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केरल का एक वैज्ञानिक बना किसान, ‌जैविक‌ ‌तरीकों‌ ‌से लगाए 800 विदेशी प्रजातियों के फल

Exotic Fruits Farming

यह कहानी केरल के एक ऐसे वैज्ञानिक की है, जो अपनी बीमार माँ की सेवा के लिए अपनी नौकरी छोड़कर, अपने गाँव लौट आए। गाँव लौटकर उन्होंने अपनी पैतृक जमीन पर खेती करने का फैसला किया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने अपने खेत को सैंकड़ों विदेशी किस्म के फलों (Exotic Fruits Farming) का बागान बना दिया है।

केरल के कोल्लम जिले में कोट्टाराकरा के रहने वाले 41 वर्षीय डॉ. हरि मुरलीधरन, पिछले 10 सालों से अपने खेत में विदेशी प्रजातियों के फलों के पेड़-पौधे उगा रहे हैं। एक एकड़ से भी कम जमीन पर, उन्होंने लगभग 800 विदेशी प्रजातियों के फलों के पौधे लगाए हुए हैं। कुछ फल तो ऐसे भी हैं, जिनके नाम से अभी भी कई लोग अनजान होंगे। मुरलीधरन ने अपने फार्म का नाम ‘ग्रीन ग्राम फार्म’ रखा है। 

उन्होंने इन सभी प्रजातियों को अलग-अलग देशों के किसानों और बागवानों से, इकट्ठा करके अपने यहाँ लगाया है। सभी पेड़-पौधे जैविक तरीकों से उगाए गए हैं। और तो और उन्होंने अलग-अलग जगह की चेरी इकट्ठा करके, चेरी की एक नयी प्रजाति भी तैयारी की है, जिनका स्वाद काफी मीठा है। 

अपने सफर के बारे में मुरलीधरन ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की है और खेती करने से पहले, मैं चेन्नई के मुरुगप्पा चेट्टियार रिसर्च सेंटर में ‘सीनियर साइंटिस्ट’ के पद पर था। लेकिन अपनी माँ की बिगड़ती तबियत के कारण, मैं नौकरी छोड़कर अपने गाँव लौट आया ताकि उनकी देखभाल कर सकूं। मैं जब यहाँ लौटा तो देखा कि हमारी पैतृक जमीन खाली पड़ी है और जंगली घास-फूस उग गई है।”

डॉ. हरि मुरलीधरन

हमेशा से खेती में दिलचस्पी रखने वाले, मुरलीधरन ने अपनी जमीन को साफ करके इस पर कुछ उगाने के बारे में विचार किया। 

उन्होंने फैसला तो कर लिया लेकिन, यह राह इतनी आसान नहीं थी। वह बताते हैं कि जब जमीन साफ हो गई तो उन्हें समझ में नहीं आया कि वे इस पर क्या लगाएं? उन्होंने देखा कि अन्य किसान सामान्य खेती करते हैं। लेकिन, वह कुछ अलग करना चाहते थे। 

उन्होंने बताया, “एक दिन मेरी नजर अपने बच्चों के ‘फ्रूट चार्ट’ पर पड़ी। इसे देखकर, मुझे अलग-अलग फलों के पेड़ लगाने का ख्याल आया। लेकिन, मैं स्थानीय फलों की बजाय विदेशी फल लगाना चाहता था, जिनकी तलाश में मैं अलग-अलग किसानों से मिलने लगा।” 

एक एकड़ से भी कम जमीन पर लगाए सैकड़ों विदेशी फल 

वह कहते हैं कि उन्होंने अलग-अलग देशों के फलों के बारे में रिसर्च की और इन प्रजातियों को तलाशना शुरू किया। खासकर ऐसी प्रजातियां, जिन्हें वह केरल के तापमान और जलवायु में लगा सकते थे। इसलिए, वह राज्य के ऐसे किसानों से भी मिले, जो विदेशी फलों की खेती कर रहे हैं। पर, ज्यादातर जगह उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि, उन्हें लोगों का ज्यादा साथ नहीं मिला। लोगों को यह बात बहुत अजीब लग रही थी कि कोई वैज्ञानिक नौकरी छोड़कर खेती क्यों करना चाहता है? पर उन्होंने ठान लिया था कि वह पीछे नहीं हटेंगे। 

इसलिए, उन्होंने दूसरे देशों के लोगों से संपर्क करना शुरू किया। कई तरह की परेशानियों को हल कर, उन्होंने ब्राज़ील, मलेशिया, थाईलैंड, कैमरून जैसी जगहों से वहाँ के स्थानीय फलों के पौधे तथा बीज मंगवाए और इन्हें अपनी जमीन पर लगाया। वह बताते हैं, “मेरे बहुत से करीबी दोस्तों ने इस काम में मेरी मदद की। उन्हें अगर कहीं भी कोई विदेशी फल दिखता तो इसके बीज इकट्ठा करने की वे कोशिश करते और मुझे भेजते थे। विदेशों में रहने वाले कई बड़े किसानों से, मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी है और उनका मुझे बहुत साथ मिला है।” 

विदेशी किस्मों के फल

आज उनके खेतों में लगभग 800 तरह के विदेशी फलों के पेड़ हैं। इनमें से 500 से ज्यादा पर फल लगने लगे हैं, जिनमें सॉनकोय (Soncoya), अलामा (Ilama), यूगु (Ugu), ओलोसैपो (Olosapo), कुबल (Kubal), बिगनेय (Bignay), अराज़ा (Araza) और पीला जैबोटिकाबा (Yellow Jaboticaba) आदि शामिल हैं। यूगु, पेठा जैसा एक फल है, जो पश्चिम अफ्रीका के फलों की एक प्रजाति है। कुबल एक बेल है, जो फिलीपींस के फलों की एक प्रजाति है। ब्राज़ील से उन्होंने पीला जैबोटिकाबा मंगवाकर लगाया, जिसका स्वाद अनानास जैसा है। 

वह कहते हैं कि विदेशी लोगों ने, उन्हें न सिर्फ बीज और पौधे भेजे हैं बल्कि स्काइप कॉल के जरिए, इनके बारे में बहुत सी जानकारियां भी दी हैं। उन्होंने जो कुछ भी सीखा है, वह इन लोगों से और खुद प्रयोग करके ही सीखा है। अपने इस ज्ञान और जानकारी को लोगों के साथ साझा करने के लिए, उन्होंने 2016 में एक फेसबुक ग्रुप, ‘मैन्नम मनासुम’ (Mannum Manasum) की शुरुआत की। इस ग्रुप में उनसे 45 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। कुछ महीने पहले, उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल की भी शुरुआत की है। 

तैयार की चेरी की नई प्रजाति 

विदेशी फलों को सफलतापूर्वक लगाने के साथ-साथ, उन्होंने खुद भी चेरी की एक नयी प्रजाति तैयार की है। वह कहते हैं कि केरल में जो चेरी मिलती हैं, वे ज्यादातर खट्टी होती हैं। इसलिए, उन्होंने इन चेरी से मिलती-जुलती, 12 अन्य देशों की चेरी की किस्में इकट्ठा की और अपनी चेरी की किस्म विकसित की। इस चेरी का नाम उन्होंने ‘ग्रीन ग्राम स्वीट 17 पल्म चेरी’ रखा है, जो काफी मीठी है। उन्होंने अपनी चेरी की प्रजाति पर पेटेंट के लिए अप्लाई किया हुआ है। 

मुरलीधरन के फार्म में लगे कुछ और फल

मुरलीधरन के फलों का बगीचा न सिर्फ किसानों और बागवानी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए बल्कि विभिन्न प्रकार के पक्षियों और तितलियों के लिए भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। वह कहते हैं कि अपने पेड़-पौधों के साथ-साथ, वह इन जीवों का भी ध्यान रखते हैं। इन्हें बगीचे से भरपूर खाना मिलता है और साथ ही, मुरलीधरन ने उनके लिए पानी की व्यवस्था भी की हुई है। उन्होंने अपने बगीचे को जैविक तरीकों से विकसित किया है। पेड़ों को पोषण देने के लिए, वह सिर्फ जीवामृत बनाते हैं। हालांकि, यह बनाने के लिए उन्होंने कई अलग-अलग प्रयोग किये हैं। 

वह अपने बगीचे के किसी भी तरह के फल की बिक्री नहीं करते हैं। उनका कहना है कि उनके फलों पर पहला अधिकार इन पक्षियों का है। उसके बाद, उनके बगीचे को देखने के लिए आने वाले लोगों का और फिर, उनके अपने परिवार का अधिकार है। हालांकि, अगर कोई उनसे इन विदेशी फलों के पौधे खरीदना चाहता है तो वह उन्हें यह पौधे उपलब्ध कराते हैं। इनमें से कुछ सिमित पौधे ही, वह लोगों को दे पाते हैं। अपने इस बगीचे के लिए, उन्हें बहुत से लोगों से सराहना मिली है। जिनमें सेलिब्रिटी शेफ लक्ष्मी नायर और मशहूर गायक येशुदास जैसी हस्तियां शामिल हैं। वह कहते हैं कि जब इस तरह के लोग सराहना करते हैं तो और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मिला है सम्मान

डॉ. मुरलीधरन को उनके प्रयासों के लिए, केरल कृषि विभाग द्वारा ‘यंग फार्मर अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। अगर आप डॉ. हरी मुरलीधरन के बगीचे के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उन्हें harimnair2001@gmail.com पर ईमेल या फेसबुक पेज पर मैसेज कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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