देहरादून के करुणा विहार स्कूल में एडमिशन ख़ास जरूरत वाले बच्चों और उनके माता-पिता के लिए जीवन बदल देने वाला अनुभव हो सकता है| ये पढ़ कर जानिये क्यों|
जब भी कोई उसका नाम पूछता तो वो कहता, ‘मै पागल हूँ”| ये बच्चा डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से पीड़ित है, उन लोगों का आदी हो गया था जो उसे पागल बुलाते थे इसलिए उसने इस शब्द को ही अपना नाम मान लिया था| लेकिन खास जरूरत वाले बच्चों के लिए बने करुणा विहार स्कूल में कुछ महीने रहने के बाद , वो मुस्कुराकर अपना नाम बताता है ‘मेरा नाम विशाल है‘
करुणा विहार को शुक्रिया, विशाल जैसे ही हजारों बच्चों ने वो आत्मविश्वास पाया, कि उन्हें समाज में ज्यादा स्वीकृति भी मिली, और अब वो एक बेहतर जिंदगी जी पा रहे हैं|
इस स्कूल की शुरुआत 1996 में मंजू सिंघानिया और जो म्क्गोवान चोपड़ा ने की| जब, जो की बेटी मोई मोई जिसे कि सेरिब्रल पाल्सी था, को एक साधारण स्कूल में एडमिशन नहीं मिला, तब जो और मंजू ने अपना एक स्कूल खोलने का निर्णय लिया|
देहरादून के रहने वाले इन दो दोस्तों ने बस दो विद्याथियों को ले कर ही ख़ास जरूरत वाले बच्चों के लिए करुणा विहार स्कूल खोला|
आज, 8 आश्चर्यजनक प्रोजेक्ट्स के माध्यम से स्कूल में 1500 से भी ख़ास जरूरत वाले बच्चे हैं|
मंजू कहती हैं कि- ‘ ये सफ़र इतना आसान नहीं था| हम माता-पिता के पास गए और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने का आग्रह किया| ज्यादातर परिवारों ने इसके लिए इंकार कर दिया, वो ये नहीं स्वीकार करना चाहते थे कि उनके बच्चे के साथ कुछ भी गलत हुआ है| यही स्वीकृति बहुत जरूरी है|’
जिस स्कूल को शुरुआत में विद्यार्थियों को पाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी, अब उसमें एडमिशन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है| मूल्यांकन केंद्र बच्चों के सीखने का स्तर का निर्धारण करते हैं| जल्द हस्तक्षेप से बच्चों को जल्दी सीखने में मदद मिलती है| जागरूकता कैंप और वर्कशॉप से माता-पिता अपने बच्चे की स्थिति को अच्छे से समझ पाते हैं|
बच्चों के माता-पिता की काउंसलिंग की जाती है| बच्चे की अक्षमता के बारे में बात करने के बजाय टीम बच्चे की सामर्थ्य पर ध्यान देती है कि कैसे इससे बच्चे की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है|
करुणा विहार में छात्रों को कई खेलों और गतिविधियों में संलग्न रखा जाता है|
मंजू बताती हैं कि- ‘हम बच्चों के माता-पिता को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि हर बच्चे में कोई न कोई खासियत हो सकती है जिसका उपयोग बच्चे की बेहतरी के लिए किया जा सकता है|’
टीम माता-पिता को अपने बच्चों से अवास्तविक उम्मीदें ना रखने को बल्कि उसकी जगह उनके बच्चों द्वारा हासिल छोटे-छोटे लक्ष्यों की ख़ुशी मानाने को कहती है|
वो कहती हैं कि- ‘कोई बच्चा कैसे दौड़ सकता है जबकि वो ठीक से बैठ भी नहीं पा रहा है? इसलिए हम माता-पिता से बात करते हैं और उनको कहते हैं कि- अपनी अपेक्षाओं से पहले उन्हें छोटे लक्ष्य हासिल करने दीजिए|’
स्कूल विशेष जरूरतों वाले वयस्कों के रोजगार पर भी ध्यान दे रहा है| यह विभिन्न जीवन कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण वर्कशॉप भी प्रदान करता है|
साक्षी, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित उन बच्चों में से एक है जिनसे एक शिशु के तौर पर करुणा विहार ज्वाइन किया था| अब वो 21 साल की है और देहरादून के एक बड़े होस्टल में हाउस कीपिंग विभाग की हेड है|
करुणा विहार के पास 90 लोगों की एक बड़ी टीम है, जिसमें शिक्षक हैं, चिकित्सक हैं और बाकी का स्टाफ भी है| अब स्कूल एक स्थानीय समुदाय के साथ काम करने की कोशिश कर रहा है और समिति में और लोग मिल सकें|
मंजू कहती हैं कि- ”ऐसे बहुत से युवा स्नातक हैं जो कि कोई नौकरी नहीं कर रहे हैं| हम चाहते हैं कि उन जैसे सभी युवा हमारे साथ काम करें|’
करुणा विहार विशेष जरूरत वाले बच्चों के साथ काम करने के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एक संसाधन केंद्र के रूप में भी कार्य करता है|
मंजू और जो ने करुणा विहार की सफलता के पीछे काफी मेहनत की है| शुरुआत में बहुत सारी दिक्कतें आईं जैसे कि -फण्ड की कमी, अनिच्छुक माता-पिता जो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं थे, सही स्टाफ का ना मिलना, और भी कई|
अब स्कूल दान के पैसों से चलता है और जो लोग फीस देने में समर्थ हैं उनसे नाममात्र फीस ली जाती है| गरीब घरों के बहुत से बच्चे यहां निःशुल्क पढ़ते हैं|
भविष्य में, मंजू और जो अपनी एक खुद की बिल्डिंग चाहते हैं और उसमें और भी ज्यादा विद्यार्थी चाहते हैं| वो दूसरी संस्थाओं के अध्यापकों को भी प्रशिक्षित करना चाहते हैं|
अगर आप मंजू और जो की सहायता करना चाहते हैं, तो आप बच्चों के लिए वाहन की सुविधा का इंतजाम कर सकते हैं, या स्टाफ के सदस्यों के वेतन को स्पांसर कर सकते हैं, या बच्चों की फीस भी अदा कर सकते हैं| आप स्कूल में कार्यकर्ता भी बन सकते हैं | करुणा विहार को वाक् और व्यावसायिक चिकित्सकों की तलाश है|
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