स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते देश में हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाती है। सुदूर क्षेत्र में रहने वाली आबादी को भी समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। इसकी मुख्य वजह क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा नहीं होने के साथ-साथ यातायात सुविधा का भी अभाव होना है। कई बार यातायात सुविधा होने के बावजूद भी टूटी व उबड़-खाबड़ सड़कों की वजह से इन इलाकों में एम्बुलेंस नहीं पहुँच पाती है। छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा जिले के लोगों की भी ऐसी ही कुछ समस्या थी। पहाड़ से घिरे इस जिले के जंगली इलाकों में संकरे एवं उबड़-खाबड़ रास्ते हैं जिसके कारण चार पहिया वाहन नहीं पहुंच पाते थे। ऐसे में प्रसव या फिर कोई गंभीर घटना होने पर मरीजों को घरेलू उपचार या झाड़-फूँक से ही काम चलाना पड़ता था। लेकिन अप्रैल 2018 से यहां के हालात बदल गए हैं। अब लोगों को बैगा या फिर झाड़-फूँक से इलाज नहीं करवाना पड़ेगा। क्योंकि अब इस इलाके में संगी एक्सप्रेस नाम से बाइक एम्बुलेंस सेवा शुरू हो गई है। जिसमें मरीजों के घर के बाहर तक एम्बुलेंस पहुँच रही है।
मीलों चलने के बाद भी नहीं होता था इलाज
बाइक एम्बुलेंस सेवा शुरू होने से पहले यहाँ की स्थिति बहुत ख़राब थी क्योंकि जिले के कुछ अंदरूनी क्षेत्रों में रास्ते ऐसे हैं कि वहाँ कोई भी चार पहिया वाहन नहीं पहुँच सकता था। बेहद साधारण स्वास्थ्य सुविधा के लिए भी गाँव के लोगों को मीलों चलना पड़ता था। गाँव वाले सुबह से शाम पैदल चलकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते थे तब जाकर उनका इलाज होता था। तपती धूप और मूसलाधार बारिश में तो जिले के चिरपानी, बोकरखार, कुकदूर, दलदली और झलमला गाँव में समस्या और भी गंभीर हो जाती थी। इन गाँवों से कई ऐसे मामले भी सामने आते थे जिनमें गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को होने वाली प्रसव पीड़ा पर अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिलता था और बात उनकी जान पर बन आती थी।
क्या है बाइक एम्बुलेंस संगी एक्सप्रेस
यहाँ के लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए जिला कलेक्टर अवनीश शरण की एक पहल है। कलेक्टर ने अप्रैल 2018 को संगी एक्सप्रेस नाम से बाइक एम्बुलेंस लॉन्च की। इस एम्बुलेंस की खास बात यही है कि यह पहाड़ी इलाकों में भी बखूबी चलती है और जल्द से जल्द मरीज को अस्पताल पहुंचा देती है। यह एम्बुलेंस शुरुआत में जिले के तीन स्वास्थ्य सेक्टर्स में चलाई गई लेकिन बाद में लोगों की मांग को देखते हुए पांच बड़े वनांचल क्षेत्र दलदली, बोक्करखार, झलमला, कुकदूरऔर छिरपानी में चलाई जा रही है।
दरवाज़े तक आती है संगी एक्सप्रेस
सेवा शुरू होने के बाद इन सभी गाँवों में लोगों को मोबाइल एम्बुलेंस के ड्राइवर का नम्बर दिया गया। पंचायत की बैठकों में लोगों को जागरूक करने का भी काम किया गया। गाँव वालों को बताया गया कि प्रसव पीड़ा या किसी भी प्रकार की आपातकाल स्थिति के दौरान वे गाड़ी के ड्राइवर या आशा वर्कर को कॉल करके बाइक बुला सकते हैं। कॉल करने के बाद ड्राइवर संगी एक्सप्रेस को मरीज के दरवाजे तक लेकर जाता है, फिर मरीज को घर से पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचाता है। संगी एक्सप्रेस की इस सेवा को लेकर क्षेत्र के लोग काफी खुश नज़र आते हैं।
कोयलारी गाँव की कनिहारिन बाई कहती है कि 7 अक्टूबर 2018 को प्रसव पीड़ा के दौरान उन्होंने संगी एक्सप्रेस के ड्राइवर को फोन करके बुलाया और अपनी माँ के साथ 12 किलोमीटर दूर स्थित दलदली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गई और रात 11:20 बजे मैंने एक नए जीवन को जन्म दिया। बाइक एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचना, सब कुछ आसानी से हो जाना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता क्योंकि मैंने अपने रिश्तेदारों को प्रसव पीड़ा के दौरान तड़पते देखा है।
संगी एक्सप्रेस पहल के यह हैं चार प्रमुख उद्देश्य
1) गोल्डन आवर (प्रसव पीड़ा के दौरान ज़रूरी घंटे) के भीतर आपातकालीन देखभाल की आवश्यकता वाले लोगों को कम करके मातृ, शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करना।
2) दुर्घटना पीड़ितों और अन्य आघात के मामलों से पीड़ित लोगों को आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवा (ईआरएस) सुविधा प्रदान करना।
3) स्वास्थ्य सेवाओं की मांग के लिए अन्य जिलों और संबंधित राज्यों में ग्रामीणों के प्रवासन को कम करने और संबंधित क्षेत्रों में स्वास्थ्य लाभ देना।
4) जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के तहत गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल को मजबूत करना।
कलेक्टर शरण कहते हैं , ”अब जब गाँव जाता हूँ तो लोग ख़ुशी-ख़ुशी बताते हैं कि अब हमारा इलाज हो गया है। नवजात शिशु को मेरे पास लेकर आते हैं और कहते हैं कि कैसे संगी एक्सप्रेस के माध्यम से उनके जीवन में बदलाव आया है। मैं इन गाँव वालों के चेहरों पर खुशी देखता हूँ तो लगता है कि बाइक एम्बुलेंस शुरू करना सबसे बेहतर कदम था।”
जिले के बैगा आदिवासी बाहुल्य सुदूर और दुर्गम वनांचल में रहने वाली दशरी बाई सहित जिले की हजारों गर्भवती महिलाओं के लिए बाइक एम्बुलेंस वरदान साबित हो रही है।
दशरी बाई कहती है कि जंगल क्षेत्र के सभी गांवों के लिए बाइक एम्बुलेंस जीवन रक्षक के रूप में वरदान है। वह बाइक एम्बुलेंस के माध्यम से कुकदूर के स्वास्थ्य केन्द्र में पहुंच कर अपना नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण भी कराती है।
अब बैगा से नहीं, डॉक्टर से कराते हैं इलाज
दशरी बाई कहती है कि पहले यहां के लोग स्थानीय बैगाओं के पास पहुंचकर अपना इलाज कराते थे। वनांचल ग्रामों में किसी को सांप-बिच्छू के काटने पर झाड़-फूंक कराते थे। लेकिन अब बाइक एम्बुलेंस की सेवाएं मिलने से वनांचल गांवों में जागरूकता बढ़ी है। अब लोग झाड़-फूक जैसे अंधविश्वास और गाँव -घर में ही जचकी करने जैसी सामाजिक कुरीतियों में विश्वास नहीं करते हैं।
अब तक 2 हज़ार से ज्यादा मरीजों को मिला लाभ
जिले में पांच बड़े वनांचल केन्द्र दलदली, बोक्करखार, झलमला, कुकूदर और छिरपानी में बाइक एम्बूलेस की सेवाएं मिलने से अब तक 2,268 मरीजों को इस सुविधा का लाभ मिला है। इस सेवा के तहत 332 गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए स्वास्थ्य केन्द्र और 346 शिशुवती माताओं को प्रसव के बाद सुरक्षित घर पहुंचाया गया। 1,120 गर्भवती माताओं को नियमित स्वास्थ्य परीक्षण के लिए स्वास्थ्य केन्द्र लाया गया। 293 बच्चों को टीकाकरण एवं मौसमी बीमारियों के उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया गया। 166 मरीजों को आपातकालीन में स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचाकर उन्हें बचाया गया।
”यह आंकड़े गाँव वालों के जीवन में मुस्कान की एक वजह है। यह आंकड़े तमाम चुनौतियों के बाद भी समाधान कैसे किया जाए इसका जवाब है। स्वास्थ्य को लेकर अब लोगों में जागरूकता बढ़ने लगी है। संगी एक्सप्रेस से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मदद मिले हमारा यही प्रयास होता है,” कलेक्टर अवनीश शरण ने कहा।
अगर इच्छाशक्ति हो तो किसी भी बड़ी समस्या का समाधान संभव है। बाइक एम्बुलेंस की शुरुआत और गाँव – गाँव में दौड़ती बाइक एम्बुलेंस आज हज़ारों गाँव वालों के लिए वरदान साबित हो रही है। एक नेक सोच और पहल से कई जीवन बचाए जा रहे हैं। इससे पलायन रुका है। अन्धविश्वास पर विराम लग रहा है। निश्चित ही कलेक्टर अवनीश शरण की यह पहल सराहनीय है, ऐसी पहल को ज़्यादा से ज़्यादा ज़िलों में लागू किया जाना चाहिए।
संपादन – भगवतीलाल तेली