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पुणे के इस अस्पताल में नहीं पड़ती AC की ज़रूरत, वजह है एक पारंपरिक तकनीक

IMK Architect

मुंबई स्थित IMK आर्किटेक्ट्स फर्म में पार्टनर और प्रिंसिपल आर्किटेक्ट राहुल कादरी ने कभी नहीं सोचा था कि उनके और उनकी टीम की मेहनत और फर्म में आयोजित एक छोटी-सी प्रतियोगिता की वजह से, उन्हें एक दिन एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय अवॉर्ड मिल जाएगा। IMK फर्म की शुरुआत राहुल के पिता,आई एम कादरी ने की थी। हाल ही में इस फर्म को पुणे के लावले में Symbiosis University Hospital and Research Centre (SUHRC) को डिज़ाइन करने के लिए लंदन, Surface Design Awards की और से 2021 का ‘Supreme Winner’ घोषित किया गया।   

कुछ समय पहले सिम्बायोसिस सोसाइटी की कार्यकारी निदेशक, डॉ. विद्या येरवडेकर ने एक हॉस्पिटल बनाने लिए IMK फर्म से संपर्क किया था। वह एक ऐसा हॉस्पिटल बनाना चाहती थीं, जो बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ पर्यावरण अनुकूल भी हो।   

राहुल ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने अपने ऑफिस में एक प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसमें सभी को ऊर्जा के उपयोग को ध्यान में रखकर डिज़ाइन तैयार करना था। कुछ हफ़्तों बाद, हमारे पास तीन योजनाओं के डिज़ाइन मौजूद थे। हमारे डिज़ाइन को देखकर डॉ. यरवडेकर और सिम्बायोसिस सोसाइटी के दूसरे सदस्यों के चेहरे पर एक मुस्कान थी। तभी हम समझ गए थे कि यह प्रोजेक्ट हमें मिल गया है। हमारे डिज़ाइन, लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। साथ ही, हमने हॉस्पिटल का ऐसा डिज़ाइन तैयार किया था, जहां मरीजों को शारीरिक और मानसिक, दोनों रूप से ठीक होने में मदद मिले, उन्हें अकेला न लगे और साथ ही हमने साफ-सफाई का भी ख़ास ध्यान रखा था।”    

उन्होंने बायोफिलिया (biophilia) के विचार से प्रेरणा ली- जो एक ऐसी सहज मानवीय भावना है, जिसमें इंसान प्रकृति और दूसरे जीवों से जुड़ता है। इस फर्म ने मिट्टी की ईंटो का इस्तेमाल करके, एक ऐसी आधुनिक बिल्डिंग बनाई है, जिसमें उन्होंने हॉस्पिटल के बाहरी भाग में दो दीवारों, जालियों और कैविटी वॉल तकनीक का इस्तेमाल भी किया है, जिससे हॉस्पिटल के अंदर का तापमान नियंत्रित रहता है, ठंडक बनी रहती है और इससे ऊर्जा की खपत भी कम जो जाती है।   

डॉ. यरवडेकर, जो सिम्बायोसिस इंटरनेशनल, डीम्ड यूनिवर्सिटी में प्रो-चांसलर भी हैं, बताती हैं, “मैं एक डॉक्टर हूँ और SUHRC प्रोजेक्ट, मेरे दिल के बहुत करीब है। राहुल और उनकी टीम का बनाया डिजाइन न सिर्फ स्वास्थ्य-सेवा के हर पक्ष को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, बल्कि सस्टेनेबल भी है। यह हॉस्पिटल हमारा ड्रीम प्रोजेक्ट था,  जिसे IMK आर्किटेक्ट्स की टीम ने हकीकत में बदल दिया।”  

इस मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल का उपयोग अब एक COVID-19 केयर सेंटर के रूप में किया जा रहा है। 

प्रकृति से ली प्रेरणा 

1957 में आजादी के बाद, स्वतंत्र भारत में आई एम कादरी ने कई प्रोजेक्ट्स किये। वह अपने बड़े-बड़े बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए जाने जाते थे। राहुल कहते हैं, “हमारे फर्म का बनाया हर एक डिज़ाइन पर्यावरण के अनुकूल रहता है, जो बायोफिलिक आर्किटेक्चर पर आधारित है। इसमें नेचुरल लाइट, वेंटिलेशन जैसे पहलू शामिल होते हैं। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे डिज़ाइन में सामाजिक चेतना और शहर की इकोलॉजिकल संवेदनशीलता जैसी चीजों का पूरा ध्यान रखा जाए। हमारे काम का मुख्य सिद्धांत है, समाज को ध्यान में रखकर, सस्टेनेबल और कुशल बिल्डिंग तैयार करना।”   

इस आर्किटेक्चरल फर्म ने अब तक, चार देशों में 150 से अधिक इमारतें बनाई हैं। जिनमें मुंबई के प्रख्यात शिवसागर एस्टेट और नेहरू सेंटर, हॉन्ग कॉन्ग में कॉव्लून मस्जिद, उदयपुर में लेक पैलेस होटल, श्रीनगर में कश्मीर यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट्स, द ओबेरॉय बैंगलोर और भोपाल स्थित नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी शामिल हैं।   

बेहतरीन तकनीक ने दिलाए कई अवार्ड्स 

फर्म ने इस हॉस्पिटल को बनाने में कंप्रेस्ड सन-ड्राईड ईंट (Compressed Sun-dried Earth Brick) (CSEB) का इस्तेमाल किया है, जो इसका एक मुख्य आकर्षण है। यह एक कम लागत वाला विकल्प होने के साथ ही कार्बन न्युट्रल निर्माण सामग्री है, जो ट्रांसपोर्ट के खर्चे और कार्बन उत्सर्जन को कम करता है। इन ईंटो को अलग-अलग प्रकार की मिट्टी, जैसे लाल मिट्टी, रेत, मुरुम से बनाया गया है। साथ ही, इसमें मजबूती के लिए सात प्रतिशत सीमेंट भी मिलाया गया है। इसे बिना ऊर्जा का उपयोग किये, ब्लॉक बनानेवाली मशीन से हॉस्पिटल साइट पर बनाया गया था, जिससे कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सके।  

मिशिगन यूनिवर्सिटी के छात्र रह चुके राहुल बताते हैं, “इन ईंटो को भट्ठे में जलाने की बजाए, सुखाकर बनाया गया था। इस काम के लिए हमने स्थानीय श्रमिकों को काम पर रखा था। उन्होंने CSEB तकनीक का इस्तेमाल कर, ईंट तैयार की थी। इन ईंटो का इस्तेमाल, हॉस्पिटल के बाहरी ढांचे में अलग-अलग डिज़ाइन जैसे कि क्लैडिंग, बॉक्सिंग, ट्विस्टेड और स्क्रीन जालियां आदि बनाने में किया गया। वहीं हॉस्पिटल के अंदरूनी हिस्सों में शांत वातावरण सुनिश्चित करने के लिए, हमने छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा, जो हॉस्पिटल में काम कर रहे लोगों और मरीजों की जरूरतों के अनुकूल हो, साथ ही जिसका रखरखाव भी आसान हो।”  

वह कहते हैं कि CSEB बनी ईंटो में थर्मल इन्सुलेशन के गुण होते हैं, इसलिए यह ऊर्जा खपत को 80 प्रतिशत तक कम करने में मदद करते हैं। जिससे ऑपरेशनल कॉस्ट यानी बिजली आदि का खर्च भी कम हो जाता है। 

हॉस्पिटल के बाहरी भाग में बनी दो दीवारों की संरचना के कारण, अंदर का रखरखाव भी आसान हो जाता है। साथ ही, गर्मी भी कम लगती है। यह परिसर के अंदर के वातावरण को एक समान ठंडा बनाए रखने में भी मदद करते हैं। 

अस्पताल परिसर में बने दो बड़े आँगन, बफर ज़ोन का काम करते हैं, जिससे परिसर के अंदर अच्छी सूरज की रौशनी मिलती है। साथ ही, इस हॉस्पिटल की ओपीडी में कोई AC नहीं लगा है। दरअसल बिल्डिंग के बेहतरीन वेंटिलेशन सुविधा के कारण, हॉस्पिटल हवादार बना रहता है। इसी तरह हॉस्पिटल के सभी फ्लोर्स पर, एक तीन मीटर का चौड़ा गलियारा बना है, जो आँगन से सटा हुआ है। इसके कारण, वेंटिलेशन और प्राकृतिक रौशनी हर फ्लोर पर अच्छी बनी रहती है। इस तरह से पूरे हॉस्पिटल का बिजली का खर्च कम हो जाता है।  

इसके अलावा, हॉस्पिटल में बारिश के पानी को जमा करने की सुविधा भी बनाई गयी है। जिसके वजह से मानसून के दौरान हॉस्पिटल में पानी की 20 से 25 प्रतिशत की बचत होती है। साथ ही बिल्डिंग में एक ऐसी व्यवस्था की गयी है, जिससे इस्तेमाल किया हुआ पानी बगीचे में उपयोग में लिया जाता है।

लेकिन क्या इस तरह की ग्रीन बिल्डिंग महंगी बनती हैं? जिसके जवाब में राहुल कहते हैं कि इस तरह की बिल्डिंग बनाने में शुरुआती लागत अधिक लग सकती है, लेकिन एक बार इस तरह की पर्यावरण अनुकूल बिल्डिंग बन जाने के बाद, इनमें रख रखाव, बिजली और पानी की खर्च में काफी कम आता है, जिससे शुरुआती पांच साल में भी निर्माण लागत वसूल हो जाती है।

अंत में राहुल कहते हैं, “किसी भी बिल्डिंग के बाहरी भाग को बड़ा और उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर बनाएं। उत्तर की ओर बनाई गई बड़ी खिड़कियां, बिल्डिंग में पर्याप्त सूरज की रौशनी लाने का काम करेंगी। जबकि पश्चिम की ओर बने शेड जैसे सीढ़ियां गर्मी को रोकने का काम करेंगें। वहीं, बिल्डिंग को डिज़ाइन करते समय, खुली जगह और गलियारों को बनाने जैसी चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही, किसी भी बिल्डिंग को बनाते समय, उसके बीचों-बीच एक आँगन बनना चाहिए, जो आम तौर पर भारतीय पारंपरिक घरों में हमेशा से देखें जाते हैं। आँगन की वजह से बिल्डिंग में अंदर की ओर ठंडक, पर्याप्त रौशनी और बेहतर क्रॉस वेंटिलेशन मिलता है।”

मूल लेख –गोपी करेलिया

संपादन- जी एन झा

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