“मुझे लगता है कि मैं एक स्टार के रूप में पैदा हुआ था। पता है क्यों? क्योंकि मेरे बाएं हाथ पर जुड़े हुए अंगूठे हैं- बिल्कुल ऋतिक रोशन के जैसे,” 22 वर्षीय शिवम पोरवाल कहते हैं और फिर सबके साथ हँसते हैं।
शिवम अपनी माँ के गर्भ से ही फोकोमेलिया सिंड्रोम से प्रभावित हैं, एक ऐसी बीमारी जिसमें नवजात के जन्म से ही हाथ या पैर नहीं होते या फिर अक्षम होते हैं।
शिवम अपने दाहिने हाथ में केवल तीन उंगलियों के साथ पैदा हुए थे और उनके बाएं हाथ में जुड़े हुए अंगूठे के साथ। उनके पैर पूरी तरह से अक्षम थे और वे आज भी घुटनों के बल चलते हैं।
“मेरे जन्म के समय पर ही बहुत से लोगों ने मेरे माँ-बाप को मुझे मार देने की सलाह दी थी। लोग दूर-दूर से मुझे देखने आते और मेरे मम्मी-पापा पर दया दिखाते। लेकिन मैं शुरू से ही रिबेल (बागी) था। मैं हमेशा सामान्य लोगों की तरह कुछ भी करने को चुनौती के जैसे लेता था,” शिवम ने बताया।
मध्य प्रदेश में महिदपुर नामक एक छोटे से शहर में शिवम 16 सदस्यों के संयुक्त परिवार में अपने छोटे से पैतृक घर में रह रहे थे। उनके पिता एक पान की दुकान पर काम करते थे और 100 रूपये प्रति माह कमाते थे।
हालाँकि शिवम दुसरे बच्चों के जैसे शारीरिक गतिविधियों नहीं कर सकता था, लेकिन वह किसी भी चीज़ को बहुत जल्दी सीख लेता था। वह जो भी करता पुरे दृढ़ संकल्प के साथ करता था।
“अपने स्कूल में कर्सिव में लिखने वाला मैं पहला छात्र था। जो हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों के लिए उपलब्धि के जैसे हुआ करती थी। यही वह समय था जब मेरे पिता को एहसास हुआ कि केवल शिक्षा ही मुझे आत्मनिर्भर बना सकती है। और उन्होंने मेरी शिक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। जरा सोचिये, कि एक व्यक्ति के पास न तो पैसा है और न ही शिक्षा और इसके अलावा एक अक्षम बेटा, फिर भी उन्होंने सपने देखना नहीं छोड़ा। मेरे पिता सच्चे मायनों में हीरो हैं,” शिवम ने कहा।
हालांकि, बहुत से शिक्षक शिवम से प्यार करते थे, लेकिन दूसरे बच्चे उसका मजाक बनाते और उसकी नक़ल उतारते थे।
इसके अलावा, चूंकि स्कूल में अक्षम लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए शिवम को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
“स्कूल में केवल एक वाशरूम था, जो हर समय गंदा और गीला होता था। उस समय हमें नी-कैप के बारे में नहीं पता था, इसलिए मैं बिना नी-कैप के ही घुटनों पर चलता था। इसलिए गंदे वाशरूम में जाने से बचने के लिए कई बार मैं छह-छह घंटे तक ऐसे ही रह जाता और घर वापिस आकर वाशरूम जाता था,” शिवम ने बताया।
आखिरकार, शिवम एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में चले गए। हिंदी माध्यम से होने के बावजूद, कक्षा 10 में वह पूरे शहर में तीसरे स्थान पर रहे।
कॉलेज में शिवम ने और भी अधिक चुनौतियों का सामना किया। अक्सर घर से कॉलेज में अपनी क्लास के लिए आने-जाने में होने वाली परेशानी उसकी आँखों में आंसू ले आती थी।
पर उनके जीवन में बदलाव तब आया जब उनके पिता ने बिना आर्थिक तंगी की परवाह किये, उनके लिए एक स्कूटर खरीदा।
“यह मेरे जीवन का पहला बदलाव था। आप सोच भी नहीं सकते कि एक अक्षम व्यक्ति के लिए यह कितना मददगार हो सकता है। यह पहली बार था कि मैं अकेले बाहर जा सकता था। किसी को मुझे छोड़कर आने की या वापिस लाने की जरूरत नहीं थी। यह पहली बार था जब मैं लोगों से आराम से बात-चीत कर सकता था,” शिवम कहते हैं।
दूसरा बदलाव उनके जीवन में बी. टेक के दौरान आया, जब वे पढ़ाई के लिए एक रिश्तेदार के यहां रह रहे थे। वह रिश्तेदार राष्ट्रीय स्तर के तैराक थे। एक दिन शिवम स्विमिंग पूल में उनके साथ गया। वहां कोच ने उसे तैरने की कोशिश करने के लिए कहा।
शिवम कभी भी कुछ नया करने में नाकाम नहीं रहे थे, इसलिए उन्होंने यह भी किया। उनके दृष्टिकोण से प्रभावित, कोच ने पैरा-ओलंपिक के लिए उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया।
उनके जीवन का तीसरा बदलाव था जब उनके पिता ने उन्हें सरकारी नौकरी के लिए आवेदन भरने को कहा, क्योंकि उन्हें लगा कि एक सरकारी क्षेत्र एक निजी क्षेत्र की तुलना में बेहतर था। शिवम के पास एक अच्छा मौका था क्योंकि वह शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण श्रेणी के माध्यम से आवेदन कर सकता था।
“मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने मुझे ऐसा करने के लिए कहा। क्योंकि इसने मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल दी। मैंने उन लोगों को देखा जो मेरी तुलना में बदतर स्थिति में थे। उनके पास जिस चीज़ की कमी थी, वो मेरे पास सबसे ज्यादा थी – आशा,” वे कहते हैं।
“वहां ऐसे लोग थे जिन्होंने सरकारी नौकरी के अलावा कोई बड़ा सपना देखने की कोशिश ही नहीं की थी। कई लोग आईआईटी या यहां तक कि इंजीनियरिंग जैसे स्थानों के बारे में सोचना भी नहीं चाहते थे। मुझे एहसास हुआ कि यदि आप शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की मदद करना चाहते हैं, तो सबसे बड़ी चीज जो आप उन्हें दे सकते हैं वह है ‘आशा’ और अब मैं उनके लिए आशा बनना चाहता हूँ।”
शिवम ने दूसरा रास्ता चुना। उन्होंने गेट के टेस्ट के लिए कड़ी मेहनत की और आईआईटी पटना में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने बीएसएनएल के लिए एक टेलीकॉम अधिकारी के रूप में नौकरी शुरू की।
“मैं कई परेशानियों के लिए सरकार को दोषी मानता था। इसलिए मैं सरकारी नौकरी करके यह जानना चाहता था कि यहाँ काम कैसे होता है। मैं यहां आईआईटी से पहला व्यक्ति था और मुझे ये जानकार हैरानी हुई कि हर कोई सरकारी सेवाओं का आनंद तो लेना चाहता है, लेकिन कोई भी सरकारी कर्मचारी के रूप में सेवा नहीं करना चाहता था। मैं अपने खाली समय को जितना कुछ सीख सकता था उसमें लगाना चाहता था, ताकि मैं दूसरों से कह सकूँ कि यदि आप ठान लें तो आप कुछ भी कर सकते हैं,” शिवम ने कहा।
आज शिवम एक प्रेरक वक्ता, एक गायक, एक तैराक और एक कवि हैं, और उन्होंने हाल ही में गिटार बजाना भी सीखा है।
“किसी ने एक बार मेरे पिता से कहा कि मेरी शिक्षा पर पैसे बर्बाद करने के बजाय, उन्हें मुझे पान की दुकान पर बिठाना चाहिए। जब वे मुझे कंप्यूटर संस्थान लेकर गए तो वहां उनसे कहा गया कि अपनी उँगलियों के कारण मैं कभी भी टाइप नहीं कर सकता। एक समय था जब मैंने खुद को दुनिया से छिपाने की कोशिश की। मैं सोचता था कि मैं बदसूरत और बेकार हूँ। लेकिन आज मैं एक आईआईटीयन, एक कंप्यूटर इंजीनियर, एक प्रोग्रामर हूँ और मंच पर अपनी उपस्थिति का आनंद लेता हूं। मेरे पिता ने मुझे जो कुछ भी दिया वह थी- ‘आशा’ और एक उम्मीद कि मैं सब कुछ कर सकता हूँ। मैं मेरे जैसे और भी लोगों के लिए वही आशा बनना चाहता हूँ,” शिवम कहते हैं।
अंत में, यहां शिवम उनकी कहानी पढ़ने वाले सभी पाठकों से कहना चाहते हैं –
“मैं दुनिया से लड़ने के लिए तैयार था। पर सबसे खतरनाक लड़ाई स्वयं से करनी होती है। उस लड़ाई को जीतने की कुंजी स्वीकृति है। बस खुद को अपनायों! यदि आप स्वयं को अपना नहीं सकते हैं तो आप दुनिया से कैसे कहेंगे कि वह आपको अपनाए। मैं सिर्फ एक बात कह सकता हूँ, ‘अगर मैं कर सकता हूँ, तो आप भी कर सकते हैं।’ यदि एक अक्षम पान विक्रेता के बेटे के लिए यहां तक पहुंचना संभव है, तो कुछ भी संभव है!
“अपना लिया जो तूने अपने आप को, तेरे सितारे यूँ ही चमक जायेंगे, बनकर देख उम्मीद किसी के दिल की, हर सवेरे तेरे रौशन हो जायेंगे” – शिवम पोरवाल
आप फेसबुक पर शिवम पोरवाल से संपर्क कर सकते हैं या यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर उन्हें फॉलो कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
मूल लेख – मानबी कटोच