बिहार में पश्चिम चंपारण के हरपुर गाँव में रहने वाले 64 वर्षीय किसान, विजय गिरी देश के सभी किसानों के लिए मिसाल हैं। पिछले कई वर्षों से वह खेती में अलग-अलग तरह के नवाचार कर रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने परंपरागत रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की शुरूआत की, जिसमें वह न सिर्फ सामान्य फसलें बल्कि बागवानी भी कर रहे हैं। अब पिछले 3 साल से उन्होंने अपनी और अपने यहाँ की खेती को एक अलग दिशा दी है। वह काला गेहूँ, काला धान और मैजिक धान की खेती कर रहे हैं।
विजय इन दिनों धान और गेहूँ की नयी किस्मों की खेती को लेकर सुर्खियों में हैं। विजय बताते हैं कि दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद वह अपनी पुश्तैनी ज़मीन संभालने लगे। उनके पास लगभग 12 एकड़ ज़मीन है जिस पर वह शुरू में परंपरागत धान, गेहूँ, दलहन आदि की खेती करते थे। आगे चलकर जब जैविक खेती के प्रति किसानों में जागरूकता आई तो उन्होंने भी जैविक की राह अपनाई।
विजय ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं अलग-अलग जगहों की यात्रा करता हूँ। खासकर जब भी कहीं कृषि मेला लगता है तो मैं वहाँ जरूर जाता हूँ। कृषि मेला में आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है। देशभर से किसान आते हैं, वैज्ञानिक आते हैं- आप उन्हें अपने बारे में बताते हैं, उनसे सीखते हैं और ऐसे ही, हम आगे बढ़ सकते हैं।”
कृषि से संबंधित इन आयोजनों के दौरान विजय को मोहाली से काले गेहूँ के बारे में पता चला। इसी तरह, पश्चिम बंगाल में उन्हें काले धान और मैजिक धान की किस्मों के बारे में पता चला। विजय ने इन तीनों ही किस्मों के बारे में विस्तार से जाना और अपने खेतों में ट्रायल करने की ठानी।
वह अब तक इन काले गेहूँ, काले धान और मैजिक धान की खेती तीन बार कर चुके हैं। तीनों ही बार उन्हें काफी अच्छा नतीजा मिला है और अब वह अपने इलाके के अन्य किसानों को भी इन किस्मों के बारे में सजग कर रहे हैं।
काले गेहूँ के बारे में उन्होंने बताया, “गेहूँ की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्रीफूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (नाबी) ने विकसित किया है। इसका नाम है नाबी एमजी और नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। काले गेहूँ में एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट होते हैं। एंथोसाएनिन की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैगनी या काला हो जाता है।”
एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। आम गेहूँ में एंथोसाएनिन महज पाँच पीपीएम होता है, लेकिन काले गेहूँ में यह 100 से 140 पीपीएम के आसपास होता है। एंथोसाएनिन के अलावा काले गेहूँ में आयरन की मात्रा भी प्रचुर होती है। काले गेहूँ में आम गेहूँ की तुलना में 60 फीसदी आयरन अधिक है।
इसी तरह से, काला चावल भी वह उगा रहे हैं, जिसकी व्यापक खेती मणिपुर में होती है। काले चावल में भी एंथोसाएनिन की मात्रा काफी अधिक होती है। साथ ही, इसमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा काफी कम होती है और इसलिए यह शुगर के मरीज़ों के लिए बहुत ही अच्छा विकल्प माना जा रहा है। काला गेहूँ और काला चावल, दोनों ही औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इसलिए बाज़ार में इनकी अच्छी-खासी माँग है।
विजय की माने तो दोनों की ही खेती करना बहुत ही आसान है। कोई भी किसान सिर्फ जैविक तरीकों से भी इन दोनों की अच्छी फसल ले सकता है।
“अक्सर शुरू में लोगों को डर होता है कि अगर हमारे इलाके में यह नहीं हुए तो? इसलिए किसानों को ट्रायल के लिए कम ज़मीन पर इन्हें उगाना चाहिए। जैसे शुरू में मैंने मात्र एक एकड़ से शुरुआत की। अब मैं दो एकड़ में काले गेहूँ उगा रहा हूँ। 15 नवंबर से आप इसकी बुआई शुरू कर सकते हैं। सामान्य गेहूँ की तरह ही आप इसकी भी खेती कर सकते हैं। बस आपको कोई भी रसायन इस्तेमाल नहीं करना है। लगभग 140-160 दिन में यह तैयार हो जाता है,” उन्होंने आगे बताया।
काला गेहूँ और काले धान की किस्मों के अलावा, वह एक एकड़ में मैजिक धान (Boka Saul) की खेती भी कर रहे हैं। चावल की यह किस्म असम में प्रचलित है और इसे वहां GI Tag भी प्राप्त है। वह बताते हैं कि मैजिक धान की खासियत है कि इस धान के चावल को किसी रसोई गैस या चूल्हा पर पकाने की जरूरत नहीं है। इसे महज़ सादे सामान्य पानी में रखने के 45-60 मिनट के भीतर चावल तैयार हो जाता है। यह खाने में सामान्य चावल की तरह ही है लेकिन इसे पकाने के लिए आपको गैस, आग या कुकर आदि की ज़रूरत नहीं है।
साथ ही, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा अधिक होने से यह चावल भी शुगर के मरीज़ों के लिए अच्छा है। विजय आगे कहते हैं, “यह धान बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए भी सही है क्योंकि यह बाढ़ में बहता नहीं है। इसका डंठल मोटा है और इस कारण इसकी प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। धान से चावल निकालने के बाद, किसान इसके डंठल का उपयोग छप्पर आदि बनाने के लिए कर सकते हैं। साथ ही, इसे पकाने की ज़रूरत नहीं है तो यह दुर्गम क्षेत्रों में सैनिकों के लिए और आपदा के समय सामान्य लोगों के लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।”
मैजिक धान को उगाने के बारे में विजय कहते हैं कि 15 मई से इसकी बुवाई शुरू हो सकती है। पहले किसानों को इसकी पौध तैयार करनी होगी और फिर उसे खेतों में रोपना होगा। सामान्य धान में जहाँ एक-साथ दो-तीन पौधे रोप जाते हैं वहीं मैजिक धान का सिर्फ एक ही पौधा रोपित किया जाता है। जैविक तरीकों से इसे उगाने के लिए आप गोबर की खाद, वेस्ट डीकम्पोजर आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं। लगभग 140 दिनों में यह खेत में तैयार हो जाता है और इसे हार्वेस्ट किया जा सकता है।
विजय बताते हैं कि इन तीनों ही किस्मों की बाज़ार में अच्छी माँग है। सामान्य से लगभग दोगुनी कीमत पर यह बिक रहा है। उन्हें मैजिक धान के लिए स्थानीय इलाकों में 40-50 रुपये प्रतिकिलो का मूल्य मिल रहा है। अगर कोई किसान खुद अच्छे से प्रोसेस करके और ग्रेडिंग-पैकेजिंग के साथ इसे बेचे तो उन्हें और अच्छा मूल्य मिल सकता है।
“हमने शुरूआत में जब यह खेती की तो मन में शंका थी लेकिन हमें सफलता मिली। हमारी सफलता ने दूसरे किसानों को भी प्रभावित किया और आज मेरे मार्गदर्शन में लगभग 20 एकड़ ज़मीन पर इन तीन अलग-अलग किस्म के गेहूँ और धान की खेती हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्रों से भी हमें मदद मिल रही है,” विजय ने आगे कहा।
चंपारण क्षेत्र में शायद विजय गिरी पहले किसान हैं, जिन्होंने इन तीन नई किस्मों को उगाया है और सही मुनाफा लिया है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में इन नयी किस्मों की खेती को बढ़ावा देने पर जोर है ताकि किसानों को अच्छी आय के साधन मिले। इन फसलों के औषधीय गुणों के कारण पूरी दुनिया में इनकी माँग है और यदि किसान इन नयी फसलों में अपना हाथ आजमाए तो यह उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। विजय गिरी अंत में सिर्फ यही कहते हैं कि ज्यादा नहीं तो कम ज़मीन पर, लेकिन किसानों को एक बार ट्रायल अवश्य करना चाहिए।
इन तीनों किस्मों से और इनकी खेती से जुडी अधिक जानकारी के लिए आप विजय गिरी को 9472963120 पर कॉल कर सकते हैं!
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