जैसे-जैसे पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे कई लोग अपनी आदतों में पर्यावरण के अनुकूल बदलाव लाने की कोशिश भी कर रहे हैं। कुछ अपनी जीवन शैली में बदलाव ला रहे हैं, तो कुछ घर बनाने की शैलीको ही बदल रहे हैं। हालांकि, इसमें कुछ नया नहीं है। सालों से हमारे यहां लोग गांव में मिट्टी के घरों (self sustaining house) में रह रहे हैं, जो बाहर के तापमान के अनुसार ठंडे और गर्म रहते हैं। लेकिन समय के साथ ज्यादा सहूलियत के लिए हम कंक्रीट के घरों में रहने लगे।
शहर तो शहर गांव में भी अब सीमेंट के घर बनने लगे हैं। लेकिन बढ़ती गर्मी और स्वास्थ्य संबधी दिक्कतें, हमें फिर प्रकृति से जुड़ने का सन्देश दे रही हैं। कई आर्किटेक्ट अब नए और विकसित तकनीक से पर्यावरण के अनुकूल घर बना रहे हैं, जिससे पारम्परिक घरों में होने वाली दिक्कतें कम हो गई हैं।
मुंबई-पुणे के बीच उद्धर गांव में तुषार केलकर, पिछले सात सालों से शहरी जीवन को छोड़कर मिट्टी के घर में रह रहे हैं। पेशे से आर्किटेक्ट तुषार, यहां देश-विदेश से आए लोगों को मिट्टी के घर बनाना सिखा रहे हैं।
तुषार कहते हैं, “परेशानियां तो सीमेंट के घरों में भी कई तरह की आती हैं, लेकिन हम उनका समाधान निकाल लेते हैं। उसी तरह मिट्टी के घर से जुड़ी दिक्कतों के भी कई समाधान मौजूद हैं। सबसे जरूरी बात है आपके अंदर ऐसे घर में रहने की इच्छा होनी चाहिए।”
उन्होंने मिट्टी के घर बनाने और इसकी देखभाल से जुड़ी पांच जरूरी बातों के बारे में बताया।
1. स्थानीय मिट्टी से लेकर लकड़ी का इंतजाम
प्राकृतिक घरों में कभी-कभी मिट्टी और लकड़ी आदि की व्यवस्था करना एक मुश्किल काम होता है। ऐसे में कई लोग कहीं दूर से मिट्टी और लकड़ी जैसी चीजें मंगवाकर घर बनाते हैं, जो महंगा होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल नहीं होता, क्योंकि हर एक प्रदेश की मिट्टी अलग होती है, जो वहां के तापमान के अनुसार काम करती है।
तुषार कहते हैं कि ईको-फ्रेंडली घर बनाने का सबसे पहला रूल यही है कि आपको स्थानीय चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए आप आस-पास के गांव में जाकर रिसर्च कर सकते हैं। घर बनाने से पहले थोड़ा समय वहां के स्थानीय चीजों को जानने में बिताएं।
2. दीमक और कीड़ें लगने जैसी समस्या
अक्सर मिट्टी के घरों (self sustaining house) में दीमक और कीड़े निकलने लगते हैं। जिसका मुख्य कारण बारिश का पानी लगना होता है। यह भी एक अहम कारण है, जिसकी वजह से लोग मिट्टी के घर (self sustaining house) में रहना पसंद नहीं करते।
तुषार इस समस्या के बेहतर उपाय बताते हुए कहते हैं कि हम मिट्टी का घर (sustainable house ) बनाते समय घर की दीवारों पर चूना और तम्बाकू के पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, तुषार कहते हैं, “दीमक को भगाने का एक बेहतरीन देसी तरीका है कि अगर आपके घर के आस-पास जंगल है, तो आप वहां से मिट्टी लाकर उस जगह पर लगाएं, जहां पहले से दीमक ने घर बनाया था। इस मिट्टी की खुशबू से दीमक वहां घर नहीं बनाएंगे।”
साथ ही हम हैंग ओवर रूफ लगा सकते हैं, जिससे बारिश का पानी दीवारों पर न लगे और दीवारों में नमी ना आ सके।
3. देखरेख की समस्या
कई लोगों को मिट्टी के घर (self sustaining house) में रख-रखाव की समस्या काफी बड़ी लगती है। मिट्टी की दीवारों को हर तीन से चार महीने में लिपाई करनी पड़ती है। हालांकि, तुषार कहते हैं कि इसमें थोड़ा समय जाता है, लेकिन ये दीवारें ब्रीथिंग वॉल होती हैं, इसलिए इनका हमारे स्वास्थ्य पर काफी अच्छा असर होता है।
इसे दिक्कत नहीं बल्कि एक अवसर मानना चाहिए। वैसे आजकल इसके भी कई विकल्प मौजूद हैं। आप COB wall system या मिट्टी में सुखाई गई ईटों से घर की दीवारें बना सकते हैं, जो मिट्टी के घर में रहने जैसा ही अनुभव देती हैं।
4. समय और खर्च की समस्या
तुषार कहते हैं, “अगर आप यह सोच रहे हैं कि मिट्टी के घर(self sustaining house) काफी सस्ते होते हैं, तो आप बिल्कुल गलत हैं। हाँ, सामान्य घर से इसे बनाने में थोड़ा कम खर्च आता है, लेकिन मजदूरी का खर्च और लकड़ियों का खर्च आदि तो समान ही होता है। बस सीमेंट का खर्च कम हो जाता है।” वह कहते हैं कि आप अपने घर को बनाने में खुद मेहनत करें, इससे आप अपनी पॉजिटिव एनर्जी घर में डाल सकते हैं।
लेकिन दूसरी तरफ, ऐसे घर को बनाने के लिए समय और धैर्य बहुत जरूरी है। क्योंकि इसे कई लेयर्स में तैयार किया जाता है और हर एक लेयर को सूखने में समय लगता है।
5. पर्यावरण के अनुकूल घर आलिशान नहीं होते
लोग मिट्टी के घर (eco friendly house) में भी अत्याधुनिक सुविधाओं की मांग करते हैं। हालांकि, आजकल इतनी सुविधाएं मौजूद हैं कि घर में हर तरह की आधुनिक चीज़ें लगाई जा सकती हैं। लेकिन अगर आप पर्यावरण का ध्यान रखने की बात कर रहे हैं, तो आपको कम से कम कृत्रिम चीजों पर ध्यान देना होगा।
कई लोगों को मिट्टी की फर्श पसंद नहीं आती, तो आप इसमें रीसायकल्ड टाइल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तुषार कहते हैं, “नई टाइल्स 25 से 30 रुपये की होती हैं, जबकि पुरानी टाइल मात्र 5 रुपये में मिल जाती है। इसे बेहतरीन डिज़ाइन के साथ इस्तेमाल किया जाए, तो यह काफी अच्छी दिखती हैं। फर्श से लेकर फर्नीचर तक रीसायकल्ड चीजों का इस्तेमाल रचनात्मक ढंग से करके आप अपने घर को आलिशान बना सकते हैं।”
छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देकर आप अपने लिए सुन्दर और पर्यावरण के अनुकूल घर बना सकते हैं। आप तुषार से सम्पर्क करने के लिए उनके फर्म आत्मतृप्ति की वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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