क्या आपने कभी ऐसी महिला उद्यमी की कहानी सुनी है, जिसने फैशन इंडस्ट्री की जगमगाती दुनिया को छोड़कर गाँव की तरफ रूख कर लिया हो? आज द बेटर इंडिया आपको ऐसी ही महिला से रूबरू करवा रहा है।
यह कहानी बनारस की शिप्रा शांडिल्य की है। वह पिछले कई सालों से ग्रामीण इलाकों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने बनारस के तकरीबन आठ गाँव की महिलाओं को जोड़कर ‘प्रभुती एंटरप्राइज’ नामक फर्म शुरूआत की है। इसके ज़रिए, वह लगभग 15 तरह के अलग-अलग खाद्य उत्पाद बाज़ारों में बेच रही हैं। उन्होंने खाद्य उत्पादों की शुरुआत गाय के शुद्ध देसी घी से की थी और आज वह रागी, बाजरा जैसे मोटे अनाजों के बिस्किट आदि बना रही हैं।
शिप्रा बताती हैं कि वह पहले फैशन डिजाइनिंग से जुड़ी थी। उन्होंने अपने कारोबार की शुरुआत डिजाइनिंग कपड़े बनाने से ही की थी लेकिन लगभग 18-20 साल बाद उन्होंने सोचा कि कुछ और किया जाए। शिप्रा ने अपने सफर के बारे में द बेटर इंडिया से बात की।
उन्होंने बताया, “मेरे पिताजी बीएसएफ में थे और उस वक़्त हम नोएडा में रहते थे। मैंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई के बाद डिस्टेंस से पढ़ाई की। एक साल का डिजाइनिंग कोर्स करने के बाद मैंने अपना काम शुरू कर दिया था। यह साल 1992 था जब मैंने कंपनियों के लिए डिजाइनिंग करना शुरू किया। इसके बाद, मेरा काम बढ़ता ही रहा और बीच-बीच में मैंने अलग-अलग कोर्स भी किए।”
डिजाइनिंग के बाद शिप्रा ने कई सालों तक डाई के क्षेत्र में भी काम किया। इसके लिए वह अलग-अलग शहरों में भी रही और वहाँ पर काम सीखा व दूसरों को सिखाया। अपने इस पूरे अनुभव में उन्हें धीरे-धीरे यह भी अहसास होने लगा कि फैशन इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित इंडस्ट्रीज में से एक है। एक वक़्त आया जब उन्हें लगा कि अब उन्हें कुछ और करने की ज़रूरत है। साल 2010 में वह बनारस शिफ्ट हो गईं।
“जब मैं बनारस आई तब से ही मैंने सोच लिया था कि मैं यहाँ कोई काम तो ज़रूर करुँगी। हम सब जानते हैं कि बनारस का भारत में और भारत से बाहर भी क्या महत्व है। देश के सबसे बड़े टूरिस्ट प्लेस में से यह एक है। यहाँ पर महिलाओं के हुनर को मैंने देखा कि वह कैसे जपमाला और कई तरह-तरह की माला तैयार करती हैं। मैंने खुद भी इस तरह के कोर्स किए थे और यहाँ से मुझे इस व्यवसाय को करने का आईडिया आया,” उन्होंने आगे कहा।
शिप्रा ने ‘माला इंडिया’ के नाम से अपना यह व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने अपने साथ लगभग 100 महिलाओं को जोड़ा। उनके प्रोडक्ट्स न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों तक भी पहुंचे। पर शिप्रा कहतीं हैं कि उन्होंने महसूस किया कि इस व्यवसाय में शायद बहुत ज्यादा डिमांड आगे न बढ़े। इसके बाद, एक्सपोर्ट का भी काफी खर्च था। साथ ही, जब वह गांवों में जाती थीं तो उन्हें लगता था कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे हर एक घर को जोड़ा जा सके। बिना कोई ख़ास लागत के कोई काम शुरू हो सके।
और इस सोच से शुरुआत हुई, प्रभुती एंटरप्राइज की। सबसे पहले शिप्रा ने देखा कि ऐसी क्या चीज़ है जो हर ग्रामीण घर में होता है और वह है गाय-भैंस। ज़्यादातर किसान परिवार पशुधन तो रखते ही हैं। घर का दूध और घी अच्छा होता है। उन्होंने घर पर बने शुद्ध घी को मार्किट करना शुरू किया। वह बताती हैं कि उन्होंने थोड़े पैसे इन्वेस्ट करके दूध से क्रीम निकालने वाली एक मशीन इनस्टॉल कराई। यहाँ पर किसान अपने दूध से क्रीम निकाल लेते और फिर इस क्रीम से शुद्ध देसी घी तैयार किया गया।
“पहले-पहले हमने अपने जानने-पहचानने वालों को यह घी दिया ताकि फीडबेक मिल सके। बहुत से लोगों से फीडबेक लेने के बाद हमने इसे काशी घृत नाम देकर मार्किट करना शुरू किया। घी हमारा जब अच्छा रिजल्ट लेकर आया तो लगा की और क्या है जो हम कर सकते हैं और तब दिमाग में मोटे अनाज का कुछ करने का ख्याल आया,” उन्होंने बताया।
बनारस के पास के गांवों में किसान थोड़ा-बहुत रागी, ज्वार, चौलाई आदि उगाते हैं। शिप्रा ने सोचा कि क्यों न किसानों को उनकी अपनी उपज से ही काम दिया जाए। घी के बाद उन्होंने इन अनाजों के कूकीज बनाने का ट्राई किया। लगभग एक साल तक उन्होंने अपने प्रोडक्ट्स सेट किए और लोगों का फीडबेक लिया।
इसके बाद, उन्होंने अपनी एंटरप्राइज का रजिस्ट्रेशन कराया। प्रभुती एंटरप्राइज के ज़रिए आज लगभग 350 परिवारों को रोज़गार मिल रहा है। वह फ़िलहाल, तीन तरह का घी जिसमें सामान्य देसी घी, एक ब्राह्मी घी जिसमें ब्राह्मी को मिलाया गया है और तीसरा शतावरी घी बना रही हैं।
घी के अलावा, नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी और अदरक आदि के कूकीज भी वह बना रहे हैं। उनके यह कूकीज घर पर बने हुए हैं और इनमें किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन नहीं हैं। शिप्रा कहती हैं कि उनके ये कूकीज वेगन डाइट लेने वाले लोगों के हिसाब से भी बनाए गए हैं। इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी गौर किया कि हमारे यहाँ व्रत-उपवास होता है। इस दौरान, लोगों को बहुत ही कम खाने के विकल्प मिलते हैं। उन्होंने ऐसे भी कुछ खाद्य उत्पाद तैयार किए हैं, जो व्रत-उपवास में खाए जा सकें। उन्हें जिस तरह का ऑर्डर मिलता है, वह उसी तरह से प्रोडक्ट्स बनाकर भेजते हैं।
इन्वेस्टमेंट के बारे में शिप्रा बताती हैं कि उन्होंने शुरुआत में इस बिज़नेस में अपनी बचत के पैसे लगाए। उन्होंने दो गांवों में यूनिट लगवाई हुई है, जहाँ ग्राइंडर आदि मशीन लगी हुई हैं। महिलाएं इन यूनिट्स पर जाकर काम करतीं हैं। सभी प्रोडक्ट्स बनाकर अच्छी तरह से पैक किए जाते हैं और ऑर्डर के हिसाब से भेजे जाते हैं। पहले वह कार्टन में पैक करके भेजती थीं लेकिन अब उन्होंने इसके लिए कांच के एयरटाइट जार इस्तेमाल करने की शुरुआत की है।
साल 2018 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के स्टार्टअप प्रोग्राम के लिए अप्लाई किया था और उन्हें वहाँ से 5 लाख रुपये की ग्रांट भी मिली। वह कहती हैं कि जब यह ग्रांट पूरी हो जाएगी तो उन्हें और 20 लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। इन पैसों से उन्होंने और भी गांवों में अपनी यूनिट सेट अप करने की योजना बनाई है। अब वह सिंगरौली इलाके में भी 8-10 गांवों में यूनिट सेट-अप करने का प्लान कर रही हैं। इस यूनिट के सेट-अप होने के बाद वह और 700-800 महिलाओं को रोज़गार दे पाएंगी।
बनारस के अलावा वह दिल्ली, नोएडा में भी प्रोडक्ट्स सप्लाई करती हैं। इसके साथ ही, उनका एक स्टोर भी है। अब तक वह 2000 से ज्यादा ग्राहकों से जुड़ने में सक्षम रही हैं। वह कहती हैं, “हमारे यहाँ से महिलाएं 3 से 10 हज़ार रुपये के बीच में प्रति माह कमाती हैं। जिस हिसाब से हमें ऑर्डर मिलते हैं, उसी हिसाब से हम महिलाओं को काम देते हैं। पिछले साल हमारा टर्नओवर लगभग 25 लाख रुपये रहा और आगे उम्मीद है कि यह बढ़ेगा।”
फ़िलहाल, उनकी योजना है कि उनके प्रोडक्ट्स पूरे देश के लोगों तक पहुंचे और वह ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोज़गार दे सकें। साथ में, वह अपना काम करने की चाह रखने वाले लोगों के लिए यही सुझाव देती हैं कि सबसे पहले यह देखने कि बाजार की मांग क्या है? लोगों को क्या चाहिए? उसी हिसाब से अपने बिज़नेस प्लान पर काम करें।
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