मेरा नाम ‘लाल बहार’ है। मैं गाज़ियाबाद के पास एक छोटे से गांव गनौली का रहने वाला हूँ और फ़िलहाल, नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन में एक इंस्पेक्टर के तौर पर काम कर रहा हूँ। लेकिन यहां तक पहुंचने का मेरा सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। मेरे पिता एक छोटे किसान थे, जिनके ऊपर हम छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी। हालांकि मैं पढ़ने में काफी अच्छा था, लेकिन गांव के दूसरे घरों की तरह हमारे घर में भी पढ़ाई का अच्छा माहौल नहीं था। बावजूद इसके मैंने जूनियर स्कूल, हाई स्कूल और आगे चलकर कॉलेज में भी टॉप किया।
हम गांव में रहकर ज्यादा बड़े सपने नहीं देखते थे, मैंने भी स्कूल टीचर या पुलिस में किसी छोटे पद पर काम करने का सपना देखा था। अगर मैं कभी किसी बड़े अधिकारी से मिला होता, तो शायद मेरी प्रेरणा वे बनते और मैं भी एक आईपीएस या आईएएस अधिकारी बन सकता था।
आज सालों बाद भी गांव के बच्चे पढ़ाई के उस माहौल से वंचित हैं। साल 2020 में लगे लॉकडाउन के समय मैंने देखा कि स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर्स बंद होने से सबकी पढ़ाई भी बंद ही गई थी।
मैंने सरपंच से बात करके, गांव के पुराने पंचायत भवन में लाइब्रेरी बनाने का फैसला किया। गांव में मेरे जैसे जितने भी सरकारी नौकरी पेशा लोग थे, हमने मिलकर पैसा इकट्ठा करना शुरू किया। केवल दो महीने में हमने लाइब्रेरी के लिए पांच लाख रुपये जुटाए और एसी व सीसीटीवी जैसी सुविधाओं के साथ, शहर जैसा एक बढ़िया स्टडी सेंटर बनाकर तैयार कर दिया।
मेरे गांव में सभी मुझे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए मैं अपने गांव के लिए कुछ करना चाहता था। शुरू में इस लाइब्रेरी में 60 बच्चों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन हमने देखा कि यहां बच्चों की भीड़ लग रही है, क्योंकि आस-पास के गांव के बच्चे भी यहां पढ़ने आने लगे। तब हमने अलग-अलग गांव में घूमकर वहां की पंचायत और कुछ नौकरी पेशा लोगों के सामने ऐसी ही और लाइब्रेरी बनाने की बात रखी और वे मान गए।
धीरे-धीरे बात फैलती गई और गांव के बच्चे हमें सम्पर्क करके कहने लगे कि ‘भैया हमारे गांव में भी ऐसी लाइब्रेरी खुलवा दिजिए।‘ हमें पता भी नहीं चला कि हमारा काम कब ‘मिशन ग्राम पाठशाला’ बन गया और यूपी, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में पिछले डेढ़ सालों में 250 लाइब्रेरी खुल चुकी हैं।
हाल ही में दिल्ली में एक लाइब्रेरी से 12 बच्चों ने सरकारी टीचर भर्ती परीक्षा पास की है। मेरे खुद के गांव की लाइब्रेरी से 25 बच्चों ने पुलिस परीक्षा पास की है, जिसमें एक बच्चा जेलर बना और कई बच्चे सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। हम इस लाइब्रेरी में स्थानीय अधिकारीयों को भी बुलाते रहते हैं, ताकि बच्चे उनसे प्रेरणा ले सकें।
लेकिन हमारा मिशन, ‘ग्राम पाठशाला’ 200 या 250 गावों में लाइब्रेरी बनाकर खत्म नहीं होने वाला। हम देश के हर एक गांव में एक लाइब्रेरी खोलना चाहते हैं। 6,64,639 बनाकर हम भारत के गांव को विकास से जोड़ना चाहते हैं।
यह लाइब्रेरी पूरी तरह से सस्टेनेबल तरीके से चलती है, यहां सारी किताबें डोनेट की हुई हैं। यहां की सफाई हो या किताबों का ध्यान रखना, गांव के बच्चे खुद ही इसकी जिम्मेदारी लेते हैं। यहां कोई लॉग बुक नहीं, जहां किताबों की इंट्री हो। देखा जाए तो यह सिर्फ एक जगह है, जहां बच्चे आकर पढ़ाई करते हैं और एक-दूसरे से प्रेरित होते हैं। यहां, उन्हें पढ़ाई का अच्छा माहौल मिलता है।
संपादन- जी एन झा
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