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‘ड्रैगन’ डॉक्टर: सुबह अस्पताल और शाम को खेत, ड्रैगन फ्रूट उगाकर कमाते हैं करोड़ों में

हैदराबाद के कुकटपल्ली में रहने वाले 35 वर्षीय डॉ. श्रीनिवास राव माधवराम पिछले चार सालों से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। उन्होंने साल 2016 में अपने ‘डेक्कन एग्जोटिक्स फार्म’ की नींव रखी थी और आज इससे वह अपना करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं।

एक डॉक्टर होने के बावजूद, राव ने खेती में अपना हाथ आजमाया। इसके पीछे वजह थी उनके परिवार का खेती से गहरा जुड़ाव। वह बताते हैं कि जब वह स्कूल में थे तब कुकटपल्ली हैदराबाद का एक गाँव हुआ करता था और यहाँ तब कोई इमारत तक नहीं बनी थी। उनके दादाजी गाँव में खेती किया करते थे और डॉ. राव के पिता उनकी मदद करते थे।

“मेरे पापा अपने पिता के साथ खेत में खूब काम करते थे। उनका दिन खेत में काम करने से शुरू होता और फिर वह सुबह-सुबह सभी सब्ज़ियाँ हैदराबाद की मार्किट में बेचने के लिए जाते। वहां से अपने कॉलेज जाते और फिर आकर खेतों की देखभाल करते। पढ़ाई के बाद भले ही उन्होंने रेलवे कंस्ट्रक्शन का काम शुरू कर दिया पर खेती के प्रति लगाव कम नहीं हुआ,” उन्होंने आगे कहा।

Dr. Srinivas Rao Madhavram

वक़्त बीता और डॉ. राव और उनके भाई ने अपनी-अपनी पढ़ाई पूरी की। डॉ. राव ने MBBS करने के बाद स्पेशलाइजेशन किया। उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से फ़ेलोशिप भी मिली और कुछ समय एक मेडिकल कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर भी काम किया। फ़िलहाल, वह एक अस्पताल में जनरल फिजिशियन के तौर पर काम करते हैं और सुबह 7 बजे से दिन के 12 बजे तक अपनी सेवाएं देते हैं। उनके भाई ने इंजीनियरिंग की और फिर एमबीए, इसके बाद उन्होंने अपने पिता का कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस संभाल लिया।

जिज्ञासा से शुरू हुआ खेती का सफर

करियर में सफल होने के बावजूद अपने पिता की तरह दोनों भाई अपनी जड़ों से जुड़े हुए थे और खेती से संबंधित कुछ करने की चाह उनके दिल में थी। पर तब तक उन्होंने कुछ तय नहीं किया था कि वह इस क्षेत्र में क्या काम करेंगे।

डॉ. राव के मुताबिक उनकी खेती का सफ़र एक जिज्ञासा से शुरू हुआ। उन्होंने पहली बार ड्रैगन फ्रूट साल 2016 में देखा। उनके भाई एक पारिवारिक आयोजन के लिए ड्रैगन फ्रूट लेकर आए थे।

डॉ. राव बताते हैं, “मुझे तब पता चला कि यह एक ही फल 200 से 250 रुपये में मिलता है। देखने में भी बहुत सुंदर था पर जब मैंने इसे खाया तो मुझे इसका स्वाद बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। मुझे बहुत जिज्ञासा हुई कि आखिर इस फल को कैसे उगाते हैं, इतना महंगा बिकता है और कहाँ से आता है? तब मैंने इस पर रिसर्च शुरू की।”

With his father and dragon fruit

उन्हें पता चला कि ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले भरत में बहुत ही कम किसान हैं और वे भी सिर्फ दो तरह के ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, जबकि इसकी सैकड़ों प्रजातियां हैं।

ड्रैगन फ्रूट के बारे में पढ़ने और जानने के बाद उन्होंने तय किया कि वह इसी की खेती करेंगे।

काँटों भरी थी राह, पर हिम्मत नहीं हारी

ड्रैगन फ्रूट उगाने के पक्के इरादे को साथ लिए डॉ. राव ने सबसे पहले महाराष्ट्र के एक किसान से 1000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदे, लेकिन उनमें से 30% पौधे भी नहीं बचे क्योंकि वे पौधे अच्छे नहीं थे।

इसके बाद उन्होंने कोलकाता की कुछ नर्सरियों का दौरा किया और ड्रैगन फ्रूट के पौधे के बारे में जानने की कोशिश की। पर वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि नर्सरी वालों का कहना था कि वह सिर्फ पौधे मंगवाते हैं ताकि बेच सकें। इसके अलावा क्या वैरायटी है, उगेगी या नहीं, कैसे ध्यान रखना है, यह सब पूछना उनका काम नहीं है।

He has Visited 13 countries

“मैंने हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के भी कई चक्कर लगाए लेकिन वहां के एक्सपर्ट्स ने मुझसे कहा कि मैं हैदराबाद में यह नहीं उगा पाऊंगा। पर मेरा कहना था कि अगर हम एक मरीज को वेंटिलेटर के सहारे 3-4 महीने जिन्दा रख सकते हैं, तो आर्टिफिशियल तरीकों से ड्रैगन फ्रूट भी उगा सकते हैं। मैंने जब हॉर्टिकल्चर विभाग के रवैये के बारे में अपने पिता को बताया तो उन्होंने कहा कि उनके यहाँ चक्कर काटने से अच्छा है खुद कुछ करो। किसी और पर निर्भर रहोगे तो यही होगा। पापा की ये बातें प्रेरणा की तरह थीं,” उन्होंने बताया।

डॉ. राव जब ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च कर रहे थे तो उन्हें डॉ. करुणाकरण के बारे में पता चला जो IIHR तुमकुरु, बेंगलुरु में नियुक्त हैं। डॉ. करुणाकरण ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च कर रहे हैं और उनसे मिलकर डॉ. राव को पता चला कि वियतनाम ड्रैगन फ्रूट का सबसे बड़ा निर्यातक है और वहां कई संस्थानों में इसकी खेती की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

डॉ. राव ने वियतनाम के ही एक संस्थान में ट्रेनिंग के लिए अप्लाई किया। पर उन्हें वहां से कोई जवाब नहीं मिला। फिर उनके एक मरीज़ ने उन्हें सुझाव दिया कि वह एम्बेसी में बात करें क्योंकि दोनों देशों के बीच एक्सचेंज प्रोग्राम होते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने वियतनाम में नियुक्त एक भारतीय अधिकारी डॉ. हरीश से बात की और वह उनके बारे में जानकर बहुत खुश हुए। डॉ. राव के मुताबिक उन्हीं की वजह से उन्हें वियतनाम में ट्रेनिंग करने का मौका मिला और डॉ. हरीश ने उनसे वादा भी लिया कि वह भारत वापस जाकर इस क्षेत्र में ज़रूर कुछ करेंगे।

वियतनाम में डॉ. राव एक किसान के घर पर भी रहे जो ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं। उन्होंने उनसे सभी तकनीकें सीखीं। वह आगे कहते हैं कि हमारे देश में ड्रैगन फ्रूट का प्लांटिंग मटेरियल अच्छा नहीं मिलता है। इसलिए बहुत से पौधे खराब हो जाते हैं।

वियतनाम के बाद वह ताइवान पहुंचे जो ड्रैगन फ्रूट की पौध के लिए जाना जाता है। वहां उन्होने पौधों की ग्राफ्टिंग और हाइब्रिडाइजेशन करके उत्तम किस्में बनाना सीखा। डॉ. राव के मुताबिक, ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानने-समझने के लिए अब तक वह 13 देशों की यात्राएं कर चुके हैं।

…और शुरू हो गयी ड्रैगन फ्रूट की खेती

भारत लौटकर डॉ. राव ने संगारेड्डी में खाली पड़ी अपनी ज़मीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने खुद अपने पौधे तैयार किए, जिसमें उन्हें IIHR तुमकुरु से काफी मदद मिली। उनका खेत 30 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें से 12 एकड़ में उनकी ड्रैगन फ्रूट की खेती है और 6-7 एकड़ में उन्होंने अपनी नर्सरी बनाई हुई है। बाकी ज़मीन ड्रैगन फ्रूट पर रिसर्च के लिए इस्तेमाल होती है।

डॉ. राव ने 12 एकड़ में लगभग 30 हज़ार ड्रैगन फ्रूट के पेड़ लगाएं हैं, जिनसे उन्हें 10 टन प्रति एकड़ उपज मिलती है। वह कहते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती अगर आप बीज से शुरू करते हैं तो आपको 4 से 5 साल में फल मिलने लगते हैं लेकिन अगर आप कलम या फिर पौध से शुरू करते हैं तो आपको 1-2 साल ही लगते हैं।

Deccan Exotics Farm

ड्रैगन फ्रूट को मार्च से जुलाई तक बोया जा सकता है। मैच्योर होने के बाद यह जुलाई से अक्टूबर तक फल देता है। सबसे अच्छी बात यह है कि एक बार लगने के बाद एक ड्रैगन फ्रूट का पेड़ आपको 20 साल तक फल देता है और इसकी देख-रेख भी काफी कम करनी पड़ती है।

“इसे पानी भी कम ही चाहिए होता है। जितना पानी आपको एक बीघा धान उगाने के लिए चाहिए, उतने पानी में आप 10 एकड़ में ड्रैगन फ्रूट उगा सकते हैं। इसकी जड़ों को बस नमी चाहिए और बाकी ऊपर तने और फूलों को अच्छी धूप। वैसे तो इसका फ्रुटिंग सीजन जुलाई से अक्टूबर में है लेकिन आर्टिफिशियल तरीकों से हम ऑफ-सीजन में भी फल ले सकते हैं। इसके लिए आपको बस अपने खेत में थोड़ी लाइटिंग करनी होगी,” डॉ. राव ने बताया।

मार्केटिंग के बारे में अगर बात करें तो भारत में इसकी काफी मांग है। खासकर कि फिटनेस के पार्टी जागरूक लोगों के बीच। डॉ. राव कहते हैं कि सीजन में वह 150 रुपये किलो में अपने ड्रैगन फ्रूट की बिक्री करते हैं और ऑफ सीजन में यह 200 से 250 रुपये किलो बिकता है। वहीं इस बार लॉकडाउन के दौरान लोगों ने 300-400 रुपये किलो भी इसे खरीदा है।

“मुझे बाहर के देशों से भी बहुत से लोग और एक्सपोर्टर संपर्क करते हैं लेकिन मैं एक्सपोर्ट नहीं करता क्योंकि मुझे अपने देश में ही इस बेचना है और लोगों को इसके बारे में जागरूक करना है,” उन्होंने कहा।

नर्सरी और प्रोसेसिंग से भी है कमाई

ड्रैगन फ्रूट की खेती के अलावा, वह IIHR तुमकुरु के मार्गदर्शन में नर्सरी भी तैयार करते हैं। उनके मुताबिक जैसे-जैसे लोगों में जानकारी बढ़ रही है, बहुत से किसान इसमें अपना हाथ आज़माना चाहते हैं। इसलिए वह कमर्शियल तौर पर ड्रैगन फ्रूट के पौधे बेचते हैं। उनका एक पौधा 70 रुपये का है। इसके साथ वह किसान को ड्रैगन फ्रूट लगाने से लेकर, कैसे इसकी देखभाल करें और कैसे इसे मार्किट में सीधा ग्राहकों को बेचें- इस सबमें मदद करते हैं। वह किसानों को मुफ्त में ट्रेनिंग भी देते हैं।

He is experimenting on Dragon Fruit Processing

पिछले कुछ समय से उन्होंने मैसूर के CFTIR संस्थान के साथ मिलकर ड्रैगन फ्रूट की प्रोसेसिंग भी शुरू की है। वह इससे जैम, आइस-क्रीम, जैली आदि बना रहे हैं। पिछले साल उन्हें अपने फार्म से लगभग 3 करोड़ रुपये का टर्नओवर हुआ था। लेकिन इससे भी बड़ी उपलब्धि डॉ. राव के लिए यह है कि ताइवान सरकार ने ड्रैगन फ्रूट के क्षेत्र में उनके काम की सरहना की और उन्हें ड्रैगन फ्रूट की वर्ल्ड काउंसिल में सम्मिलित होने का मौका दिया।

किसानों के लिए सुझाव:

अगर कोई किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती करना चाहे तो डॉ. राव का सुझाव है कि वह सबसे पहले सिर्फ एक एकड़ से शुरू करे। इसके लिए उन्हें 1500 से 2000 ड्रैगन फ्रूट के पौधों की ज़रूरत होगी। वह सब्सिडी पर ड्रिप इरीगेशन सिस्टम भी लगवा सकते हैं। पर खेती में सीधा निवेश करने से पहले ज़रूरी है कि किसान ड्रैगन खेती की अच्छी ट्रेनिंग लें।

“यह सच है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरुआत में काफी महंगी है। आपको लगभग 4 से 5 लाख रुपये खर्चने पड़ते हैं। लेकिन अगर आपने ठान लिया है और आप मेहनत कर सकते हैं तो आप अपनी इन्वेस्टमेंट से दुगुना कमा सकते हैं। एक बार पौधे उगने के बाद, जब फल देना शुरू करते हैं तो आपको बस हर साल उनकी देख-रेख करनी है। जिसमें 60 से 70 हज़ार रुपये की लागत आती है पर बदले में आप 10 लाख रुपये तक कमा सकते हैं,” डॉ. राव ने बताया।

किसानों के लिए वह ड्रैगन फ्रूट की खेती से संबंधित विषयों पर वीडियो भी बनाते हैं, जिन्हें देखने के लिए आप यहां पर क्लिक कर सकते हैं!

फ़िलहाल, सबसे ज्यादा ज़रूरत है कि सरकार आगे आकर इसमें किसानों की मदद करे। कुछ राज्य सरकार जैसे कर्नाटक और आंध्र-प्रदेश सरकार ड्रैगन फ्रूट की खेती पर सब्सिडी देती हैं। लेकिन अगर पूरे देश में किसानों के लिए इस पर सब्सिडी मिले और कृषि संस्थानों से मदद तो यकीनन भारत इस क्षेत्र में अच्छा कर सकता है। डॉ. राव के मुताबिक वह इसमें सफल हो पाए क्योंकि उन्हें कोई आर्थिक परेशानी नहीं थी और उनके परिवार का पूरा सहयोग है। लेकिन छोटे किसानों के लिए सरकार को सोचना होगा।

ड्रैगन फ्रूट को सिर्फ खेतों में ही नहीं बल्कि किचन गार्डन और टेरेस गार्डन पर भी उगाया जा सकता है। हालांकि, डॉ. राव अभी सिर्फ किसानों को ही पौधे देते हैं पर आगे आने वाले सालों में वह टेरेस गार्डन के लिए भी सर्विस शुरू करेंगे।

अगर आप ड्रैगन फ्रूट की खेती से संबंधित अधिक जानकारी चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट पर क्लिक कर सकते हैं!

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संपादन – मानबी कटोच

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