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घर है या खेत? बारिश का पानी सहेजकर, घर पर उगाते हैं 30 तरह के फल-सब्जियां

Prakash school teacher gardening

कहा जाता है कि जिन्हें हरियाली का शौक होता है, ऐसे लोग प्रकृति के करीब रहने (Eco Friendly Lifestyle) के लिए समय और जगह ढूंढ़ ही लेते हैं। आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे ही प्रकृति प्रेमी शिक्षक के बारे में बताने जा रहे हैं। जो पढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए कई कदम उठा रहे हैं। 

यह कहानी गुजरात के दाहोद जिला स्थित कुंडा गांव में रहने वाले प्रकाशभाई किशोरी की है। वह पास के ही एक गांव हिरोला के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं। हालांकि गांव में शिक्षा की दर मात्र 50 प्रतिशत ही है। लेकिन वन विभाग और प्रकाशभाई जैसे कुछ प्रकृति प्रेमियों की वजह से आज इस क्षेत्र के लोग प्रकृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, पेड़ लगा रहे हैं और बेवजह जानवरों का शिकार भी न के बराबर हो गया है।  

पेड़ को कटने से बचाने के साथ-साथ,  प्रकाशभाई ने अपने घर पर भी बागवानी कर रहे हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “चूंकि मेरे घर के आस-पास काफी जगह है इसलिए मैं इसका उपयोग पौधे लगाने के लिए करता हूं। कई फल और सब्जियां तो इतनी ज्यादा होती है कि हमें बांटना पड़ता है।”

बचपन से ही हैं प्रकृति प्रेमी 

Prakash Kishori

प्रकाशभाई को बचपन से ही हरियाली पसंद है। इसलिए उन्हें जहां भी जगह मिलती है, वहां पेड़-पौधे लगा देते है। पिछले 10 साल से वह अपने घर में भी बागवानी कर रहे हैं। उनकी छत पर आपको सफ़ेद चंदन के पेड़ से लेकर 6 प्रकार के एडेनियम, 24 प्रकार के गुलाब, 6 प्रकार के बारहमासी, मनीवेल की कई किस्में, पांच किस्मों के गुड़हल के फूल सहित आम के भी कई पेड़ मिल जाएंगे। उन्होंने इन पेड़-पौधों को उगाने के लिए बड़े टब, गमले और ग्रो बैग का इस्तेमाल किया है। 

इसके अलावा वह परिवार के उपयोग के लिए हरी सब्जी भी उगाते हैं। उनके किचन गार्डन में फिलहाल हरी बीन्स, बैंगन,लौकी, मिर्च, भिंडी, हल्दी, तुरई के पौधे दिख जाएंगे। 

प्रकाशभाई को नई-नई किस्मों के फल उगाना और उसकी जानकारियां इकट्ठा करना काफी पसंद है। उनके बगीचे में अमरूद, चीकू, अनार, सीताफल, आम की 3 किस्में, थाई अमरुद (लाल और सफेद), रामफल, कमरख (कैरम्बोला एपॅल) जैसे कई फल के पेड़ हैं। हालांकि उनका गांव काफी दूर-दराज के इलाके में है, जहां अच्छी नर्सरी की सुविधा भी नहीं है। बावजूद इसके उन्होंने इतने सारे पौधे उगा लिए। इसके बारे में वह कहते हैं, “जब आप किसी चीज के शौकीन होते हैं, तो आप खुद ही रास्ता खोज लेते हैं। जब भी मैं बाहर जाता हूं और आस-पास कुछ नए पौधे को देखता हूं तो उसके बारे में जानकारी इकट्ठा कर लेता हूं और फिर जब मौका मिलता है, उसके पौधे ले आता हूं।”

इसके अलावा, उनके पौधों के प्रति लगाव के कारण उनके दोस्त भी उन्हें नए-नए पौधों के बीज लाकर देते रहते हैं। हाल ही में उनके एक दोस्त ने एक जापानी आम का पौधा दिया था। इस आम की खासियत है कि यह बाजार में 2 लाख 70 हजार रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत से बिकता है। 

घर के आसपास बनाया सुंदर इको-सिस्टम 

आसपास हरियाली की वजह से उनके घर के अंदर का तापमान भी बाहरी वातावरण से 3-4 डिग्री कम होता है। जिससे गर्मी बहुत कम महसूस होती है। वहीं उनका घर कई पक्षियों का बसेरा भी है। उनके घर के बागीचे में मोर से लेकर बुलबुल, टेलर बर्ड जैसे कई पक्षी आते हैं। इन पक्षियों के लिए प्रकाशभाई ने खुद से हार्डबोर्ड का घोंसला बनाया है। ताकि पक्षी यहां सुरक्षित रह सकें।

इसके अलावा वह मवेशीपालन भी कर रहे हैं। उनके घर पर गाय है। फल-सब्जियों के साथ ही घर का शुद्ध दूध, दही और घी भी परिवारवालों को मिलता है। वहीं गाय के गोबर और गौमूत्र का उपयोग बागीचे में खाद और कीटनाशक के लिए किया जाता है। वह जैविक खाद बनाने के लिए घर से निकले ग्रीन वेस्ट और पेड़ के पत्तों का भी इस्तेमाल करते हैं। इस तरह उन्हें बाहर से कुछ भी खरीदना नहीं पड़ता। घर के अंदर मौजूद चीजों से ही एक बेहतरीन इको-सिस्टम तैयार हो जाता है। 

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उपयोग करके बढ़ा जमीन का जल स्तर 

चूंकि प्रकाशभाई हमेशा से पर्यावरण और प्रकृति के प्रति जागरूक रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपना घर बनवाते समय रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी बनवाया है। जिससे बारिश के समय छत से पानी सीधा जमीन के अंदर जाता है और आसपास के इलाके में जल स्तर को बढ़ाने का काम करता है। उनके इस कदम से उनके पड़ोसियों के घर की बोरवेल का जल स्तर बेहतर हो गया है।

प्रकाशभाई और उनका परिवार प्लास्टिक का उपयोग भी बेहद कम करता है। कई बेकार प्लास्टिक के डिब्बों को फेकने के बजाय उसे पौधा लगाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। 

यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रकाशभाई सही अर्थों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाकर, दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन रहे हैं। द बेटर इंडिया उनके इन कदमों की सराहना करता है।

मूल लेख- निशा जनसारी

संपादन- जी एन झा

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