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शकरकंद, जिमीकंद, अरबी जैसी कंद फसलों की सहेजी 200 से ज्यादा देसी किस्में

Biodiversity Award 2021

केरल के वायनाड जिले में रहनेवाले, शाजी एनएम एक प्रगतिशील किसान हैं। शाजी पिछले कई सालों से जैविक खेती करते हुए ‘ट्यूबर’ याने ‘गांठ/कंद’ फसलों और चावल की देसी किस्मों को सहेज रहे हैं। अब तक वह अलग -अलग फसलों की 200 से ज्यादा किस्मों को सहेज चुके हैं। यही वजह है कि लोगों ने उन्हें ‘ट्यूबर मैन ऑफ केरल’ का नाम दिया है। 

शाजी ने द बेटर इंडिया को बताया, “कंद फसलें जैसे आलू, शकरकंद, जिमीकंद, अरबी आदि खाद्य फसलों का अहम हिस्सा हैं। लेकिन केरल में धीरे-धीरे काली मिर्च, जायफल जैसे कैश क्रॉप के कारण, अब इनकी खेती कम हो रही है। जबकि, ये कंद प्राकृतिक आपदाओं जैसे अकाल, बाढ़ आदि के समय सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए हमें जितना हो सके इन्हें सहेजने पर जोर देना चाहिए।” 

बचपन से ही अपने घर में अलग-अलग कंद फसलों की सब्जियां खाकर बड़े हुए शाजी जंगलों में जाकर भी कंद फसलों को ढूंढ़ते हैं। 

शाजी कहते हैं कि उन्होंने अलग-अलग आदिवासी समुदायों के साथ रहकर, इन कंद प्रजातियों और इन्हें उगाने के प्राकृतिक तरीके सीखे हैं। वह जैविक तरीकों से ही खेती करते हैं और कंद फसलों के साथ-साथ अन्य सब्जियां और फल भी उगा रहे हैं। 

सहेजी हैं 200 से ज्यादा किस्में

Shaji NM, Tuber Man of Kerala

शाजी बताते हैं कि उनके पास पांच एकड़ जमीन है और इसके अलावा, वह जरूरत के हिसाब से जमीन लीज पर भी ले लेते हैं। उन्होंने बताया, “मैं अपनी जमीन पर 14 किस्म के कसावा (Cassava), 34 किस्म के रतालू (Greater Yam), 7 किस्म के जिमीकंद (Elephant foot yam), 47 किस्म की अरबी (Taro), 4 किस्म की अरारोट (Arrowroot), 15 किस्म की शकरकंद (Sweet Potato), तीन किस्म के चायनीज आलू (Chinese Potato), नौ किस्म की हल्दी (Turmeric), नौ किस्म की अदरक (Ginger), और अन्य 11 किस्म की जंगली कंद (Wild Tuber) फसलें उगा रहा हूँ। इन कंद सब्जियों और मसालों के अलावा, मैंने जमीन के एक टुकड़े में फलों की खेती भी शुरू की है।” 

उनके खेतों में 12 किस्म के केले, सात किस्म के कटहल, पांच किस्म के आम, और पपीता, अनानास, अमरुद, सफ़ेद जामुन (रोज एप्पल) और कृष्णा फल (पैशन फ्रूट) की 20 अलग-अलग किस्में हैं। इसके अलावा वह मिर्च, लोबिया, बैंगन, भिंडी और टमाटर जैसी फसलें भी उगा रहे हैं। 

वह आगे कहते हैं, “कंद फसलों में पोषण काफी ज्यादा होता है। क्योंकि इस तरह की फसल सीधा जमीन में लगती हैं और मिट्टी से काफी पोषक तत्व इनमें आते हैं। इसके अलावा, अगर आप लगातार जैविक तरीकें अपनाएं तो आपको उत्पादन और गुणवत्ता बहुत ही अच्छी मिलती है। मैं खेती में गोबर की खाद, केंचुआ खाद और राख आदि का इस्तेमाल करता हूँ।” 

चावल की किस्में भी सहेजी 

His Farm

चावल केरल का मुख्य खाना है, लेकिन आज के समय में चावल की बहुत-सी देसी और पारंपरिक किस्में कहीं खो गयी हैं। क्योंकि, आजकल किसान सिर्फ बाजार की मांग के हिसाब से ही फसलें लगाते हैं। लेकिन शाजी का मानना है कि किसानों को अपनी विरासत को सहेजने के लिए भी देसी और पारंपरिक किस्में उगानी चाहिए। इसलिए वह चावल की अलग-अलग किस्में उगाते हैं और इसी तरह उन्होंने लगभग 52 प्रजातियों को सहेजा है। शाजी कहते हैं कि दूसरे किसान भी उनसे अलग-अलग प्रजाति के बीज लेकर जाते हैं। 

शाजी अपने खेतों में गंधकासाला (Gandhakasala), जीराकसाला (Jeerakasala), रक्तसली (Rakthasali), अदुक्कन (Adukkan), कनकम (Kanakam), चोमला (Chomla), नवरा (Navara), उमा (Uma), कालाजीरा (Kalajeera), अतिरा (Athira) जैसी चावल की अलग-अलग किस्में उगाते हैं। वह कहते हैं, “जैव विविधता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि किसान अपने खेतों में अलग-अलग किस्म की फसलें लगाएं। किसानों को इस बारे में जागरूक करने के लिए मैं महीने के हर दूसरे शनिवार को ट्रेनिंग सेशन आयोजित करता हूँ। मैं लोगों को लुप्त हो रही किस्मों के बारे में बताना चाहता हूँ ताकि हम अपनी देसी और पारंपरिक प्रजातियों को सहेज सकें।” 

इसके अलावा, वह तुलसी, ब्राह्मी, नीम जैसे लगभग 17 तरह के औषधीय पौधे भी लगा रहे हैं। अपने खेतों में ही उन्होंने मछली पालन के लिए छोटा-सा तालाब भी बनाया हुआ है। शाजी कहते हैं कि वह गाय और बकरी भी रखते हैं क्योंकि पशुओं से खेती में काफी मदद मिलती है। 

Seed Pen distribution and Taking Award

न सिर्फ केरल के, बल्कि देश के सभी किसानों के लिए शाजी एक आदर्श किसान हैं। कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘Indian Biodiversity Award 2021’ मिला है। इससे पहले उन्हें सरोजिनी दामोदरन फाउंडेशन का ‘अक्षयाश्री अवॉर्ड,’ ‘कैरली पीपल टीवी अवॉर्ड,’ ‘बेस्ट यंग फार्मर अवॉर्ड’ और ‘प्लांट जीनोम सेवियर फार्मर अवॉर्ड 2014’ भी मिला है। 

खेती में उम्दा काम करने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी शाजी अपना कर्तव्य निभाते हैं। अब तक वह लगभग 32 बार जिला अस्पताल में लोगों की मदद के लिए रक्तदान कर चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने प्लास्टिक के पेन के विकल्प के तौर पर ‘सीड पेन’ भी बनवाकर राज्य के अलग-अलग संस्थानों में बांटे हैं। 

वह कहते हैं कि पेन खत्म होने के बाद लोग इन्हें फेंक देते हैं। इसलिए उन्होंने अलग-अलग तरह के कागज के पेन तैयार करवाये, जिनमें फल और सब्जियों के बीज लगे हुए हैं। जब इन पेन की स्याही खत्म हो जाती है तो इन्हें आप कहीं भी जंगल या खुली जगह में फेंक सकते हैं। कुछ समय में कागज गलकर मिट्टी में मिल जाता है और बारिश के मौसम में बीज अंकुरित होने लगते हैं। शाजी के इस अभियान को अच्छी सफलता मिली है। 

द बेटर इंडिया, शाजी के सभी कामों के लिए उन्हें सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि उनके ये कार्य बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा बनेंगे। 

अगर आप शाजी से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें nypshaji@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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