Site icon The Better India – Hindi

गाँव का इको फ्रेंडली स्टार्टअप, पातालकोट के सुकनसी से खरीदिए पत्तों से बनी कटोरियाँ

eco friendly bowl business

छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पास ज़मीन से तक़रीबन 17000 फीट नीचे बसा खूबसूरत घाटी का इलाका पातालकोट, अपने प्रकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यहां कई लोग पिकनिक मनाने या ट्रैकिंग करने आते हैं। यह पूरा इलाका, जमीन से काफी नीचे है और जंगलो से घिरा हुआ है। यहां के ज्यादातर लोग अपनी आय के लिए खेती, मजदूरी या पर्यटन पर निर्भर रहते हैं।

पातालकोट के रातेड गांव के किसान, सुकनसी भारती भी अपनी तीन एकड़ जमीन पर मकई और कुछ मौसमी सब्जियां उगाते थे। लेकिन इससे मुनाफ़ा ज्यादा नहीं हो पा रहा था। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “चूँकि यह घाटी वाला इलाका है, इसलिए यहां जमीन समतल नहीं होती,  जिसके कारण कुछ भी उगाना काफी मुश्किल होता है।” 

वह कहते हैं कि सिर्फ खेती से गुजारा चलाना कठिन था, इसलिए उन्होंने अपनी आय के स्रोत को बढ़ाने के लिए, ईको-फ्रेंडली दौने (कटोरी) बनाना सीखा। छिंदवाड़ा स्थित रोजगार केंद्र में तकरीबन पांच साल पहले, उन्होंने सरकारी योजना का लाभ उठाते हुए यह प्रशिक्षण लिया। जिसमें उन्हें तीन-चार दिन के प्रशिक्षण के बाद, दौने बनाने की मशीन भी मिली। हालांकि, पातालकोट के कई और किसानों ने भी यह प्रशिक्षण लिया था। लेकिन सुकनसी के अलावा किसी ने भी, पत्तों से दौने बनाने का काम शुरू नहीं किया। दौने बनाने के लिए, वह जंगल में मौजूद माहुल के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं। उनके चार बेटे भी इस काम में उनका साथ देते हैं। फ़िलहाल वह  खेती करने के साथ-साथ दौने बनाने का काम भी कर रहे हैं। 

पातालकोट

पर्यावरण संरक्षण में करते हैं मदद 

सुकनसी ने दौना बनाना सीखने से पहले ईंट बनाने का प्रशिक्षण भी लिया था। उन्होंने अपना घर बनाने के लिए खुद ही ईंटें भी बनाई थीं। लेकिन उन्होंने इस काम को बिज़नेस के तौर पर शुरू नहीं किया। वह बताते हैं, “मैंने दौना बनाने के काम को चुना, क्योंकि यह बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए किया जा सकता है।” इस पूरे इलाके में सिर्फ सुकनसी ही ऐसे ईको-फ्रेंडली दौने बनाने का काम करते हैं। उन्हें आस-पास के गावों में होनेवाली शादी या किसी दूसरे समरोह के लिए दौने के ऑर्डर्स मिलते हैं।

इसके अलावा, पातालकोट के आस-पास के होटल्स वाले भी, इनसे दौने खरीदते हैं। प्लास्टिक की जगह इन ईको-फ्रैंडली दौनों के इस्तेमाल से प्रदूषण काफी हद तक कम हो जाता है। पत्तों से बने इन दौनों को अगर आप उपयोग के बाद फेंक भी देते हैं, तो कुछ समय बाद ये खुद ही नष्ट हो जाते हैं। जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता। 

पत्तों से दौना बनाते सुकनसी भारती

कोरोना लॉकडाउन से कम हुआ बिज़नेस 

फ़िलहाल कोरोना के कारण, कई चीजों पर प्रतिबंद लगा है। ऐसे में सुकनसी के काम पर भी असर पड़ा है। उनके पास 3000 दौने तैयार पड़े हैं, जिसे उन्होंने लॉकडाउन के दौरान बनाया था। उन्हें उम्मीद है, आने वाले दिनों में जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तब वह अपने इन दौनों को बेच पाएंगे। उन्होंने बताया कि अगर ज्यादा दौनों का आर्डर मिले, तो वह इसे पातालकोट के बाहर भी भेज सकते हैं। वह अभी 60 रुपये में 100 दौने बेचेते हैं। 

फ़िलहाल सुकनसी अपने खेतों में बुआई का काम कर रहे हैं । 

देश के ऐसे कई आदिवासी इलाके हैं, जहां के लोग जंगलों में मिलने वाली प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल कर पर्यावरण अनुकूल चीजें बनाते हैं। तो अगली बार, जब भी आप किसी ऐसी जगह घूमने जाएं, तो वहां के स्थानीय लोगों की बनाई चीजें जरूर खरीदें। साथ ही पिकनिक, जन्मदिन या किसी और समारोह में प्लास्टिक के बजाय इस तरह के  ईको-फ्रैंडली प्रोडक्ट्स को अपनाएं। 

यदि आप सुकनसी भारती जी से, ये इको फ्रेंडली कटोरियाँ खरीदना चाहते हैं, तो उन्हें 90983 44062 पर कॉल करके अपना ऑर्डर दे सकते हैं।
नोट – सुकनसी, खेत में भी काम करते हैं, इसलिए सकता है कि वह कभी-कभी, दो-तीन बार कॉल करने के बाद ही फ़ोन उठाएं।

संपादन- अर्चना दुबे

यह भी पढ़ें: हर मायने में आत्मनिर्भर हैं पातालकोट के जंगलों के आदिवासी, सिर्फ नमक खरीदने आते हैं बाहर

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version