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शहर के बीचोबीच घर, फिर भी मिलती है शुद्ध हवा, पानी और भोजन, साथ ही कमाते हैं 70,000 रुपये

मंजू नाथ ने कई दशक पहले, बेंगलुरु में एक घर देखा था, जो आज भी उनकी यादों में बसा हुआ है। लाल रंग की ईंटों से बना वह ख़ूबसूरत घर, बिल्कुल मिट्टी से बने घर की तरह लगता था। पेड़-पौधों से घिरा, बड़ी-बड़ी खिड़कियों वाला वह घर, किसी 100 साल पुराने घर जैसा दिखाई देता था। वह भविष्य में एक दिन, ऐसा ही घर बनाना चाहते थे, जो टिकाऊ तो हो ही, साथ ही, प्रकृति के अनुकूल भी बना हो। 

आज बरसों बाद, मंजू नाथ का यह सपना पूरा हो गया है। आज वह ऐसे ही एक घर में रहते हैं। ईंट-पत्थरों से बना उनका यह घर, पूरी तरह से सोलर पावर से चलता है। पानी के लिए भी उनका परिवार सिर्फ प्रकृति पर ही निर्भर है। अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए वह हर साल, हजारों लीटर बारिश का पानी इकठ्ठा करते हैं। इसके अलावा, वह अपने घर से निकले कचरे का इस्तेमाल खाद बनाने के लिए करते हैं, जिससे इस घर के बगीचे में स्वादिष्ट फल और सब्जियां उगाई जाती हैं। 

मंजू नाथ कहते हैं, “साल 2007 में हमारे सपनों का घर बनकर तैयार हुआ था। कंस्ट्रक्शन में काम करने वाले, हमारे एक रिश्तेदार ने इसे बनाने में हमारी मदद की थी। उन्होंने घर के 70% हिस्से में केवल ईंटों और पत्थरों का इस्तेमाल किया, जिससे निर्माण का खर्च 10-15% कम हो गया। बाकी के हिस्से में सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है।”

आगे उन्होंने बताया, “घर का इंटीरियर, मेरी पत्नी गीता ने डिजाइन किया था। यह शहरी जीवन की त्रासदी है कि हम बिजली, पानी और भोजन जैसी मूलभूत चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर है। हम भूल गए हैं कि हम इन ज़रूरतों को, प्रकृति के ज़रिए खुद ही पूरा कर सकते हैं। अपनी सुविधा के लिए, हम बेवजह ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन, हमारा यह घर हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी जरूरतों की ज़िम्मेदारी खुद उठानी है।”

गर्मी में भी गर्म नहीं होता इनका घर 

मंजू बड़े गर्व के साथ बताते हैं कि बेंगलुरु की गर्मी के बढ़ते तापमान के बावजूद, उनके घर में कोई एयर कंडीशनर नहीं है। उन्होंने अपने घर में अलग-अलग जगहों पर क्रॉस वेंटिलेशन की सुविधा की है। बड़े मुख्य दरवाजे की वजह से यह घर, सूरज की रौशनी से ही जगमगाता रहता है और बिजली की लाइटों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।  

मंजू कहते हैं, “घर में ईंटों और क्रॉस वेंटिलेशन के इस्तेमाल के कारण, घर के अंदर का तापमान हमेशा बाहर के तापमान से 2 से 3 डिग्री कम रहता है।”

मंजू के मुताबिक इस तकनीक को अपनाने के कारण आज तक उनके घर का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं गया है। 

यह दंपति मात्र क्रॉस वेंटिलेशन के माध्यम से बिजली की बचत नहीं करता, बल्कि कुछ साल पहले उन्होंने अपने घर की छत पर सोलर पैनल भी लगवाए थे।

घरेलू स्तर पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए, स्थानीय सरकार ने विभिन्न लाभकारी योजनाओं की शुरुआत की है। यह दंपति, इन योजनाओं का लाभ उठाने वाले शहर के कुछ पहले लाभार्थियों में से एक है।

बची हुई ऊर्जा से कमाते हैं हज़ारों 

मंजू ने सोलर पैनल के उपयोग की जानकारी देते हुए बताया कि उनके घर पर लगे 10 किलोवाट के सोलर पैनल से तक़रीबन 1000 यूनिट सौर ऊर्जा बनती है। जबकि, उनकी खपत 250 यूनिट की ही है। इसलिए, बाकी बची सोलर ऊर्जा को वे बिजली विभाग को बेच देते हैं।
राज्य सरकार की सौर योजना के अनुसार बिजली विभाग 9 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से भुगतान करता है। इस तरह अतिरिक्त ऊर्जा से, मंजू और गीता को 70,000 रुपये का सालाना मुनाफा होता है।

इसके बारे में मंजू बताते हैं, “यह कॉन्ट्रैक्ट 25 साल तक वैध है। हमें सोलर पैनल लगाने में 9 लाख रुपये का खर्च आया था, जो अब पूरी तरह से वसूल हो गया है। वैसे तो, सोलर पैनल लगाने का खर्च एक बड़ा निवेश है, लेकिन यह रिटर्न की पूरी गारंटी भी देता है।”

बारिश का पानी इकट्ठा करने का जुगाड़ 

जहाँ हम और आप सुबह-सुबह मुंह धोने के लिए भी नगरपालिका से आनेवाले पानी का इंतज़ार करते हैं, वहीं मंजू और उनकी पत्नी अपनी हर ज़रूरत के लिए सिर्फ बारिश के पानी पर निर्भर हैं। तो कैसे जमा करते हैं वे इतना सारा वर्षा-जल?
उनका घर एक ढलान वाले इलाके में बना है। इसलिए, उन्होंने घर के बागीचे को इस तरह से डिज़ाइन किया है कि बारिश का सारा पानी एक गड्ढे से होता हुआ, जमीन के अंदर चला जाता है। वहीं, रेत और कंकड़ की मदद से, पानी फ़िल्टर होकर बोरवेल में जमा हो जाता है। इस तरह, भूजल स्तर अच्छा बना रहता है और बोरवेल में पानी हमेशा भरा रहता है। 

वह कहते हैं, “बारिश का पानी इकट्ठा करने के इस जुगाड़ से, हमारे घर में हर साल लगभग 4 लाख 50 हजार लीटर बारिश का पानी जमा होता है। इसमें से, हम दो लाख लीटर पानी का ही इस्तेमाल करते हैं। बाकी का पानी भूजल स्तर को रिचार्ज करने के काम आता है।”

अच्छा भूजल स्तर, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है। इसी वजह से इनके बागीचे में लगे पौधों का बढ़िया विकास होता है। उन्होंने अपने बगीचे में पत्तेदार सब्जियां, बैंगन, गाजर, मिर्च के साथ-साथ अनार, पपीता और अमरूद जैसे फलों के पेड़ भी लगाए हैं। इन पौधों को वे नियमित रूप से जैविक खाद देते हैं, जो उनके किचन से निकलने वाले कचरे से बनता है। 


जैविक खाद से उगाते हैं जैविक सब्जियां 

मंजू बताते हैं, “हम अपने घर के कचरे को जमा करने के लिए दो डिब्बों का इस्तेमाल करते हैं। दोनों ही डिब्बों की क्षमता 40 किलो है। कचरे से खाद बनाने के लिए हम कचरे में जैविक उर्वरक भी मिलाते हैं। इस तरह, हम हर महीने लगभग एक क्विंटल पोषक तत्वों से भरपूर खाद तैयार करते हैं।”

शहरी परिवेश में इस तरह प्राकृतिक तरीके अपनाकर, मंजू और गीता एक स्वस्थ जीवन शैली का आनंद ले रहे हैं, जिससे उन्हें ताजी हवा और पानी के साथ, स्वस्थ भोजन का सुख भी मिल रहा है।

आशा है, आपको इनकी इस जीवनशैली से प्रेरणा मिली होगी और आप भी अपने घर को आत्मनिर्भर बनाने की ओर पहला कदम ज़रूर उठाएंगे!


मूल लेख :- GOPI KARELIA

संपादन – मानबी कटोच

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