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इस गृहिणी का उद्देश्य है ‘जो प्लास्टिक घर आए, वह कुछ बनकर बाहर जाए’!

म में से ज़्यादातर लोगों के घरों में कहीं न कहीं एक जगह या कोना होगा, जहां पर दुनियाभर की प्लास्टिक थैलियां जमा होंगी। हमारी हर एक खरीददारी के साथ कुछ न कुछ प्लास्टिक आता ही है और फिर हम उसे कभी खिड़की की जालियों में या कभी अलमारी के किसी कोने में अटका देते हैं। अगर आपको कहा जाए कि आपको अपने घर की सभी प्लास्टिक की थैलियों को ठिकाने लगाना है तो आप क्या करेंगे?

सबको इकट्ठा करके डस्टबिन का रास्ता दिखा देंगे? भाई, भला कोई सामान लाने ले जाने के अलावा और क्या काम आती हैं ये? अब सामान्य थैलियों की जगह तो फिर भी कपड़े के थैले इस्तेमाल हो सकते हैं लेकिन दूध का पैकेट, आटे की थैलियाँ या फिर कोई कूरियर का रैपर, इन्हें कैसे घर में आने से रोकें और फिर इनका तो कोई उपयोग भी नहीं तो डस्टबिन में ही डालेंगे ना?

अक्सर इसी तरह की दलीलें हम और आप एक दूसरे को और फिर खुद को देते रहते हैं जब भी कोई कहता है कि पर्यावरण के बारे में सोचो। लेकिन अगर हम आपको बताएं कि आप इन प्लास्टिक की थैलियों से अपने रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आने वाला सामान बना सकते हैं तो शायद आपको यकीन न हो। पर यह सच है और यह कारनामा कर रही हैं मुंबई की रहने वाली 66 वर्षीय रीटा मेकर।

रीटा कहतीं हैं कि उनके जीवन का सिद्धांत बहुत ही स्पष्ट है- रिसायक्लिंग, रियूजिंग और रिड्यूजिंग!

Rita Maker

उनकी ज़िन्दगी इन तीन R के इर्द-गिर्द ही घूमतीं हैं। कभी अंग्रेजी और समाज विज्ञान की शिक्षिका रहीं रीटा लोगों को अब पर्यावरण विज्ञान सिखा रही हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “वह साल 2000 था और हमारे स्कूल में एक पर्यावरण उत्सव आयोजित किया गया। सभी ने बहुत जोर-शोर से तैयारियां की और इस दौरान मुझे समझ में आया कि हम अपने बच्चों को और अपने छात्रों को जिन बातों की शिक्षा देते हैं, वह सब हमें अपने जीवन में भी उतारना चाहिए। बच्चों को सही राह दिखाने के लिए हमें सही राह पर चलना होगा ताकि हम उनके आदर्श बनें।”

रीटा ने ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ को अपने रहन-सहन का मूल मंत्र बना लिया। साल 2005 में उन्होंने शिक्षण कार्य छोड़ा और उसके बाद अपने पति के व्यवसाय में मदद करने लगीं। लेकिन उन्हें इस सब में कोई संतुष्टि नहीं मिल रही थी। वह कुछ ऐसा करना चाहतीं थीं जो उन्हें सुकून दे और जिसके ज़रिये वह अपने वक़्त का सही इस्तेमाल कर सकें। रीटा हमेशा से ही अपने समाज और पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहतीं थीं, लेकिन ऐसा कुछ जो वह घर से कर पाएं।

रीटा ने बताया, “साल 2016 में मैंने फेसबुक पर एक वीडियो देखी, जिसमें एक महिला वॉलमार्ट के शॉपिंग बैग्स से एक मैट बना रही थी। बस वहीं से मुझे आईडिया मिला और मुझे क्रोशिया करना आता था। इसलिए मैंने घर की सारी पॉलिथीन और प्लास्टिक बैग इकट्ठा किए और काम पर लग गई।”

She is making different usable products from polybags

भले ही, किसी भी वीडियो को देखते समय हमें लगे कि अगर यह तो बहुत ही आसान है लेकिन यह होता नहीं है। रीटा को भी प्लास्टिक और धागे से कुछ क्रियात्मक और खूबसूरत चीज़ें बनाने में समय लगा। लेकिन धीरे- धीरे उन्होंने इस कला में महारथ हासिल कर ली। उन्होंने प्लास्टिक की थैलियों को पतली-पतली स्ट्रिप्स में काटा और फिर इसे क्रोशिया करके इससे चटाई, बैग और तो और टोकरी, डिब्बे आदि बनाना शुरू किया। आज उनका घर आपको किसी प्लास्टिक म्यूजियम से कम नहीं लगेगा।

उन्होंने आगे कहा कि दो-तीन दिन में उन्होंने अपने घर के सभी इकट्ठा करके रखे हुए प्लास्टिक बैग्स को काम में ले लिया। इसके बाद, उन्होंने अपने आस-पड़ोस के लोगों को इस बारे में बताया और उन्हें अपने बनाए हुए प्रोडक्ट्स दिखाए। फिर दूसरे घरों से भी उनके यहां प्लास्टिक बैग्स आने लगे। वह जो भी प्रोडक्ट बनातीं, उन्हें अपनी सोसाइटी में काम करने वाली मौसियों और घरेलू सहायकों को दे देतीं। बैठने के लिए मैट, बैग्स आदि देखकर वे भी काफी खुश हो जातीं।

She is giving these products to society staff and house helps

उन्हें इस कला को समझने में, सीखने में लगभग 3-4 महीने का समय लगा। इस बीच उन्होंने जाना कि कैसे वह अलग-अलग प्रोडक्ट्स के पैकिंग रैपर से अलग-अलग पैटर्न बना सकतीं हैं। बैग्स और चटाई के अलावा और क्या प्रोडक्ट्स उन्हें बनाने चाहिएं।

उन्होंने अपने घर में देखा कि ऐसी कौन-सी ज़रूरत की चीज़ है जो प्लास्टिक की है और जिसकी जगह वह अपना प्रोडक्ट बना सकतीं हैं। अपने इस हुनर से उन्हें अपने घर से बहुत से प्लास्टिक को कम करने का मौका भी मिल गया। जैसे कुछ भी रखने के लिए टोकरी, डिब्बे आदि भी वह बनाने लगीं।

रीटा बतातीं हैं कि उनका उद्देश्य इस से कभी भी पैसे कमाने का नहीं रहा बल्कि वह जो भी बनातीं उसे किसी न किसी को उपहार स्वरूप देती हैं। जैसे-जैसे लोगों को उनके बारे में पता चला, वे उनेक पास आने लगे। किसी ने शौक में यह सब सीखा तो बहुत से लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे।

उनके कुछ प्रोडक्ट्स की तस्वीरें:

रीटा का मंत्र है- जो प्लास्टिक घर आए, कुछ बनकर बाहर जाए। अब उन्होंने प्लास्टिक के साथ-साथ अपने पुराने कपड़ों को भी अपसाइकिल करना शुरू किया है। वह पुराने कपड़ों को नया रूप देकर उपयोगी चीजें बना रही हैं।

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रीटा अब सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। उन्होंने कुछ समय पहले अपना ब्लॉग बनाया जहां वह अपने प्रोडक्ट्स की तस्वीरें डालतीं हैं और अपनी वीडियो भी। अगर आप उनसे सीखना चाहते हैं तो उन्हें उनके फेसबुक पेज पर फॉलो कर सकते हैं। पिछले कुछ समय से, उन्हें अलग-अलग आयोजनों में भी लगातार बुलाया जा रहा है ताकि हमारी नई पीढ़ी उनसे कुछ सीख सके!


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