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UAE छोड़ गांव लौटा यह इंजीनियर जोड़ा, सुपारी के पत्तों से खड़ा किया लाखों का कारोबर

Areca Leaf Business In Kerala
UAE छोड़ गांव लौटा यह इंजीनियर जोड़ा, सुपारी के पत्तों से खड़ा किया लाखों का कारोबर

भारत में टेक्निकल एजुकेशन  हासिल करने वाले  ज्यादातर  लोग  किसी न किसी तरीके से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूएई जैसे देशों में बसना चाहते हैं। लेकिन, आज हम आपको केरल के कासरगोड जिले के एक ऐसे जोड़े की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से लोगों के सामने एक मिसाल कायम की है।

दरअसल, यह कहानी है मदिकई गांव के रहनेवाले देवकुमार नारायणन और उनकी पत्नी सारन्या की। दोनों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इंजीनयरिंग करने के बाद, आखों में सुनहरे भविष्य का सपना लिए, साल 2014 में संयुक्त अरब अमीरात जाने का फैसला किया। 

वहां जाकर देव ने एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी में नौकरी शुरू कर दी और सारन्या ने एक सिविल इंजीनियर के तौर पर  वाटरप्रूफिंग कंपनी  ज्वाइन कर ली। धीरे-धीरे समय बीतता गया। वे काम तो यूएई में कर रहे थे, लेकिन उनका ध्यान हमेशा अपने गांव-घर पर लगा रहता था।

इसी ज़द्दो-जहद में चार साल बीत गए। आखिरकार, एक दिन उन्होंने फैसला कर ही लिया कि वे  वापस अपने देश जाकर कुछ अपना काम शुरू करेंगे और फिर साल 2018 में दोनों अपने गांव वापस लौट आए। यहां आकर देव और सारन्या ने ‘पपला’ नाम से एक कंपनी की शुरुआत की। 

देवकुमार नारायणन और उनकी पत्नी सारन्या

इसके तहत वे सुपारी के पत्तों से टेबलवेयर, बैग्स से लेकर साबुन की पैकेजिंग वगैरह  बनाते हैं। आज उनके उत्पादों की मांग भारत के अलावा, यूएई और अमेरिका जैसे देशों में भी है। फिलहाल उनकी महीने की कमाई 1.5 लाख से भी अधिक है और अपने काम को संभालने के लिए उन्होंने गांव की सात जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार भी दिया है।

झेलनी पड़ी परिवार की नाराजगी

33 साल के देव ने बताया, “हम अपनी नौकरी से ऊब चुके थे और भारत लौटकर कुछ अपना शुरू करना चाहते थे। हमारा मकसद खुद कहीं नौकरी करने के बजाय, अपने गांव में रोजगार के अधिक मौके बनाना था। हमने देखा कि हमारे गांव में सुपारी की खेती बड़े पैमाने पर होती है और इस दिशा में हम कुछ अलग क्या कर सकते हैं?”

हालांकि, देव और सारन्या का परिवार नहीं चाहता था कि वे यूएई में इतनी अच्छी नौकरी छोड़, अपने गांव वापस लौटें और संघर्ष करें। लेकिन, दोनों अपना मन बना चुके थे और उन्होंने अपने परिवार को यह कहकर राजी किया कि एकबार कोशिश करके देखते हैं, अगर फेल हुए, तो फिर से यूएई वापस आ जाएंगे और पहले की तरह 9 से 5 बजे तक की नौकरी कर लेंगे।

लेकिन, दोनों यूएई से काफी रिसर्च के साथ लौटे थे और उनके सामने कभी वापस जाने की नौबत नहीं आई।

सुपारी के पत्तों से बने उत्पाद

इसे लेकर सारन्या कहती हैं, “हमारे परिवार में पहले किसी ने बिजनेस में हाथ नहीं आजमाया था। इसलिए उनका डर बिल्कुल जायज़ था। लेकिन एकबार जब उन्हें हमपर विश्वास हो गया, तो उन्होंने हमेशा हमारा साथ दिया। भारत आने से पहले हमने इंटरनेट पर काफी मार्केट रिसर्च की थी। इस दौरान, हमने पाया कि दुनिया के कई देशों में प्लास्टिक पर बैन लगाया जा रहा है और इको-फ्रेंडली सामानों की मांग तेजी से बढ़ रही है।”

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इसी से प्रेरित होकर उन्होंने सुपारी के पत्ते से इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्सबनाने का फैसला किया। इस बिजनेस को उन्होंने सिर्फ 5 लाख रुपए की लागत से शुरू किया और अपने खर्च को सीमित करने के लिए, उन्होंने मार्केटिंग की जिम्मेदारी किसी एजेंसी को देने के बजाय, अपने कंधों पर उठाई।

सारन्या कहती हैं, “हमारा शुरू से ही प्लान था कि हम अपने खर्च को कम से कम करने की कोशिश करेंगे। इसलिए हमने सोशल मीडिया का इस्तेमाल खूब किया। देव या मुझे जब भी समय मिलता था, एक पोस्ट कर देते थे। इस तरह, काफी कम समय में बाजार पर हमारी काफी अच्छी पकड़ बन गई और पहले ही साल हमने अपने बिजनेस में करीब 10 लाख का निवेश कर दिया।”

‘पपला’ नाम के पीछे क्या है वजह?

सारन्या बताती हैं कि स्थानीय तौर पर सुपारी को पाला के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपने ब्रांड का नाम ‘पपला’ इसलिए रखा, ताकि लोगों को इससे एक जुड़ाव महसूस हो। 

अपने उत्पादों के साथ देवकुमार नारायणन और उनकी पत्नी

वह कहती हैं, “हम फिलहाल सुपारी के पत्तों से कटोरी, चम्मच, प्लेट, साबुन कवर और आईडी कार्ड जैसे 18 तरह के उत्पाद बना रहे हैं। हम अपने उत्पादों को बनाने के लिए पेड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। हम सिर्फ  पेड़ से गिरे पत्तों का इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं, हम उत्पादों को बनाने के लिए एक बूंद केमिकल रे का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।”

वह बताती हैं कि उनके उत्पादों की कीमत 1 रुपये से 100 रुपए के बीच है, जिसपर वे 50 फीसदी का डिस्कांउट भी देते हैं।

किन परेशानियों का करना पड़ा सामना?

शुरुआती दिनों में देव और सारन्या अपने उत्पादों को किसी थर्ड पार्टी के जरिए, अमेरिका, यूरोप और यूएई में भेज रहे थे। लेकिन, साल 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद, उनका बिजनेस बुरी तरह से प्रभावित हुआ।

सारन्या कहती हैं, “कोरोना महामारी के बाद, अपने हमने बिजनेस को बचाने के लिए स्थानीय बाजारों में पकड़ बनानी शुरू की। आज हमारे उत्पाद उत्तर केरल के सभी सुपरमार्केट्स में उपलब्ध हैं। अगर हम सिर्फ एक्सपोर्ट का सोचते रहते, तो शायद आज हम बाजार में ही न होते।”

अपनी टीम के साथ ‘पपला’ के फाउंडर्स

इसके अलावा, उन्हें मौसम संबंधित चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। वह बताती हैं कि सुपारी के पत्ते, साल में करीब छह महीने ही ठीक से उपलब्ध होते हैं और बाकी महीनों के लिए पत्तों को जमा करने में काफी दिक्कत होती है। हालांकि, इससे निपटने के लिए उन्होंने अपनी एक यूनिट भी बनाई है। 

उन्होंने अपने पूरे बिजनेस को संभालने के लिए सात महिलाओं को रोजगार दिया है। 

20 यूनिट्स की कर रहे मदद

सारन्या कहती हैं, “हम इस बिजनेस में अकेले नहीं हैं। केरल में सुपारी के पत्ते से उत्पाद बनाने वाले दर्जनों लोग हैं। लेकिन, बेहतर मार्केट के अभाव में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों की मदद के लिए, हमने उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू किया है और फिलहाल, हम केरल के बिल्कुल दूर-दराज के इलाकों में काम कर रहे 20 इकाइयों के साथ जुड़े हुए हैं। हम उन्हें बेहतर उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग देने के साथ ही, उनके उत्पादों को मार्केटप्लेस करने में भी मदद करते हैं।”

क्या है भविष्य की योजना?

सारन्या कहती हैं कि आज पूरी दुनिया में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोकथाम के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। ऐसे में पत्ते से बने उत्पादों की मांग में कई गुना तेजी आएगी। 

इसी को देखते हुए, वे नारियल के छिलके और केले के रेशे से भी इको-फ्रेंडली सामान बनाने के बारे में विचार कर रहे हैं, ताकि वे अपनी कंपनी को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान देते हुए, अधिक से अधिक हाथों को काम दे पाएं।

आप पपला से यहां संपर्क कर सकते हैं।

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