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कृषि-कचरे से मात्र 3 महीने में बना दिया कोविड केयर सेंटर, बिजली पर नहीं निर्भर

द बेटर इंडिया ने साल 2019 में, उत्तर प्रदेश की आर्किटेक्ट श्रीति पांडे से उनकी कंपनी ‘Strawcture Eco’ के बारे में एक लेख प्रकाशित किया था। इस लेख में, उन्होंने कृषि कचरे से सस्टेनेबल घर बनाने की तकनीकों के बारे में बताया था। हमें नहीं पता था कि वह एक साल बाद, कोरोना काल में मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था करने के लिए, अपनी उसी तकनीक का उपयोग करेंगी। उन्होंने कृषि कचरे का इस्तेमाल कर, पटना और पंजाब के जालंधर के पास के क्षेत्रों में, दो कोविड केयर अस्पताल (covid care hospital) बनाए हैं। 

28 वर्षीया सिविल इंजीनियर, श्रीति ने सेल्को फाउंडेशन के सहयोग से 80 से भी कम दिनों में, पटना में अपने क्लाइंट ‘डॉक्टर्स फॉर यू’ (DFY) के लिए एक कोविड केयर अस्पताल (covid care hospital) बनाया। वहीं, दूसरा अस्पताल (covid care hospital) जालंधर में ‘बत्रा हॉस्पिटल’ के सहयोग से बनाया गया है। 

द बेटर इंडिया को श्रीति ने बताया, “मार्च 2020 में, लॉकडाउन के कारण हमें अपना काम बंद करना पड़ा था। लेकिन, अप्रैल में सेल्को द्वारा हमें एक ऐसा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट  दिया गया, जिसे हमें काफी कम समय में पटना जिले के मसाढ़ी गाँव में बनाना था। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखना था कि वह किफायती तथा पर्यावरण के अनुकूल भी हो। हमने जुलाई तक 75 बेड की क्षमता वाले छह हजार वर्ग फुट का अस्पताल बना दिया था। इस अस्पताल (covid care hospital) में उन मरीज़ों के लिए अलग कमरों की व्यवस्था भी की गयी है, जिन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर की ज़रूरत है।”

जालंधर का अस्पताल

इन अस्पतालों (covid care hospital) को बनाने में पानी का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। साथ ही, इन्हें सही ढंग से चलाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा है। श्रीति ने बताया कि उन्होंने इस मुश्किल काम को कैसे पूरा किया और फिलहाल वह कैसे दूसरे क्षेत्रों में इसी तरह के निर्माण कार्य कर रही हैं। 

अग्निरोधक, सौर ऊर्जा जैसी अन्य सुविधाएँ

आज के दौर में जलवायु परिवर्तन हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अगर इस दिशा में जरूरी कदम नहीं उठाये गए, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है। श्रीति ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए, निर्माण कार्यों में एक यूरोपीय कंपनी ‘Ekopanely’ की तकनीक अपनाई है।। यह कंपनी भवन निर्माण में उपयोग होने वाले मटेरियल के रूप में, रीसायकल करने लायक और ‘Vapour Permeable Construction Panels’ का भी इस्तेमाल करती है। VPC पैनल में ऐसी चीज़ों का इस्तेमाल होता है, जो पानी, वाष्प या गैस को अपनी सतह से अंदर जाने देते हैं। इससे पानी और वाष्प की नमी से, अंदर का तापमान सही बना रहता है। इन पैनल को भूसा और खली जैसी चीज़ों से बनाया जाता है।

श्रीति फाइबर पैनल बनाने में कृषि कचरे का इस्तेमाल करती हैं, जो कॉन्क्रीट की दीवारों और छत का एक स्थायी विकल्प है। Strawcture Board बनाने में, जिस स्ट्रॉ कोर का इस्तेमाल होता है, वह रीसाइकल्ड कागज़ों की तीन ठोस या कंप्रेस्ड परतों से ढका रहता है। बोर्ड को किसी ढाँचे में लगाने या इनस्टॉल करने के बाद सतह में स्थापित किया जाता है। इसके बाद उसे अंतिम फिनिश दी जाती है, जिससे किसी प्रकार के कतरने वाले जानवर जैसे- चूहा, गिलहरी आदि अंदर न जा पायें। भूसे से बने स्ट्रॉ पैनल, 100 साल तक चल सकते हैं। पैनल पर बने छोटे छेद नमी को सोख लेते हैं और तब तक सोखे रखते है, जब तक कि तापमान की स्थिति बेहतर न हो जाए। इसके बाद, बोर्ड कमरे के वातावरण में आद्रता या ह्युमिडिटी को बढ़ाता है, जिससे कमरे के अंदर की हवा में नमी आ जाती है।

श्रीति बताती हैं, “हम सिलिका का उपयोग करते हैं, जो दीवार को फायर प्रूफ यानि अग्निरोधक बनाता है। साथ ही, हरेक दीवार तीन किलो तक कार्बन डाइऑक्साइड स्टोर कर सकती है। सभी पैनल प्राकृतिक रूप से थर्मली इंसुलेटेड हैं, जिसका मतलब है कि यह गर्मी को रोकता है और अंदर के तापमान को ठंडा रखता है। यह उन मरीज़ों को आराम पहुंचाता है, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। छत के लिए एक नालीदार शीट का उपयोग किया गया है, जो गर्मी को रोक लेती है। सेल्को फाउंडेशन को मसाढ़ी गाँव की बिजली की समस्या के बारे में जानकारी थी। साथ ही, ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्यादातर चिकित्सा सुविधाओं के लिए बिजली की जरूरत होती है। इसलिए, हमने बिजली के लिए छत पर सोलर पैनल लगाए हैं, जिससे यह अस्पताल बिजली से जुड़ी जरूरतों के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर रहे।” 

अस्पताल की पूरी संरचना को फाइबर पैनलों से बनाया गया है, इसके बावजूद, यहां के शौचालय, कमरे और अन्य सुविधाएं देखने में किसी भी साधारण अस्पताल की तरह ही है। उनकी टीम ने फर्श को ज़्यादा टिकाऊ बनाने के लिए, एक लैमिनेशन तकनीक का इस्तेमाल किया है, ताकि डिसइंफेक्टेंट और सेनिटाइजेशन के कारण फर्श ख़राब न हो जाये। 

समय और लागत की बचत 

निर्माण का लगभग 60% काम मसाढ़ी गाँव में नहीं, बल्कि श्रीति के वर्कशॉप में पूरा किया गया है। उनकी टीम ने समय बचाने के लिए, वेल्डिंग की बजाय पहले से बने ढांचों को स्क्रू और बोल्ट से जोड़ने का फैसला किया। दीवार के 400 पैनल लगाने में उन्हें पांच दिन लगे। उन्होंने पूरे ढाँचे का वजन कम करने के लिए, फोम जैसी कम वजन वाली चीज़ों का इस्तेमाल किया है। इन दोनों तकनीकों के इस्तेमाल से श्रीति, सेल्को और DFY को निर्माण कार्य की लागत कम करने में काफी मदद मिली।

हाल ही में, श्रीति और उनकी टीम अस्पतालों के लिए, फोल्डेबल और मूवेबल पार्टिशन बनाने का काम कर रही है। इनकी सहायता से किसी सामान्य कमरे को आसानी से आईसीयू (ICU) यूनिट में बदला जा सकता है। ऐसी संरचनाओं के हिस्सों को खोलकर या अलग करके, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए छोटी संरचनाएं बनाने के लिए फिर से उपयोग में लिया जा सकता है। 

अंत में श्रीति कहती हैं, “ग्रामीण इलाकों में किफायती और टिकाऊ स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए, हम बड़े पैमाने पर फोल्डेबल पार्टिशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे किसानों को एक एकड़ कृषि कचरे के 25,000 रुपये तक मिल सकते हैं। साथ ही, भूसा न जलाकर, वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है। हर 10×4 फीट के पैनल को बनाने में, लगभग 100 किलो भूसे का उपयोग होता है, यानी यह सभी के लिए फायदे का सौदा है।”

मूल लेख: गोपी करेलिया

संपादन – प्रीति महावर

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