जैविक तरीके से हल्दी की खेत कर रहा है बल्कि प्रोसेसिंग कर हल्दी के उत्पाद भी बेच रहा है। जैविक खेती की वजह से ही इस किसान को इजरायल जाने का भी मौका मिला।
गुजरात के सारंगपुर गाँव में रहने वाले 30 वर्षीय भाविक खचर पिछले 6 सालों से हल्दी की जैविक खेती कर रहे हैं। हल्दी उगाने के साथ-साथ वह प्रोसेसिंग भी खुद ही करते हैं। वह इन दिनों हल्दी की फसल और पाउडर, दोनों से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
बीए तक की पढ़ाई करने वाले भाविक के पास पुश्तैनी 80 बीघा ज़मीन है। उनके पिता इस पर पहले कपास की खेती करते थे और यह रासायनिक तरीकों से होती थी। भाविक अक्सर अख़बारों में और सोशल मीडिया आदि पर जैविक और प्राकृतिक खेती के बारे में पढ़ा करते थे। वह सोचते कि रसायनिक खेती का खर्च इतना ज्यादा पड़ता है तो क्यों न एक बार यह कम खर्च की जैविक खेती आजमाई जाए। लेकिन उनके पिता पारंपरिक किसान थे और उन्हें लगता था कि जैविक खेती में बहुत ज्यादा उत्पादन नहीं होगा तो सारी मेहनत बेकार जाएगी।
भाविक कहते हैं, “लेकिन मैंने ठान लिया था और मैं उन किसानों के यहाँ गया जो जैविक खेती कर रहे हैं। उनसे जानकारी ली और देखा कि कैसे आप मेहनत से बिना ज़मीन को नुकसान पहुँचाए अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। मैंने पिताजी को जैविक खेती के लिए तैयार किया और 5 बीघा ज़मीन पर हल्दी की खेती से शुरुआत की।”
उन्होंने जैविक किसानों से ही हल्दी लगाने के लिए हल्दी की गांठे लीं और अपने खेत पर ही गोबर और गौमूत्र से जीवामृत बनाया। वह कहते हैं कि सबसे पहले उन्होंने जीवामृत बनाना सीखा। इसके बाद उन्होंने वेस्ट डीकम्पोज़र भी बनाया।
भाविक कहते हैं कि हल्दी की बुवाई मई के अंत और जून के शुरू में हो जाती है। इसकी खेती उन जगहों पर करनी चाहिए जहाँ खेत में पानी न ठहरे। इसके लिए आप बेड भी बना सकते हैं और इस तरह से खेत में छोटी-छोटी नालियां बनाएं कि जब आप खेत की सिंचाई करे तो यह मिट्टी में बस नमी रखे और बाकी पानी खेत से निकल जाए। हल्दी एक कंद सब्ज़ी है और इसलिए अगर पानी ठहरेगा तो यह सड़ जाएगी। किसानों को पानी के प्रबन्धन पर ख़ास ध्यान देना होता है।
“हल्दी के खेत में आपको निराई-गुड़ाई का भी ख़ास ध्यान रखना होता है। खेत में खाद और पोषण का पूरा ध्यान रखा जाता है। मेरी पहली उपज अच्छी रही। इसके बाद पिताजी को यकीन हुआ कि जैविक में भी अच्छा हो सकता है और फिर तो उन्होंने पूरी ज़मीन की ज़िम्मेदारी ही मुझे दे दी,” उन्होंने आगे बताया।
भाविक जैविक तरीकों से खेती करने वालों के एक समूह से भी जुड़ गए। किसानों के इस नेटवर्क के ज़रिए ही उन्हें इज़रायल जाने का मौका मिला। वहाँ उन्होंने प्रोसेसिंग के बारे में जाना। वह बताते हैं कि इज़रायल दौरे में उनकी मुलाक़ात वहाँ के अग्रणी किसानों से हुई। उन्होंने देखा कि कैसे वहाँ किसान खुद ही अपनी फसल में वैल्यू ऐड करके और पैकिंग करके बेचते हैं। इससे उन्हें ज्यादा कमाई मिलती है।
वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने तय किया कि वह हल्दी की प्रोसेसिंग करेंगे। उन्होंने इसकी शुरूआत अपने फार्म के नामकरण से की। इसके बाद उन्हें हल्दी के लिए अपना ब्रांड नाम भी चाहिए था और अपने गाँव के नाम पर उन्होंने ‘सारंग फार्म’ को रजिस्ट्रर कराकर जैविक सर्टिफिकेट लिया। शुरुआत में, उन्होंने बहुत ज्यादा इन्वेस्ट नहीं किया और एक क्विंटल हल्दी पाउडर तैयार किया। शुरू में उन्हें मार्केटिंग को लेकर थोड़ा संदेह था। लेकिन इसमें भी उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं आई। उन्होंने बिक्री के लिए एक स्टॉल लगा दिया।
“हल्दी पाउडर हाथों-हाथ बिक गया। कुछ ने स्टॉल से खरीदा तो कुछ लोगों ने हमें फ़ोन करके डायरेक्ट मंगवाया। अब पिछले दो सालों से हम लगभग 5 टन हल्दी पाउडर बना रहे हैं।” हल्दी पाउडर बनाने के लिए उन्होंने अभी भी अपनी कोई फिक्स प्रोसेसिंग यूनिट सेट -अप नहीं की है। वह कहते हैं कि राजकोट से किराए पर कुछ दिनों के लिए बायलर ले आते हैं। इसमें हल्दी को भाप में उबालकर सूखा लिया जाता है और फिर स्थानीय तौर पर प्रोसेसिंग यूनिट्स में लगी ग्राइंडर मशीन में पिसवाया जाता है।
वह अपने फार्म में हल्दी की पैकिंग करते हैं। इसके बाद, इसे स्टॉल पर पहुँचाया जाता है और बहुत से ग्राहकों को सीधा डिलीवर किया जाता है। हल्दी पाउडर के अलावा, वह अपने खेतों के लिए बीज भी तैयार करते हैं। “हमारी खेती गौ आधारित है और बीज, जीवामृत सभी कुछ हम घर पर ही बना लेते हैं तो एक बीघा पर हमारा खर्च लगभग 5-6 हज़ार रुपये तक आता है। इसके अलावा, अब जो हम पाउडर बनाकर बेचते हैं, उससे एक बीघा से लगभग 40-50 हज़ार रुपये की कमाई होती है,” भाविक ने बताया।
भाविक इन दिनों 50 बीघा में हल्दी की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा वह अनार की भी खेती करते हैं। वह स्थानीय लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं। अपने गाँव में वह हल्दी उगाकर उसकी प्रोसेसिंग करने वाले अकेले किसान है और इसलिए दूसरे गाँव से भी किसान अब उनके पास आकर उनकी खेती को देख रहे हैं और समझ रहे हैं।
“बहुत से किसान मेरे पास आते हैं और गुजराती मीडिया ने भी कवर किया है। अच्छा लगता है कि मैं किसी को प्रेरित कर पा रहा हूँ। मैं हर किसी से बस यही कहता हूँ कि जैविक खेती में मेहनत भले ही ज्यादा है लेकिन लागत बहुत कम है और अगर किसान ठान ले तो वह कुछ भी कर सकता है,” उन्होंने अंत में कहा।
अगर आप भाविक से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9898234200 पर व्हाट्सअप मैसेज कर सकते हैं!
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