आगरा की दो चीज़ें वर्ल्ड फ़ेमस हैं, एक तो ताजमहल और दूसरा है आगरा का पेठा! इसीलिए आगरा को ‘ताज नगरी’ के अलावा ‘पेठा नगरी’ भी कहा जाता है, जो भी शख़्स आगरा जाता है, वहां से पेठे का डिब्बा लेकर ज़रूर आता है। क्या आप जानते हैं कि पहली बार यह लज़ीज़ मिठाई कब और क्यों बनाई गई थी?
पेठे… इसका इतिहास काफ़ी रोचक है। इसके साथ एक नहीं, बल्कि कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि शाहजहां की बेग़म मुमताज़ को पेठा बहुत पसंद था। ख़ुद मुमताज़ ने उन्हें अपने हाथों से पेठा बनाकर खिलाया था। मुग़ल बादशाह को यह मिठाई बहुत पसंद आई और उन्होंने अपनी शाही रसोई में इसे बनाने का ऐलान कर दिया था। उसके बाद से ही पेठे की मिठास पूरे देश में फैल गई और इसे बनाया और बेचा जाने लगा।
ताजमहल की तरह शुद्ध और सफेद पेठा
कई इतिहास बताते हैं कि जब आगरा पर शाहजहां का शासन था, तो उन्होंने अपने रसोइयों को ताजमहल की तरह शुद्ध और सफेद रंग की एक अनोखी मिठाई बनाने के लिए कहा था, जिसके बाद शाही खानसामों ने कड़ी मेहनत की और पेठा बनाया।
वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि प्राचीन काल में इस मिठाई का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता था, क्योंकि यह पौष्टिक सब्जियों से बनाया जाता था। हालांकि, बाद में इसे बनाने में लौकी और सफेद कद्दू के साथ-साथ सूखे मेवे, केसर, इलायची और चाशनी वगैरह का इस्तेमाल किया जाने लगा और आज हम इसे स्वीट डिश की तरह खाते हैं।
आगरा स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही केसर, अंगूरी और चॉकलेटी जैसे कई फ़्लेवर वाले पेठे बेचते लोग दिख जाते हैं। जानकारों का कहना है कि आज बाज़ार में पेठे की 50 से 60 किस्में उपलब्ध हैं, तो अगली बार आप आगरा जाएं, तो वहां का मशहूर पेठा लेकर ज़रूर लेकर आइएगा!!
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