जिसने जीने की ठान ही ली हो ना उससे मौत भी डर जाती है। फिर ये दुनिया क्या, अपना शरीर भी न साथ दे, क्या फर्क पड़ता है? शरीर के हिस्से एक-एक करके साथ छोड़ते जाते हैं और कुछ काटकर अलग कर दिए जाते हैं। लेकिन हिम्मत है कि और बढती जाती है। ये कहानी है उस जिन्दादिली की जिसने न सिर्फ मौत को पटकनी दी बल्कि अपने वजूद को प्रेरणा की एक मिसाल बना दिया। बंगलुरु की शालिनी का सफ़र इतना दर्दनाक है कि सुनकर भी रूह कांप जाती हैं।
शालिनी सरस्वती के दोनों हाथ-पैर नहीं हैं लेकिन वे मैराथन में दौडी हैं। शालिनी ने रविवार को ‘TCS World 10K’ में दस किलोमीटर की रेस दौड़ी है।
शालिनी जन्म से ऐसी नहीं थी बल्कि अभी कुछ साल पहले तक एक वे बिलकुल ठीक थी और माँ भी बनने वाली थी, लेकिन ज़िन्दगी को उनकी खुशियाँ नागवार गुजरीं और एक के बाद एक ऐसे हादसे हुए कि पूरी तासीर ही बदल दी।
2013 में शालिनी जब कम्बोडिया से अपनी शादी की चौथी सालगिरह मना कर लौटीं तब उन्हें हलका सा बुखार बुखार हो गया। 37 वर्षीय शालिनी उस वक़्त गर्भवती थी। डाक्टरों को दिखाया तो उन्हें डेंगू लगा और इलाज शुरू हो गया। लेकिन जल्दी ही ये बीमारी एक दुर्लभ बेक्टीरिया इन्फेक्शन में बदल गयी। शालिनी सीधे ICU में पहुँच गयीं और कई महीनों तक उन्हें वहीँ रखा गया। डॉक्टरों ने बताया कि उनके बचने की सम्भावना सिर्फ 5 प्रतिशत हैं। इलाज के दौरान शालिनी को अपना अजन्मा बच्चा खोना पडा।
बीमारी से जंग चरम सीमा पर थी। खतरनाक गैंगरीन ने आक्रमण किया और डॉक्टरों ने कह दिया कि उनका बायाँ हाथ काटकर अलग करना पड़ेगा। शालिनी बच्चों की तरह चीख पड़ीं।
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शालिनी के पति प्रशांत उस दर्द को सोच कर ही सिहर जाते हैं,
“डाक्टरों ने बिना बेहोशी की दवा दिए उनके शरीर से मृत कोशिकाओं को हटाना शुरू कर दिया। शालिनी दर्द से बुरी तरह चिल्लाती रहतीं। बाद में डॉक्टरों को एहसास हुआ कि उनकी काटी गयी कोशिकाओं में जीवित कोशिकाएं भी शामिल थीं,” प्रशांत ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया।
शालिनी का बांया हाथ 2013 में ही काटकर अलग कर दिया गया था। कुछ ही महीनों बाद एक दिन अस्पताल में दांया हाथ अपने आप कट कर गिर गया।
“छह महीने के बाद एक दिन मेरा दांया हाथ अपने आप कट कर गिर गया। जब शरीर को किसी हिस्से की जरूरत नहीं होती तो वो उसे छोड़ देता है। मैं समझ गई थी कि जिंदगी कुछ छोडकर आगे बढ़ने का संकेत दे रही है,” शालिनी अपने ब्लॉग में लिखती है।
शालिनी की कठिन परीक्षा जैसे अभी शुरू ही हुई थी। ज़िंदगी जब हद से गुजरती है तो असहनीय दर्द भी सुन्न होने लगता है। या फिर कोई तो ऊर्जा होती है जो सहने की ताकत देती रहती है। डॉक्टरों ने शालिनी की दोनों टाँगें भी काटने का फैसला कर लिया।
जिस दिन उसके दोनों पैर काटे जाने थे, उस दिन वो पैरों में चमकती लाल नैल-पोलिश लगा कर अस्प्ताल गई। “अगर मेरे कदम जा रहे हैं तो उन्हें खूबसूरती से विदा करूंगी” उन्होंने अपने ब्लॉग www.soulsurvivedintact.blogspot.in पर लिखा।
शालिनी न सिर्फ इस भयावय परिस्थिति से स्वयं उबरीं बल्कि हर किसी के लिए एक मिसाल बनकर उभरी है। अब शालिनी ने अपनी नौकरी फिर से ज्वाइन कर ली है।
उन्होंने जर्मनी की एक कंपनी से लोन पर दौड़ने ले लिए कार्बन फाइबर-ब्लेड लिए हैं क्यूंकि ये फाइबर ब्लेड लगभग दस लाख रुपयों के है जो वे नहीं खरीद सकती। पर दौड़ना अब उनका जूनून बन गया है।
“इतना सब होने के बाद मैं कैसे उबर पाई? सचमुच मुझे नहीं पता। हर दिन का एक एक पल मैंने जिया। छोटे-छोटे पड़ाव पार किए, प्रेरणा देने वाली खूब किताबें पढ़ीं, जिन पर मेरी जिंदगी टिकी थी। शास्त्रीय संगीत सीखा। इससे भी ज्यादा एक उम्मीद की रौशनी में जी रही थी, हर दिन लगता था कि आने वाला दिन इससे बेहतर होगा। मैं जानती थी कि आने वाला कल और खुबसूरत होता जायेगा क्यूंकि जब आप सबसे नीचे होते हैं तो हर रास्ता आपको ऊपर ही ले जाता है,” शालिनी ने अपने ब्लॉग में कहा।
कोच बी पी अयप्पा की कोचिंग में प्रशिक्षण ले रही शालिनी का लक्ष्य सिर्फ दस किलोमीटर की मैराथन में दौड़ना भर नहीं है बल्कि वो तो 2020 के पैरा ओलम्पिक में दौड़ना चाहती है।
शालिनी के कोच उसे हमेशा सामान्य एथलीट की तरह देखते हैं, जिससे उसका उत्साह दुगना हो जाता है पर।
शालिनी ने अपने ब्लॉग पर लिखे एक लम्बे लेख में ज़िन्दगी की कुछ अहम् बातें लिखी हैं, जो उन्होंने इस दौरान सीखी हैं। शालिनी हर पल को पूरा का पूरा जी लेने में यकीन रखती हैं।
“बारिश में निकलो, मुंह खोलो और कुछ बूंदों को आने दो.. अपने पैरों के नीचे नरम घास महसूस करो.. अजनबियों को देखकर एक छोटी सी मुस्कान, खूबसूरत लोगों को देखकर आकर्षण पनपने दो. फ्लर्ट करो.. प्यार में डुब जाओ।
उससे मिलो जिसके लिए तुम बहुत मायने रखते हो, कसकर बाँहों में भर लो.. नांचो जब तक गिर न जाओ.. ख्वाहिशें लिख लो.. खूब जोर से चिल्लाओ, कोई संगीत उपकरण बजाना सीखो। आकाश में तैरो दुनियां घूम लो..आज और अभी इस पल को जी लो.. कोई नहीं जानता कल क्या होगा।”
शालिनी दिव्यंगों के लिए ही नहीं हम सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। ज़िन्दगी परीक्षाएं लेती है, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उसका अगर डटकर मुकाबला करें तो मौत भी डर जाएगी.