कोरोना संकट के समय हर रोज़ बहुत सारे लोगों की समस्याओं के बारे में पढ़ने और देखने को मिलता है, लेकिन ज़्यादातर ऐसा होता है कि हम उन ख़बरों को देखने के बाद अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं और सब कुछ भूल जाते हैं। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो जरुरतमंदों के दर्द को देखकर रह नहीं पाते और उनकी मदद के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। आज की कहानी है छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले की, जहाँ 3 अनजान लोगों ने मिलकर 45 परिवारों तक महीने भर का राशन और जरुरत का सामान पहुँचा दिया।
छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर के कांकेर में नगरपालिका के अंतर्गत कबाड़ का कार्य कर अपनी आजीविका चलाने वाले करीब 45 परिवार रहते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय घरों से कबाड़ इकट्ठा करना और सुअर पालन है। ज़्यादातर लोगों का जीवन साइकिल में दिन भर घरों से कबाड़ इकट्ठा कर उसे बेच कर ही चलता था। ये वे हैं, जो समाज के सबसे गऱीब लोग हैं और जो किसी भी आर्थिक झटके से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अचानक आमदनी बंद होने से चुनौती का सामना करने के लिए इनके पास बचत के नाम पर कुछ नहीं होता या होता भी है तो मामूली सी रक़म होती है। कोविड-19 के संक्रमण के चलते लॉकडाउन में इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई थी। कोई भी परिवार कबाड़ इकट्ठा करने नहीं जा पा रहा था जिसके कारण कमाई के सारे साधन बंद हो गए थे। रोजमर्रा के राशन के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे।
जब कलम के सिपाही ने इनके लिए उठाई आवाज़
इस घटना के बारे में एक स्थानीय पत्रकार तामेश्वर सिन्हा बताते हैं, “एक दिन फील्ड रिपोर्टिंग के समय कबाड़ का काम करने वाले इन साथियों के घर के पास पहुँचा। परिवार के अधिकांश सदस्य घर के बाहर बैठे हुए थे तो मैंने उनसे बात की। बातचीत में पता चला कि कबाड़ का काम बंद होने के कारण पूरा परिवार दो वक़्त के खाने तक का मोहताज़ हो गया है। अपनी पीड़ा सुनाते हुए कुछ सदस्य बेहद भावुक होकर कहने लगे कि उन्हें समझ नहीं आता कि ऐसे समय में वह क्या खाएंगे और कैसे जीयेंगे, आखिर कौन मदद करेगा उनकी! यह बात सुनकर बहुत बुरा लगा और मैंने इसे एक विस्तृत कहानी बनाकर सोशल मीडिया और विभिन्न अख़बारों में प्रमुखता से उठाया और यह भी लिखा कि समाज के लोग इनकी मदद के लिए सामने आए।“
तामेश्वर आगे बताते हैं, “इस बीच इनकी ज़रूरतों के लिए बहुत सारे लोगों से मदद की अपील भी की और सोशल मीडिया के माध्यम से इनकी पीड़ा को ज़िम्मेदार लोगों तक पहुँचाया भी। तभी एक दिन एक कॉल आया और पता चला कि बिलासपुर से कोई शख्स इन सभी की मदद करना चाहता है।”
इन्होनें पहुँचाई मदद
तामेश्वर बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाली श्रीयुता अभिषेक ने जब सोशल मीडिया और अख़बार के माध्यम से उनकी इस खबर को पढ़ा वह बेहद विचलित हो गईं। श्रीयुता ने तुरंत उनसे संपर्क किया और इस विषय पर पूरी जानकरी लेकर उन परिवारों के लिए करीब 36000 रुपये की आर्थिक मदद दी। इस आर्थिक सहायता से उन सभी परिवारों के लिए सबसे पहले राशन और जरुरत के सामान की व्यवस्था की गई।
गरीबों की मदद करने वाली श्रीयुता कहती हैं, “उन 45 परिवारों को न ही मैं जानती हूँ, न ही कभी देखा है और न ही उनसे कभी मिली हूँ, लेकिन मानवीय आधार पर तो वो हमारे अपने ही हैं फिर उनकी मदद के लिए हाथ कैसे न बढाती!”
आर्थिक मदद मिलने के बाद हर परिवार की सूची बनाना, बच्चों के अनुरूप खाद्य सामग्री आदि खरीदना तथा हर परिवार तक पहुँचाने का काम स्थानीय दिशा संस्था ने संभाला। उपलब्ध राशि से खाने के सामान के अतिरिक्त रोजमर्रा की चीजें जैसे- मास्क, साबुन, वाशिंग पाउडर आदि खरीदकर कर उन तक पहुँचाया गया। इसके साथ-साथ संस्था ने हर परिवार को समझाया कि लॉकडाउन में आगे भी जरुरत का सामान उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा।
ज़रुरतमंदों ने भी कहा शुक्रिया
कबाड़ इकट्ठा कर घर चलाने वाली अनीता कहती हैं, “हमारा और कोई दूसरा व्यवसाय नहीं है। इसी से जिंदगी चलती थी। हम लोगों के घरों से कबाड़ उठाकर, बड़े कबाड़ी व्यापारी को बेच देते थे अब तो सब कुछ बन्द हो गया है। घर में छोटे छोटे बच्चे हैं जिनको कम से कम दो वक़्त का खाना तो खिलाना ही पड़ेगा। ऐसे वक़्त में शहर के कुछ लोगों ने हमारी मदद की और अब काम शुरू होने तक का राशन भी हम सभी को दिया है। यह मदद हमें तब मिली जब हमनें उम्मीद छोड़ दी थी। मैं कभी भी इन लोगों को नहीं भूल सकती।”
इस पूरी मुहिम में, 3 अनजान लोगों ने 45 अनजान परिवारों की मदद की। एक ओर जहाँ लॉकडाउन के दौरान कई तस्वीरों ने हमें विचलित कर दिया वहीं तामेश्वर, श्रीयुता और दिशा संस्था का यह संयुक्त प्रयास निश्चित ही इन तस्वीरों को बदलने का एक सराहनीय प्रयास है। ये तीनों कोरोना वारियर उन 45 परिवारों के जीवन में उम्मीद और विश्वास बनकर सामने आए।
इन बेमिसाल कोरोना वारियर्स को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
संपादन- पार्थ निगम
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