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अतिथि देवो भवः! देश की संस्कृति व अपनी सोच के साथ, अब 10 देशों में व्यापार कर रहा यह किसान

Purushottam using forest model & water harvesting for organic farming

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के जमुका गांव में रहने वाले पुरुषोत्तम सिद्धपारा को खेती विरासत में मिली है। वह 18 साल की उम्र से खेती करते आ रहे हैं। साल दर साल मेहनत से वह अपने इस बिज़नेस को काफी ऊंचाइयों पर ले आए हैं। आज केमिकल और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किए बिना, ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) के जरिए वह अपने खेत में, अनाज से लेकर मसाले, दाल, सब्जियां और फल तक, सब कुछ उगाते हैं। इतना ही नहीं वह, भारत के अलावा दस अन्य देशों में भी इन्हें बेच रहे हैं।

ऑर्गेनिक खेती तो भारत के बहुत से किसान कर रहे हैं। तो ऐसा क्या है, जो इस पचास वर्षीय किसान को बाकी सब से अलग करता है? वो है, उनकी मेहमान नवाज़ी से जुड़ी अनोखी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी (रणनीति)।

मेहमान-नवाज़ी बनी सफलता की सीढ़ी

अगर पुरुषोत्तम की मार्केटिंग स्ट्रैटेजी की बात कि जाए, तो उनका कहना है कि वह इस पर एक पैसा नहीं खर्च करते। हालांकि उनके इस दावे पर अधिकांश लोगों को विश्वास नहीं होता। मगर सच्चाई यही है, उनकी मेहमान-नवाज़ी ही उनकी मार्केटिंग रणनीति है।

द बेटर इंडिया को सिद्धपारा बताते हैं, “अतिथि देवो भवः!, मैं इस भाव को पूरे मन से अपनाता हूं। मैं अपने संभावित डीलर्स या ग्राहकों को अपने फार्म पर बुलाता हूं, जहां वे कुछ दिन तक मेरे साथ रह सकते हैं। इस दौरान मैं उन्हें अपने खेती करने के तरीके के बारे में विस्तार से बताता हूं।”

उन्होंने कहा, “मैं उन्हें अपने खेत में उगी सब्जियों से बना खाना खिलाता हूं और उनके सभी सवालों का जवाब देता हूं। इसके लिए मैं एक पैसा नहीं लेता। अगर उन्हें हमारा बनाया हुआ खाना पसंद आता है, तो हम ऑर्डर के लिए फोन नंबर एक्सचेंज करते हैं। उन्हें फसल की पैदावार के बारे में व्हाट्सएप पर नियमित अपडेट भी दी जाती है। इससे उनका विश्वास हासिल करने में काफी मदद मिलती है।”

कैसे आया मार्केटिंग का यह अनूठा आइडिया?

Purshotam Sidhpura

सिद्धपारा को मार्केटिंग का यह अनूठा विचार कैसे आया?  इसके पीछे, 20 साल पहले सूखे से निपटने के लिए शुरू की गई एक पुरानी पहल है। उस समय इस पहल ने देशभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। साल 2019 से जूनागढ़ का जमका गांव सूखे का समस्या से जूझ रहा था। फसलों को नुकसान हो रहा था और गांव के लिए सूखा, मुख्य चुनौती बन गई। उसी साल गांववालों ने एकजुट होकर सूखे से निपटने के लिए धनराशि इकट्ठी करनी शुरू की। ताकि छोटे बांध और जलाशय बनाए जा सकें।

सिद्धपारा याद करते हुए बताते हैं, “हमने 45 लाख रुपये इकट्ठा कर लिए थे। तीन हजार की आबादी वाले गांव के लिए इस राशि से 55 छोटे बांध और पांच तालाब बनाए गए। जब बारिश हुई, तो इन नए जलाशयों ने लाखों लीटर पानी को यूं ही बरबाद होकर बह जाने से बचा लिया। भूजल स्तर, जो पहले 500 फीट नीचे था,  50 फीट पर आ गया। उसके बाद से इस गांव के लिए बारिश की कमी कभी समस्या नहीं बनी।”

वह आगे कहते हैं, “गुजरात सरकार ने भी जमका गांव के इस मॉडल को सराहा था। जो क्षेत्र पानी की कमी से जूझ रहे थे, वहां इसे अपनाया गया। विशेषज्ञ, छात्र, जल कार्यकर्ता और मीडिया इसके परिणामों का अध्ययन करने के लिए पूरे एक साल तक गांव का दौरा करते रहे।” सिद्धपारा और गांववाले, वहां आने वाले सभी लोगों का गर्मजोशी से स्वागत करते और उन्हें अपने फार्म पर ले जाते थे। 

2 करोड़ से ज्यादा का है टर्न-ओवर 

सिद्धपारा कहते हैं, “मेरे घर का खाना खाने के बाद, मेहमानों ने खेत में उगाए गए फलों और मसालों को सीधा हमसे खरीदने की इच्छा जताई। पहली बार हम ग्राहकों से सीधे डील कर रहे थे। क्योंकि तब तक हमारा बिज़नेस मॉडल बी टु बी (बिज़नेस टु बिजनेस) पर आधारित था। वापस जाकर यही लोग अपने दोस्तों और परिवारवालों को मेरे फार्म के बारे में बताते। इस तरह से मेरा बिज़नेस जुबानी तौर पर आगे बढ़ने लगा। यह मेरी सबसे बड़ी सीख थी और मैंने मेहमानों की आवभगत करना जारी रखा।”

उनका साल भर का टर्न-ओवर 2 करोड़ से ज्यादा का है, और उनके साथ अमेरिका, इंग्लैंड, नॉर्वे जर्मनी, दुबई और इथोपिया समेत कई देशों के ग्राहक जुड़े हैं।

सिद्धपारा कहते हैं, “ग्राहकों को आमंत्रित करने का मंत्र तभी काम करता है, जब आपकी खेती की प्रक्रिया और तकनीक बेहतर हो, और उसमें गलतियों की गुंजाइश ना के बराबर हो।” उन्होंने यह भी बताया कि कैसे केमिकल फॉर्मिंग को ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) में बदलने से उनका मुनाफा बढ़ गया? साथ ही पानी की बचत के तरीकों और पोषक तत्वों से भरपूर फसल तैयार करने के लिए सुझाव भी दिए।

Organic Farming से पहले मुनाफा था, ना के बराबर

Purshotam Sidhpura,

पारिवारिक बिजनेस होने के कारण सिद्धपारा की किस्मत में खेती करना तो था ही। लेकिन यह उनका जुनून भी था। खेती के लिए 18 साल की उम्र से उनके पास कई आइडियाज़ थे, जो उनकी पढ़ाई के दौरान उन्हें मिले। उन्होंने ऑर्गेनिक खेती करने के तरीकों के बारे में जाना।

सिद्धपारा बताते हैं, “मेरे पिताजी खेती करने के लिए रासायनिक खाद और गोबर दोनों का इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन मैं केमिकल से छुटकारा पाना चाहता था। जब मैंने दूसरे किसानों को इस बारे में बताया, तो उन्होंने मेरा मजाक बनाया। भाग्यवश, हमारे 15 एकड़ खेत में गाय के गोबर का इस्तेमाल होता था, इसलिए रसायनों का इस्तेमाल न करने से फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ।” 

ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) शुरू करने से पहले, उनका मुनाफा ना के बराबर था और जो भी कमाई हुई, उसे अगली फसल के लिए केमिकल और पेस्टिसाइड खरीदने में लगाना पड़ा। उन्होंने बताया कि उस वक्त, उनकी कमाई सिर्फ उतनी ही थी, जितनी एक खेतिहर मजदूर की होती है।

फॉरेस्ट मॉडल से बचाया पानी

सिद्धपारा ने अपनी खेती के लिए फॉरेस्ट मॉडल को अपनाया, जिसमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने अपने खेत में सबसे पहले शरीफा, आम, नारियल और पपीते जैसे फल देने वाले पेड़ लगाए और इन्हीं पेड़ों के बीच में ज्वार, बाजरा, मक्का जैसी फसल और धनिया व मिर्ची जैसे मसालों की पौध रोप दी। इसके पीछे मकसद था कि वे एक दूसरे को बढ़ने में मदद करेंगे। पेड़ों से पौधों को छाया व सूरज की रोशनी भी मिलेगी और पेड़ों के पास होने से पानी भी कम लगेगा।

हालांकि खेती करने के इस अनोखे तरीके में इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि एक बार में कितनी पैदावार होगी। लेकिन इसका फायदा बहुत ज्यादा है। यह तकनीक पौधों को खुद बढ़ने देने और मिट्टी की उर्वरता को बरकरार रखने में मदद करती है।

वह आगे कहते हैं, “मिट्टी के सही प्रबंधन से 15 से 18 जरूरी पोषक तत्वों को बरकरार रखा जा सकता है। केमिकल, कीड़ों के साथ-साथ मिट्टी से इन पोषक तत्वों को भी खत्म कर देते हैं। फॉरेस्ट फार्मिंग के जरिए मिट्टी खुद ही बायोमास से इन पोषक तत्वों को प्राप्त कर लेती है। गाय के गोबर में भी करोड़ों लाभकारी सूक्ष्मजीव होते हैं, जो सूखे बायोमास को मिट्टी में डीकम्पोज कर देते हैं और इसे पौधों के लिए रेडी टू यूज़ न्यूट्रीएंट में बदल देते हैं। गोबर में कार्बन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं।”

गाय के गोबर, गुड़ और छाछ से बनाई खाद

Sidhpura also sells value-added products from fresh cultivation

ऑर्गेनिक खाद बनाने के लिए उन्होंने एनारोबिक फॉर्मूले को अपनाया, जिसमें गाय के गोबर, गुड़, छाछ और माड़ (चावल का पानी) को डाइजेस्टर में मिलाकर एक लिक्विड स्प्रे बनाया जाता है। इस मिक्सचर को पानी के साथ सीधे पौधों की जड़ों में स्प्रे किया जाता है।

इसके अलावा नेचुरल मल्चिंग (प्राकृतिक तौर पर सड़ी हुई घास से ढकना) प्रक्रिया भी काफी फायदेमंद रही। उन्होंने सूखे पत्ते और गेहूं के भूसे को जलाने के बजाय, जमीन पर बिछाने या ढकने के काम में लिया। इससे जमीन में नमी और ठंडक बरकरार रहती है।

वह कहते हैं, “ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करने से मेरी खेती की लागत में 40 प्रतिशत की कमी आ गई और मल्चिंग के कारण पानी की जरूरत भी लगभग 20 प्रतिशत तक घट गई। माइक्रो इरिगेशन (ड्रिप सिंचाईं) सिस्टम की वजह से भी पानी की काफी बचत हो जाती है।”

अब अचार, चटनी और च्यवनप्राश भी बेचते हैं

इन सरल उपायों से सिद्धपारा की आय में लगभग पांच गुना की बढ़ोतरी हुई। इस प्रॉफिट को उन्होंने अचार, चटनी, च्यवनप्राश, मूंगफली व तिल का तेल, गेहूं का आटा और दाल आदि उत्पादों में फिर से निवेश कर दिया। उनके अनुसार, इससे उनका मुनाफ़ा 15 प्रतिशत और बढ़ गया।

भवानी मोदी पिछले 12 सालों से सिद्धपारा के इन उत्पादों को खरीद रहे हैं। वह कहते हैं, “पुरुषोत्तम भाई के उत्पाद गुणवत्ता और मात्रा के मामले में भरोसे के लायक हैं, हमेशा ताजे और सेहत के लिए बिल्कुल परफेक्ट। इनका स्वाद बाजार में मिलने वाले प्रोडक्ट्स के स्वाद से काफी अलग है।”

जहां ऑनलाइन पोर्टल पर बिना इंतजार किए, ग्राहक सीधे ऑर्डर बुक कर सकते हैं। वहीं, इसके बिल्कुल उलट सिद्धपारा से उनके खेत में उगी फसल और उससे बनें उत्पाद के लिए, फसल के दौरान ही एडवांस में ऑर्डर देने पड़ते हैं। 

सिद्धपारा से फसल खरीदने या अधिक जानकारी के लिए, आप 9427228975 पर संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेखः गोपी करेलिया

संपादनः अर्चना दुबे

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