26 नवंबर 2008 की वह भयावह रात शायद ही कोई भारतीय भूल सकता है जब मुंबई में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को दहला दिया था। इसमें वहाँ मौजूद कई भारतीयों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इस हमले में कई बच्चे हमेशा के लिए अपने माता-पिता से दूर हो गए और कई दुर्भाग्यशाली माता-पिता को अपने बच्चों को खोना पड़ा।
सरला व सेवंती जे पारेख के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
उस रात उनके बेटे सुनील और बहू रेशमा ने अपनी बेटी को घर पर छोड़ा और रात का खाना खाने ओबेरॉय होटल की ओर चल पड़े।
तब इनके परिवारवालों ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि वे इन दोनों को आखिरी बार जीवित देख रहे हैं।
टिफ़िन रेस्टॉरेंट में आतंकवादियों द्वारा मारे जाने वाले लोगों में सुनील व रेशमा भी थे।
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इस तरह से अपने बेटे व बहू को खोना सरला व सेवंती के लिए किसी सदमे से कम नहीं था । पर इस घाव को भरने से ज़्यादा ज़रूरी था उनके लिए अपनी पोतियों आनंदिता व अरुंधति को संभालना।
उस समय ये बच्चियाँ मात्र 12 व 10 वर्ष की थीं।
इनकी बुआ सुजाता ने इन बच्चियों की ज़िम्मेदारी उठाई जबकि रिटायर हो चुके सेवंती ने परिवार को संभालने के लिए एक बार फिर अपने पारिवारिक व्यवसाय की ओर रुख कर लिया।
10 साल बाद ये बच्चियाँ आज यूएस में पढ़ रही हैं।
पर सरला के लिए यह सब सिर्फ बच्चियों की परवरिश तक सीमित नहीं रहा।
इस घटना ने उन्हें एहसास दिलाया कि किस प्रकार मुंबई शहर सुरक्षा व निगरानी की कमी को झेल रहा है। उन्हें महसूस हुआ कि दुनिया के अन्य महानगरों की तरह अगर मुंबई में भी इस पर ध्यान दिया गया होता तो ऐसी घटना टाली जा सकती थी।
और तभी सरला ने एक सुरक्षित मुंबई के लिए लड़ने का संकल्प लिया। द वीक से बात करते हुए उन्होंने कहा,“मैं नहीं चाहती थी कि कोई और भी मेरी तरह दुर्भाग्यशाली हो और उसे अपने प्रियजन को खोना पड़े।”
पूर्व पुलिस कमिशनर जूलियो रिबेरो के संगठन ‘पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नेंस ट्रस्ट’ से जुड़ कर सरला व उनके कुछ दोस्तों ने मुंबई की सुरक्षा के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी।
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इस मुहीम की शुरुआत एक आरटीआई आवेदन से की गयी जिसमें यह सवाल किया गया था कि ‘अधिकतम शहरों में सुरक्षा व्यवस्था मे कमी क्यों है?’
इसे धर्मयुद्ध मानने वाली सरला आगे चल कर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से भी नहीं चुकीं। उन्होंने सेक्युर्टी कैमरा लगाने के लिए भी करीब 60 करोड़ रुपये जमा कर लिए थे।
2013 को द इंडियन एक्सप्रेस को दिये गए साक्षात्कार में सरला ने बताया, “लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमारी याचिका खारिज कर दी और इसे सरकार का विशेषाधिकार बताया। वे नहीं चाहते थे कि हम ऐसा करें। आप समझ सकते हैं कि यह सिर्फ मेरे बेटे के लिए नहीं था।”
सरला व सेवंती पारेख ने हार नहीं मानी है और आज भी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इनका शहर अपने नागरिकों के लिए सुरक्षित हो जाये और ये उस डर से विजय पा लें जो 26/11 की घटना ने इनके मन में हमेशा के लिए बिठा दी है।
संपादन – मानबी कटोच