आज-कल कई किसान फसलों का सही मूल्य नहीं मिलने पर खेती छोड़ कुछ और रोज़गार ढूंढ़ने को मजबूर हैं। वहीं, कई किसान ऐसे भी हैं जो नए-नए तरीकों से फसलों को उगाकर लाखों का मुनाफ़ा कमा रहे हैं। वे अलग-अलग चीज़ों की खेती कर रहे हैं, जैसे- एलोवेरा, अनार, अलग-अलग तरह की एग्ज़ॉटिक सब्जियां, पपीता वग़ैरह। ऐसे ही एक किसान हैं देवरिया जिले के तरकुलवा के रहनेवाले रामानुज तिवारी, जो पपीते की खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं और इससे उन्होंने सफलता की एक नई कहानी लिख दी है।
कमाल की बात तो यह है कि रामानुज तिवारी एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं और कुछ समय पहले तक उन्हें खेती के बारे में कुछ भी पता नहीं था। इलेक्ट्रॉनिक से डिप्लोमा करने के बाद, उन्होंने रोज़गार ढूंढ़ना शुरू किया, लेकिन जब उनके मन की कोई नौकरी नहीं मिली, तो रामानुज ने गांव के चौराहे पर ही इलेक्ट्रॉनिक सामानों की रिपेयरिंग और बिजली उपकरणों की दुकान खोली। इस दुकान से काम तो चल रहा था, लेकिन इससे उन्हें अपना सपना साकार होता नहीं दिखा।
फिर उन्होंने अपने कुछ जानने वालों के साथ खेती के काम में भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि धान, गेहूं की पारम्परिक खेती में मुनाफ़ा तो दूर, लागत निकालना भी मुश्किल था। ऐसे में उन्होंने अख़बार में हाइटेक तरीक़े से खेती कर ज़्यादा मुनाफ़े की खबरें पढ़कर खेती में ही कुछ नया करने की ठानी।
कैसे मिली पपीते की खेती करने की राह?
रामानुज एक बार घूमने के लिए पंतनगर गए, जहां उनकी मुलाकात एग्रीकल्चर के कुछ स्टूडेंट्स से हुई, जो आपस में पपीते की हाइटेक खेती के बारे में बातचीत कर रहे थे। उनकी बात सुनकर रामानुज ने पपीते की खेती के बारे में पूरी जानकारी ली और पपीते के बीज और कुछ किताबें लेकर घर आ गए। बाक़ी लोगों को उन्होंने पपीते की खेती के बारे में बताया तो सभी ने उनकी हंसी उड़ाई, लेकिन अपने फ़ैसले के पक्के रामानुज का हौसला कम नहीं हुआ।
किताबों को पढ़कर उन्होंने पहली बार आधा एकड़ खेत में पपीते की खेती शुरू की। जानकारी कम होने की वजह से पहली बार तो कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ, लेकिन फिर भी इस खेती से उन्हें धान, गेहूं और गन्ने से ज़्यादा मुनाफ़ा मिला। अब उन्होंने पपीते की खेती के बारे में और जानकारी इकट्ठा की और दूसरी बार में उन्हें लागत से चार गुना मुनाफ़ा मिला।
एक एकड़ में 1500 पौधे लगाकर 6 महीने में तैयार करते हैं पपीते की फसल
आज रामानुज तिवारी एक एकड़ ज़मीन पर पपीते की खेती कर रहे हैं। वह अच्छी कंपनियों के हाइटेक बीज लाकर पहले पौधे तैयार करते हैं। फिर डेढ़ से पौने दो मीटर की दूरी पर रोपाई करते हैं। वह बताते हैं कि एक एकड़ खेत में 1500 पपीते के पौधे लगाए जाते हैं, जिसकी लागत 20 रुपए/पौधे के हिसाब से 30 हज़ार रुपए आती है। रोपाई से पहले खेत की जुताई कराकर खर-पतवार निकालकर उसमें देसी खाद डाली जाती है।
फिर सिंचाई कर पौधों की रोपाई की जाती है। छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर पौधों के चारों तरफ पुआल बिछाया जाता है, ताकि गरमी का असर न पड़े और नमी बरकरार रहे। पौधों की रोपाई फरवरी-मार्च और अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। रोपाई के बाद फसल तैयार होने में 6 महीने का वक्त लगता है। इस बीच एक पौधे में डाई, यूरिया और पोटास का मिश्रण कर 750 ग्राम खाद डाली जाती है। समय-समय पर दवा का छिड़काव और सिंचाई पर विशेष ध्यान देना पड़ता है।
बाक़ी किसानों को भी दिया अच्छी आमदनी का ज़रिया
रामानुज पारंपरिक खेती से हटकर वैज्ञानिक तरीक़े से पपीते की खेती करके पूर्वांचल में सफलता की एक नई मिसाल बन गए हैं। उन्हें पपीते की खेती से न सिर्फ़ आर्थिक मज़बूती मिली, बल्कि उन्होंने क्षेत्र के बाक़ी किसानों को आमदनी की नई राह भी दिखाई है। मुनाफ़ा न मिलने की मुश्किल से गुज़र रहे धान, गेहूं की खेती करने वाले कई किसान रामानुज को देखकर आज पपीते की खेती में भविष्य तलाश रहे हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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