त्योहार हो या कोई खुशखबरी, बात जब मुंह मीठा कराने की आती है, तो लड्डू के स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है। लड्डू एक ऐसी मिठाई है, जो कई तरह से तैयार की जाती है। यह मिठाई, शहर दर शहर अपने अलग-अलग रंग, रूप और स्वाद में आपको मिल जाएगी।
इन गोल-गोल लड्डुओं के स्वाद की तरह ही इसका इतिहास भी कई रोचक और दिलचस्प किस्सों से भरा है। इतिहासकार बताते हैं कि ईसा पूर्व चौथी सदी में इसका आविष्कार महान भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने किया था। उस समय घी, तिल, गुड़, शहद, मूंगफली जैसी चीज़ों को कूटकर गोल आकार के पिंड बनाए जाते थे, जो मरीज़ों के इलाज में इस्तेमाल होते थे।
अब ये लड्डू दवा के तौर पर दिया जाए या मिठाई के रूप में, इसे चाहने वालों की कमी नहीं है।
कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक, चोल वंश में सैनिक जब भी युद्ध के लिए निकलते थे, लड्डू को बतौर ‘गुड लक’ साथ लेकर चलते थे। बदलते दौर के साथ लड्डू भी बदला और इसमें गुड़ के बजाए चीनी का इस्तेमाल होने लगा। इसी चीनी की वजह से लड्डू और ज़्यादा मशहूर हुआ और घर-घर पहुंचने लगा। लोगों को जैसे ही पता चला कि चीनी से लड्डू की मिठास बढ़ सकती है, इसकी रेसिपी में गुड़ की जगह चीनी ने ले ली और यह एक मिठाई के तौर पर खाया जाने लगा।
वर्ल्ड फेमस मनेर के लड्डू
बूंदी के लड्डू का नाम सुनकर भला किसके मुंह में पानी नहीं आता! कहते हैं कि पहली बार मुगल बादशाह आलम, दिल्ली से इमली के पत्ते के दोने में इसको लेकर मनेर शरीफ (पटना) पहुंचे और वहां के लोगों को यह बहुत पसंद आया। फिर शाह आलम ने दिल्ली से अपने बावर्चियों को मनेर बुलाया और वहां स्थानीय कारीगरों को लड्डू बनाना सिखाया।
फिर मनेर के कारीगर यह मिठाई बनाने में इतने माहिर हो गए कि इनके बनाए लड्डुओं के दीवाने अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई के अलावा कई अन्य देशों में भी हो गए। इन लड्डुओं का स्वाद अंग्रेज़ों को ऐसा भाया कि उन्होंने मनेर के लड्डुओं को विश्व प्रसिद्ध होने का प्रमाणपत्र दे डाला।
संपादनः अर्चना दुबे
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